Amitabh Bachchan vs. Vinod Khanna - Who Shook the Superstar's Crown?
सुपरस्टार की जंग: कैसे Vinod Khanna ने Amitabh Bachachan के सिंहासन को दी चुनौती
शानदार व्यक्तित्व के मालिक विनोद खन्ना ने शुरुआत एक विलेन के रूप में की लेकिन जल्दी ही अपने रौबीले स्वरूप से वो सुपरस्टार्डम के करीब पहुंच गए। एक ऐसा वक्त आया की अमिताभ की जगह के वारिस विनोद खन्ना को माना जाने लगा और मीडिया ने विनोद खन्ना को नया सुपरस्टार का खिताब देना शुरू कर दिया और यहीं से शुरू हुई Amitabh Bachchan vs. Vinod Khanna प्रतिद्वंद्विता।
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60वे दशक के आख़िरी सालो मे हिन्दुस्तानी फिल्म के खल चरित्र का चेहरा बदलने एक ऐसा चेहरा आया जिसने मर्दाना खूबसूरती को एक अलग धरातल पर स्थापित कर दिया. सुनील दत्त द्वारा निर्मित फिल्म "मन का मीत " मे खलनायक के रूप मे एक ऐसा रूपवान और आकर्षक व्यक्तित्व आया कि फिल्म का हीरो गौड़ हो गया.
सुनील दत्त के छोटे भाई सोम दत्त को स्थापित करने के लिए बनाई इस फिल्म ने भारत के सुनहरे पर्दे को एक ऐसा चेहरा दे दिया जिसकी ठुड्डी पर डिंपल, गहरी आँखो मे छलकता समंदर, बेपरवाह सी दिखती मर्दाना चाल, और चेहरे मे आत्मविश्वास की ग़ज़ब चमक थी. खल चरित्र के हिसाब से बेहद लुभावने इस चेहरे को जल्दी ही नायक का रोल दे कर फिल्म इंडस्ट्री ने अपनी ग़लती को ठीक कर लिया. फिर भारतीय फिल्म इतिहास को एक ऐसा नायक मिला जिसे चरित्र से ज़्यादा उसका चेहरा, कद काठी और बेहद आकर्षक व्यक्तित्व नायक बनाता था. ये विनोद खन्ना था.
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1971 मे आई फिल्म " मेरा गाँव मेरा देश " काले कपड़ो मे काल टीका लगाए दमदार आवाज़ मे विनोद खन्ना ने जब डाकू का चरित्र जिया तो डाकू का ज़िक्र होते ही विनोद खन्ना का चरित्र उभर आता है. डरावने डाकू से इतना आकर्षक डकैत लोगो को इतना भाया कि विनोद फ़िल्मो मे दर्शाए डाकू चरित्र का पर्याय बन गये. विनोद खन्ना सिर्फ़ मर्दाना खूबसूरती के कारण ही चर्चा मे नही रहे बल्कि लीक से हटकर फिल्म बनाने वाले गुलज़ार साब की फिल्म "अचानक ' मे अभिनय की नयी गहराई और संवेदनशीलता को छूते हुए विनोद खन्ना कमाल के अभिनेता भी बन गये. नानावती केस पर आधारित फिल्म मे नेवी ऑफीसर का रोल कर विनोद खन्ना ने फिल्म आलोचको का दिल जीत लिया.
सत्तर के दशक मे जहाँ समाज की असमताओ के खिलाफ एक आवाज़ गरज रही थी ये आवाज़ अमिताभ बच्चन की थी, वही तेज़ी से उभर रहे विनोद खन्ना ने इस आवाज़ मे अपनी आवाज़ भी मिला दी.
1977 मे आई अमर अकबर एंथोनी ने विनोद खन्ना को फिल्म इंडस्ट्री मे ध्रुवतारा की तरह आकाश पर क़ाबिज़ अमिताभ के समकक्ष खड़ा कर दिया. अमिताभ के साथ जुगलबंदी की एक और फिल्म "मुक़द्दर का सिकंदर " मे विनोद खन्ना ने सिकंदर के चमक के सामने अपनी आभा को कम नही होने दिया. हेरा फेरी सहित कई फ़िल्मो मे अमिताभ के कद्दावर व्यक्तित्व के सामने चट्टान की तरह खड़े विनोद खन्ना अब दूसरे महानायक मे बदल रहे थे.
फिल्म मुकद्दर का सिकंदर के एक सीन में अमिताभ को कांच का गिलास विनोद खन्ना को तरफ फेंकना था और विनोद को इससे बचना था । विनोद की टाइमिंग गड़बड़ हुई और ग्लास सीधे विनोद खन्ना की थोड़ी पर लगा। विनोद के चेहरे पर १८ टांके आए। कुछ लोगो ने ये भी इल्जाम लगाए की अमिताभ ने विनोद की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से ऐसा जान कर किया लेकिन विनोद से इसे एक निर्मल दुर्घटना हो माना था
इसी बीच आई उनकी फिल्म "कुर्बानी" ने इस दमदार व्यक्तित्व को कामयाबी के शिखर पर पहुचा दिया. अमिताभ का सिंहासन कुछ हिलता सा प्रतीत हो रहा था तभी विनोद खन्ना से एक फ़ैसला लेकर फिल्म इंडस्ट्री को चौंका दिया. विनोद खन्ना अब ओशो की शरण मे जीवन का मक़सद और विनोद खन्ना की असली पहचान खोजने अमेरिका चले गये. कामयाबी के उरूज़ पर विनोद खन्ना का सन्यासी बनना अनोखी घटना थी.
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अमेरिका मे ओशो को समर्पित विनोद खन्ना वैभव विलास से डोर माली का काम कटे हुए लोगो के जीवन मे खुश्बू बोने का काम करने लगे. लेकिन इस मोह को भी भंग होना था. 88 मे वापस लौटकर विनोद ने दयावान मे बेहद सशक्त रोल करके देश को उसका सितारा वापस कर दिया. बेहद हँसमुख ये सितारा राजनीति मे भी उतरा और सबका दिल जीत लिया. गुरदासपुर को अपना बच्चा मानने वाले विनोद ने 4 बार सांसद और बाजपई सरकार मे मंत्री होने का भी गौरव हासिल किया. ऐसे हर दिल अज़ीज़ अभिनेता ,नेता और सर्वोपरि इंसान का जाना, समाज का नुकसान है....बहुत बड़ा नुकसान है..
Avinash Tripathi- Know More About Author
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