ग्वालियर की बाग़ी ज़मीन से निकला सितारा- पियूष मिश्रा
Life Journey of Piyush Mishra
विद्रोही पियूष ने बचपन में ही खुद का नाम बदला
चम्बल की खुरदुरी मिटटी से एक तरफ ग्वालियर की राजशाही के महल तैयार होते है , दूसरी तरफ बागी , इसी मिटटी में सिस्टम के खिलाफ अपनी बंदूके बोते है.
इसी ग्वालियर की मिटटी में एक तीसरी आवाज़ जो बगावत और समाज के अन्याय को अपनी कलम की नोंक पर तराशती है , उसके गले से गुज़रते हुए शब्द परचम की तरह , हवा में लहराते है और जो ग्वालियर के रत्न जड़ित कला आसमान को एक खुदरंग नछत्र से रुबरु कराती है। ऐसी ही एक शख्सियत आज के ही दिन यानि सर्द जनवरी की तेरह तारिख को ग्वालियर में प्रियकांत शर्मा के रूप में जन्म लेती है।
बचपन से ही ज़हीन प्रियकांत को उसकी बुआ ने अपने घर का चिराग बनाने का फैसला कर लिया. बुआ के घर रहते हुए प्रियकांत ने अपनी शख्सियत को एक चंचल लेकिन सजग बालक के सांचे में ढालना शुरू किया। कक्षा ८ की उम्र में प्रियकांत ने अपने खयालो को गीलाकर, कलम की रोशनाई में डाल दिया।
ज़िंदा हो हाँ तुम कोई शक नहीं , सांस लेते हुए देखा मैंने भी है , हाथ और पैरों और जिस्म को हरकते खूब देते हुए देखा मैंने भी "ज़िंदा होने के मायने सिर्फ सांस लेना नहीं , के भाव को अपने आबो ताब से हरा करते प्रियकांत , अब ज़ेहनी तौर से बड़े और प्रखर हो रहे थे.
जब मैंने प्यार किया का प्रेम ना बन पाए पियूष
दिल्ली में पियूष नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में भर्ती होते ही धीरे धीरे पानी का बदन ओढ़ लेते हैं. अब अलग अलग किरदार को अपना चेहरा , जिस्म और आवाज़ ओढ़ाते , पियूष इस काम में रम जाते हैं. जब जर्मन डायरेक्टर ने हेमलेट नाटक की मुख्य भूमिका में पियूष को तराशा तो पियूष के अंदर का नायक, अब पूरी तरह सतह पर आ गया . अब नेशनल स्कूल ड्रामा में पियूष को हीरो कहकर पुकारा जाने लगा. इन्ही दिनों मुंबई में बड़जात्या ' मैंने प्यार किया " के बारे में सोच रहे थे और पियूष का नायकत्व , बड़जात्या के पास भी पहुंच गया।
अपनी खुमारी में डूबे पियूष इस फिल्म का हिस्सा नहीं बने और बाद में सलमान ,कबूतर के ज़रिये भेजी गयी पहले प्यार की पहली चिट्ठी पढ़कर, रोमानी हीरो स्थापित हो गए.
पीयूष मिश्रा की थिएटर यात्रा
१९८६ में एन एस डी से पास आउट होकर कुछ लम्हो के लिए पियूष मुंबई आये लेकिन तक तक कबूतर उड़ चूका था.
उदासी और काम नहीं होने के पलो को पहनकर , पियूष मुंबई से वापस दिल्ली पहुंचे और अपने मित्र एन के शर्मा के साथ एक्ट वन थिएटर ग्रुप शुरू किया. मनोज बाजपेई भी इसी ग्रुप में सालो तक अभिनय की पी एच् डी करते रहे. बहुत सारे नाटकों में खुद के नक्शो - नुकूश तराशते पियूष भगत सिंह के किरदार में खुद का चेहरा देखने लगते है.
गगन दमामा बाज्यो से भगत सिंह का किरदार मशहूर हो रहा था और मुंबई में एक प्रख्यात निर्देशक, इसी विषय पर फिल्म बनाने का सोच रहा था. भगत सिंह पर राजकुमार संतोषी की फिल्म में पियूष ने संवाद में अपनी समाज से सोखी हुई आग परोस दी. तिग्मांशु के कुछ सीरियल में अभिनय के बाद , मुंबई एक बार फिर पियूष पर मेहरबान होती है और मणि रत्नम की फिल्म 'दिल से' में सी बी आई अफसर की भूमिका में जान डाल दी. अब पियूष अभिनय की तलाश के साथ अपनी कलम की तराश पर भी नज़र बनाये रखते है और कई फिल्म जिसमे दिल पे मत ले यार, ब्लैक फ्राइडे, टशन ' में गीत लिख कर , कलम की धार तेज़ करते रहते हैं.
पियूष अब अपने किरदार में एक ऐसी आंच तलाश कर रहे थे जो उनकी रक्त के ताप से मैच करता हो. आखिर पियूष को मक़बूल मिलती है जो पियूष मिश्रा के अभिनय प्रतिभा के हर फलक को तर कर देती है. काका के किरदार में दोस्त के प्रति प्यार, अब्बा जी की वफादारी, दोस्त की बगावत से उहापोह में फंसे व्यक्ति का गुस्सा , तड़प , उलझन , को जब पियूष का चेहरा मिलता है तो हर भाव, यथार्थ के बिलकुल करीब बैठ जाते है.
गुलाल में पृथ्वी बन्ना के किरदार में सामाजिक राजनैतिक चेतना की बातो में पियूष का स्वर , हूबहू मिलने लगता है. इसी फिल्म का पियूष का लिखा, गाय और कंपोज़ किया एक गीत ' आरम्भ है प्रचंड ' फिल्म आजतक , युवाओ का सबसे बड़ा एंथम बना हुआ है. 'आरम्भ है ' आरम्भ होते ही ऑडिटोरियम में बैठे हर युवा में एक भगत सिंह उतर आता है और ,पूरा माहौल एक आंच में तपने लगता है.
गैंग्स ऑफ़ वासेपुर सहित बहुत सी फिल्म को अपना चेहरा देने के साथ, पियूष अपने पुराने प्यार थिएटर में फिर सक्रिय होते है. भगत सिंह के बाद एक अनोखा म्यूजिकल प्ले 'बल्लीमारान ' में पियूष ,अपनी बहु आयामी प्रतिभा का हर रंग भर देते है. क्राफ्ट की हर दीवार को तोड़ते , अपनी खुदरंग ज़मीन पर ,नयी दीवार बनाते पियूष आज के दौर के सबसे मल्टीफेसेट पर्सनालिटी है. कक्षा 8 के लेखन से जीवन 60 तक का बेहद रचनात्मक सफर यूँ ही जारी रहे यही दिल से दुआ.
Post a Comment