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5 most romantic film for this valentines

 


फरवरी लगते ही बसंत के बदन में अंगड़ाइयां टूटने लगती  है, पलाश के फूल  ऐसे सुर्ख हो जाते है जैसे जिस्म आंच से तप रहा हो।  इन्ही मौसमो में मोहब्बत के हरसिंगार खिलते है,  बदन से ज़ाफ़रानी खुशबु आने लगती है. 

सर्दी कम  होते होते गुलाबी हो जाती है और आँखों की डोर में वही गुलाबी मौसम उतरने लगता है. इस लरज़ते मौसम में ज़ेहन भी मासूम होकर, दिल जैसा धड़कने लगता है।  हिंदी सिनेमा ने क़ायनात के सबसे खूबसूरत अहसास, इश्क़ को अपने ख़ास लहजे में सजाया है.  प्यार के खुमार में हौले हौले पकती  कुछ रोमानी फिल्म, जिन्होंने पिछले ५० साल के हर दशक में , इश्क़ का ख़ास और नया लहजा पेश  किया , पढ़ते है उनके बारे में


बॉबी -  ये वो दौर था जब परिपक़्व मर्द, नायक के रूप में आकर, कहानी में प्रेम का संतुलन साध रहे है. एक तरफ समाज में असंतुलन से उपजे क्रोध में उबलते अमिताभ का आगमन हुआ था।  इसी बीच कच्चे कच्चे प्यार की ईमानदार कहानी 'बॉबी' आयी तो हिंदुस्तान के हर उगते हुए लड़के लड़कियों के दिल में धड़कनो के गिटार बजने लगे. सिक्को के बीच में पले बढे ऋषि कपूर का गीला मन , मछुआरे परिवार की बेटी 'बॉबी' ( डिंपल कपाड़िया )  के लिए तड़प उठता है। दोनों के बीच दीवारे उठने लगती है, कफ़स बना दिए जाते है , धर्म ,पैसा ,रुतबा ,अपना क़द ऊँचा करने लगता है। 




 मोहब्बतें , दीवारे तोड़ने का हुनर जानती है और आखिर राज ( ऋषि कपूर) को उसकी बॉबी मिल जाती है. सत्तर के विद्रोही दशक की ये सबसे सुकुमार फिल्म थी.  बॉबी ने किशोर फिल्म की बुनियाद राखी जिस पर आज भी बहुत सी इमारते बुलंद--ओ बाला हो रही है

क़यामत से क़यामत तक -  ८वा दशक हिंदी सिनेमा के रुख को बदल रहा था, हिंसा और आक्रोश अपने चरम पर था. दशक बीतने के मुहाने पर खड़ा था इसी बीच युवा दिलो पर मोहब्बत की नक़्क़ाशी करती फिल्म ' क़यामत से क़यामत तक ' ने दस्तक दी. मधु ( जूही चावला ) जैसी दोशीज़ा का अल्हड़पन, मासूमियत, और खुद को हम कहके सम्बोधित करना , लोगो के दिलो की दीवारों पर तस्वीर बनाने लगा.  बरसो पुरानी  रंजिश के दो अलग अलग छोरो पर खड़े राज ( आमिर खान ) और (मधु) परिवार के गुस्से को अपनी मोहब्बत की चांदनी से शीतल करने की कोशिश करते है.



 दोनों का प्यार इस किस्म का गहरा होता चला जाता है की रूह तक पहुंच जाता है।  खानदानी दुश्मनी दोनों को अपनी आग में जला देती है और फिल्म के अंत पर प्यार में डूबी दोनों पाकीज़ा रूह, अपने जिस्म को छोड़कर, हमेशा एक दूसरे का हाथ थाम लेती है. सारी  अमर प्रेम कहानी, रोमियो जूलियट, हीर रांझा ,लैला मजनू की तरह, इसमें में इश्क़ क़ुर्बान होता है और जीत जाता है. 

