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Hrishikesh Mukherjee Death Anniversary Special: Unveiling Interesting Facts About the Indian Filmmaker

 

On Hrishikesh Mukherjee's Death Anniversary: Exploring the Filmmaker's Timeless Contributions to Indian Cinema

जिसके हुनर को बिमल रॉय ने परखा और तराशा हो ,उसका बेहतरीन होना लाज़मी है। कोलकाता से एडिटिंग और सिनेमैटोग्राफी का हुनर सीख कर आए ऋषिकेश मुखर्जी ,अब मुंबई में एक मुक़म्मल सिनेमाई शख्सि़यत में बदलने की कोशिश में लगे थे।

 बिमल रॉय ने अपनी फिल्म दो बीघा जमीन के स्क्रीनप्ले और एडिटिंग की दोहरी जिम्मेदारी ऋषिकेश मुखर्जी को दे दी। सलीकामंद किस्सागोई के हिमायती ऋषिकेश मुखर्जी, अब देवदास फिल्म को  अपनी पारखी नजर से एडिट करते हैं। 

(Source:https://www.arthousecinema.in/)

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पहली निर्देशित फिल्म मुसाफिर फ्लॉप जरूर होती है लेकिन आम जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों को पर्दे पर उतारने की कला राज कपूर को भा जाती है। ऋषिकेश निर्देशित अनाड़ी सुपर हिट होती है और राज कपूर ऋषिकेश मुखर्जी के दोस्ती की दास्तान का आगाज़ हो जाता है। जब सिनेमा बड़ी कमर्शियल फिल्म और इश्यू बेस्ड समानांतर सिनेमा के बीच द्वंद में लगा था, ऋषिकेश बीच के सिनेमा की नाव लेकर तेजी से आगे बढ़ते हैं। 

आम मध्यमवर्गीय जिंदगी की कशमकश को बेहतरीन दास्तानगोई से परोसते ऋषिकेश मुखर्जी , "सत्य काम" "अनुपमा" के बाद ऋषि दा जैसे स्टेचर में तब्दील हो जाते हैं। इसी बीच राज कपूर बेहद बीमार होते हैं और अपने दोस्त को खो देने की घबराहट में ,ऋषि दा आनंद लिखते हैं। कहानी सुनने के बाद राज कपूर अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर  मना कर देते हैं।फिल्म धर्मेंद्र से होते हुए राजेश खन्ना की झोली में गिरती है और अमिताभ का चरित्र बाबूमोशाय, दरअसल राज कपूर द्वारा ऋषि दा को संबोधन होता है। 

(Source: The Hindu from film Anand)


एक शाम ऋषि दा एफटीआईआई छात्रों की फिल्म देख रहे होते हैं और एक कम लंबाई की युवा लड़की के अभिनय क्षमता देख दंग रह जाते हैं। अगली सुबह पुणे जाकर ऋषि दा उस लड़की को अपनी नई फिल्म गुड्डी में मुख्य किरदार ऑफर करते हैं और इस तरह जया भादुरी ,भारतीय सिनेमा की सशक्त अभिनेत्री की शुरुआत करती है। 


(Source- 'X' - Hrishikesh Mukherjee with Jaya and Ashok Kumar)

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परिवारिक हास्य की शिखर फिल्म चुपके चुपके में धर्मेंद्र , असरानी द्वारा पहने जाने वाले सूट पर जब ऐतराज जताते हैं तो ऋषि दा उन्हें डांटते हुए अपने निर्देशिकीय अधिकार का उपयोग करते हैं। अमिताभ जैसे कमर्शियल सिनेमा के सुपरस्टार को लेकर मिली ,अभिमान,  चुपके-चुपके सच्ची स्लाइस आफ लाइफ फिल्म बनाने वाले  ऋषि दा को अमिताभ ने हमेशा अपना गॉड फादर माना है। धर्मेंद्र को पहली बार हास्य की सांचे में ढालते, ऋषि दा अपने अभिनेताओं को पानी की तरह किसी भी बर्तन में उतारने का हुनर रखते थे। आम जिंदगी का ऋषि दा से बड़ा कोई चितेरा होगा, इसमें हमेशा संशय रहेगा।

©अविनाश त्रिपाठी

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