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Jagjit Singh - The ghazal maestro of India


पैदाइश जरूर मेरी फैज़ाबाद की रही और बुनियादी तर्बीयत छोटे से शहर बस्ती की, लेकिन जबान का जायका, ख़ूबसूरत लहजो मिज़ाज की खुशबू सी बातें,  इजहार और इकरार के बीच का रुका हुआ लम्हा, और हर दिल अफंशा बातों की ग़ज़ल में अदायगी, यह सब कुछ लखनऊ और जगजीत सिंह की आवाज से धीरे-धीरे शख्सियत में उतारा। ‌




मुझे याद है लखनऊ विश्वविद्यालय में मास कम्युनिकेशन के इम्तिहान का दौर, सीडी प्लेयर पर जगजीत सिंह के ग़ज़ल " तेरे आने की जब ख़बर महके,  तेरी खुशबू से सारा घर महके " , बदस्तूर चलती रहती। ग़ज़ल का ना जाने कैसा खुमार था इम्तिहान में भी हर सवाल का जवाब खुद ब खुद शायराना हो जाता। 

हिंदुस्तान के हर नौजवान ने अपनी ज़िंदगी के मुख्तलिफ मसाइल के वक्त ,जगजीत सिंह द्वारा गाए किसी गजल के शेर को जरूर इस्तेमाल किया होगा। ‌ वह गहरी सी रूहानी आवाज, अपनी पीठ पर लफ्ज़ और उनके मानी उठाए, आपके दिल के सबसे गहरी रग में समा जाती। 

फिर देर तक हर लफ्ज़ का मानी धीरे-धीरे आप के लहू में घुलता रहता और आखिर में आपके चेहरे पर नूर और लबो पर मुस्कुराहट फैल जाती। ‌ गजल बहुतों ने गाया है अपनी पूरी लयकारी के साथ लेकिन वजनदार आवाज़ में रुहानियत टांके, लफ्ज़ इतने खूबसूरत कभी नहीं लगे

जगजीत सिंह हमारी जिंदगी का जरूरी हिस्सा थे और ताउम्र रहेंगे

मोहब्बत ,दर्द टूटन,  जफा , यकीन ,नाउम्मीदी , ख्वाहिश को अपनी रूहदार आवाज में घोले हुए, गहरी आवाज़ का कोई दूसरा जादूगर आ पाएगा, इसका यकीन बेहद कम और उम्मीद सिर्फ थोड़ी सी है।                        

 राजस्थान की सीमांत जिले गंगानगर में पैदा हुए सरदार जगजीत सिंह धीमान, बचपन में काम शरारती बच्चे की तरह थे। शुरुआती पढ़ाई गंगानगर में करने के बाद वह जालंधर के डीएवी कॉलेज और फिर कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन करते हैं। मुक्ति हुई उम्र में किसी को देखना और गुलाबी ख्वाबों में खो जाना एक आम सी फितरत होती है। अपने कॉलेज के दिनों में जगजीत सिंह भी कुछ इसी ख्याल के थे। कॉलेज जाने की राह पर एक लड़की का घर था जिस के ठीक सामने रोज जगजीत सिंह की साइकिल खराब हो जाती। और फिर अपनी साइकिल ठीक करने के बहाने वह उस लड़की को देखते रहते । 

शख्सियत में रूमानियत पूरी तरह घुल गई थी, अब आवाज़ में कशिश आना बाकी था। विश्वविद्यालय में जब गाना शुरू किया तो वाइस चांसलर ने उनकी आवाज़ को सुनकर बहुत प्रोत्साहित किया। उसका असर हुआ कि 1965 में जगजीत सिंह मुंबई अपनी आवाज़ को फिल्मों में टांकने के लिए चल पड़े। कई सालों की संघर्ष के बाद फिल्मों में तो गाने नहीं मिले लेकिन एचएमबी से उनका एलपी रिकॉर्ड रिलीज हुआ।

 "अनफॉरगेटेबल"  नाम का यह एलपी बेहद मकबूल हुआ। धीरे-धीरे जगजीत सिंह का नाम हिंदुस्तान की ग़ज़ल महफिल का सबसे बड़ा नाम बन गया। "लव इस ब्लाइंड"  सहित बहुत सारे ग़ज़ल एल्बम अब हिंदुस्तान की हर युवा आवाज़ का सहारा बन गया।

 फिल्मों में भी अब जगदीश सिंह की आवाज की पुकार होने लगी। कुछ फिल्मों में जगजीत सिंह की वजह से ग़ज़ल की गुंजाइश निकाली जाने लगी। ‌ " तुम इतना क्यों मुस्कुरा रही हो क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो"  यह मशहूर फिल्मी ग़ज़ल हर महफिल ए जान हो गई। अपने मुंबई के संघर्ष के दिनों में जगजीत सिंह की मुलाकात चित्रा से हुई जो बाद में उनकी धर्मपत्नी बन गई। ‌


 30 सालों तक भारत के ग़ज़ल आकाश का जो नक्षत्र सबसे ज्यादा चमकीला और रोशन कर रहा था ,उसने 10 अक्टूबर 2011 को अचानक बुझने का फैसला कर लिया। ‌



 ग़ज़ल गायक बहुत आएंगे लेकिन इतनी रूहानी आवाज फिर कभी सुनाई देगी, ऐसा होना यकीनन मुश्किल है। 

जगजीत सिंह का जन्मदिन आवाज़ और अल्फ़ाज़ का उत्सव है

©अविनाश त्रिपाठी


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