हम दिल दे चुके सनम -  मोहब्बत में क़ुर्बानी सिर्फ क़ुर्बानी नहीं होती, प्रेम में मोक्ष पाने का तरीका भी होता है. हम दिल दे चुके सनम , इसी क़ुर्बानी को और बड़ा ओहदा  देते देते मोक्ष के स्तर  तक पहुंच जाती है.   नंदिनी ( ऐश्वर्या राय  ) महान संगीतज्ञ पंडित दरबार की बेटी है।  दरबार से संगीत सीखने समीर ( सलमान खान ) इटली से आता है और नंदिनी की स्वर लहरियो में उलझ जाता है. दोनों की आवाज़ और राग में मोहब्बत का मुजस्मा बनने लगता है और ये पता चलते ही दरबार, समीर को घर से निकाल  देता है. नंदिनी की शादी वनराज ( अजय देवगन ) से हो जाती है. नंदिनी का जिस्म निढाल सा रहता है क्योकि रूह तो समीर के साथ चली गयी है. ये देख पति वनराज , अपने हार का बदला नहीं लेता बल्कि मोहब्बत के सबसे अप्रतिम रूप , मोक्ष की तरफ बढ़ता है.


 वो नंदिनी को समीर से मिलाने, दरिया, ज़मीन , आसमान एक कर देता है. बेलौस और निष्पाप मोहब्बतें, खामोश भी रहे तो देर तक और दूर तक गूंजती रहती है. वनराज की कोशिश समीर से मिलाने की होती है लेकिन इस प्रक्रिया में नंदिनी उसके बाए कंधे के ठीक नीचे , हमेशा के लिए आ जाती है. मोहब्बत की इस खूबसूरत दास्ताँ को संजय भंसाली ने इश्क़ के गुलाबी रंग से पेंट किया है।  

वीर ज़ारा -  सरहदों के पार खड़े दो इंसान , जब लकीरो और तक़सीमो को इंकार कर देते है तो ज़ारा, वीर की हो जाती है. दो अलग अलग मुल्क, दुश्मनी का पसमंज़र , हिन्दू और मुस्लिम धर्म की बेहद ऊंची दीवार , सब इस इश्क़ के दरिया में बह जाते है. ज़ारा ( प्रीती ज़िंटा ) अपने बेबे की अस्थिया विसर्जित करने हिंदुस्तान आती है और भारत के एयरफोर्स अफसर वीर प्रताप सिंह की ईमानदार शख्सियत से बेहद मुतासिर हो जाती हैं.




हालाँकि हिंदुस्तान आने के पहले ही उनकी मंगनी  (रज़ा  ) मनोज बाजपेई से हो गयी होती है लेकिन ज़ारा का दिल हिन्दुस्तान में वीर प्रताप की खुशबू  भरी बातो में उलझ गया होता है.  वीर ,ज़ारा से मिलने पाकिस्तान पहुँचता है और २६ सालो तक जेल की अँधेरी कोठरी में ज़ारा के नाम का चराग जलाये , रिहाई के दिन का इंतज़ार करता है. आखिर वो रिहा होते है और उसकी उम्मीद से उलट, ज़ारा अब भी बिन ब्याही , उसके गाँव में उसका इंतज़ार कर रही होती है. . दो अलग अलग मुल्को की मोहब्बतें एक होकर , इश्क़ के परचम को थोड़ा और ऊंचा कर देती हैं. 

रॉकस्टार - कामयाब कलाकार  ख़ास तौर से रॉकस्टार बनने के लिए दिल का टूटना ज़रूरी है, ये बुनियाद , जनार्दन जाखड़ ( रणबीर कपूर )  को धीरे धीरे एक रॉकस्टार जॉर्डन बना देती है.   इसी प्रयोग को करने की चाहत में वो बेहद खूबसूरत 



हीर '  ( नरगिस फाखरी ) को प्रोपोज़ करता है और इंकार उसके रॉकस्टार होने के इरादे को मजबूत करता है. हालांकि बाद में  वो दोस्त हो जाते है और  जनार्दन का दिल , हीर के लिए रूक रूक के धड़कने लगता है. इधर हीर की शादी हो जाती है और जनार्दन अकेला, एक मगरूर,अक्खड़ और बद्तमीज़ रॉकस्टार के रूप में उभरने लगता है.

  हीर पैरागुए चली जाती है और एक म्यूजिकल ट्रिप में जनार्दन की मुलाक़ात , दोबारा हीर से होती है. दबी हुई मोहब्बत की खामोश सदा, अब मुखर होकर गूंजने लगती है.  शादी सुदा हीर को पश्चाताप भी होता है और वो ब्लड कैंसर से भी जूझ रही होती है. हीर , जनार्दन से मिलने से इंकार कर देती है और जनार्दन धीरे धीरे बड़ा रॉकस्टार ,जॉर्डन बन जाता है. हीर ,आखिर में जॉर्डन के करीब , आती है और बहुत दूर चली जाती है.

© अविनाश त्रिपाठी

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