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The director who made Lagaan - Ashutosh Gowarikar

 


पिछली शताब्दी का आठवा दशक अपने सफर के बीच में था, भारतीय सिनेमा शायद अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा था. पुरे दशक में एक दो  दुक्का अच्छी फिल्म छोड़ सिर्फ हिंसा भरी फिल्मे समाज को बदल रही थी या समाज किन्ही कारणों से हिंसा की तरफ झुक रहा था. शायद पहली बार फिल्मो के गांव में अश्लीलता का पूत भी दिखने लगा था. इसी दौर में कोल्हापुर का एक लम्बा सा लड़का अपने छोटी आँखों में बड़े ख्वाब लिए धीरे धीरे फिल्मो में झांकता है. तेज़ इसलिए नहीं कि आँखों के बड़े ख्वाब कभी भी छलक कर बाहर गिर सकते थे।  अपने ख़ास लहजे की अलग फिल्म बनाने का कच्चा ख्वाब लिए ये लड़का अभिनय के ज़रिये फिल्म बनने की खूबसूरत सफर का हमसफ़र हो जाता है. दिल में अलग आग जलाय इस लड़के का नाम आशुतोष गोवारिकर था.


१९८४ में आयी फिल्म 'होली ' में आशुतोष ने निर्देशक केतन मेहता  के निर्देशन में फिल्म क्राफ्ट को एक अभिनेता के साथ ही एक निर्देशक की नज़र से भी देखना शुरू किया।  "होली से अभिनेता आमिर खान के साथ आशुतोष का करीबी सम्बन्ध भी हो गया।  



दोनों की आँखे आने वाले वक़्त में अपने मिजाज़ का काम खोज रही थी. अलग अलग किरदार में खुद की पाने के सफर  में आशुतोष ने कई फिल्म में अलग अलग चेहरे ओढ़ लिए. कभी है कभी ना ' में वो शाहरुख़ के दोस्त और म्यूजिक कंपोजर बनते, किसी और फिल्म में  कुछ अलग किरदार को अपना जिस्म दे देते. अब आशुतोष की छटपटाहट बढ़ने लगी थी. 



कई कहानी उनके रूह के हिस्से में फंस गयी थी जो रात सोते वक़्त आँखों में तैर जाती. बेचैनी जब उरूज़ तक पहुंच गयी तब आशुतोष ने 'पहला नशा ' बनाकर उस दुनिया में कदम  रखा जो जिसका सपना उन्हें जीने नहीं दे रहा  था. अपनी दूसरी फिल्म  में अपने  दोस्त और तब तक बेहतरीन अभिनेता हो चुके आमिर खान को याद किया।  "बाज़ी ' में आशुतोष ने जान की बाज़ी लगा दी. बेहद सुदर्शन और चॉकलेटी बॉय की छवि वाले आमिर एक तेज़ गति की एक्शन फिल्म में पुलिस अफसर की भूमिका में बेहतरीन उभर कर आये.

 इस फिल्म ने आशुतोष को न सिर्फ बेहतरीन निर्देशक साबित कर दिया बल्कि आमिर एक बहूआयामी कलाकार बन कर उभरे. इस फिल्म की आंशिक सफलता और ढेर सारी  तारीफ ने दोनों के मन में गुपचुप चल रहे सपने को पानी दे दिया. 



अब आशुतोष अपने उस ख्वाब पर काम करने लगे जो मुश्किल था लेकिन हर रोज़ उन्हें काम के लिए मजबूर करता था. एक ऐसी कहानी जो हर भारतीय के लिए गर्व का वायज़ होने वाली थी. अंग्रेज़ो और भारतीयों के बीच एक ऐसे लड़ाई जिसके नियम भी उनके थे, सामान भी उनके, क़ातिल भी उनका, मुंसिफ भी उनका. भारतीयों के हाथ सिर्फ उनका अदम्य साहस, जीतने की मरते दम तक ख्वाहिश थी. आखिर खेल शुरू हुआ और भारतीय ३ साल तक 'लगान ' के कुचक्र से मुक्त हुआ.

 कहानी के  कथ्य , तकनीकी ख़ूबसूरती, कहानी का बेहद बड़ा कैनवास जिस तरह आशुतोष के हाथ से गुज़र कर सुनहरा हो गया वो बेहद रोमांचक था. 'लगान ' ने सालो बाद भारतीयों फिल्म को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित 'ऑस्कर्स ' में बेस्ट फॉरेन फिल्म केटेगरी ; में नामांकित होने का अवसर दिया. आमिर ने भी इस फिल्म में जिस तरह किरदार को अपना जिस्म, चेहरा और रूह दी, फिल्म कहीं और सतह पर चली गयी . 


इस फिल्म की सफलता ने आशुतोष की आँखों को बड़ा कर दिया. अब बड़े ख्वाब देखे भी जा सकते थे, और समां भी सकते थे. आमिर को बिलकुल अलग चेहरा देने के बाद आशुतोष ने स्वदेश बनायीं जो भारतीयता, भारतीय ब्रिलियंस को स्थापित कर गयी. 

बेहद एनर्जेटिक शाहरुख़ अपने ऊर्जा को संचित  करते इस फिल्म में अपनी छवि से बिलकुल मुख्तलिफ नज़र आते है. उनके मैंनेरिज़्म और ख़ास अंदाज़ को आशुतोष ने बेहद संतुलित तरीके से नियंत्रित किया. 



अब एक कदम और आगे बढ़ते आशुतोष ने इतिहास में रूह डाल दी  और "जोधा' अपने पूरे सबब के साथ एकबार में सामने ज़िंदा हो गयी.




 फिल्म के किरदार के साथ उस दौर को ज़िंदा करने में आशुतोष ने हर काम किया. फिल्म अपने पूरे आबो ताब के साथ दर्शको के ज़ेहन पर छप गयी. 

आशुतोष ने और भी फिल्म बनायीं लेकिन इन २-३ फिल्म ने ही उनका नाम भारतीय सिनेमा में एक अलग वरक लिख दिया.

AVINASH TRIPATHI



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