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बेहोशी में भी अजय देवगन का नाम पुकारती है ये एक्ट्रेस


Most Versatile Actress of Hindi Cinema

अगस्त अक्सर हमें आज़ाद कर देता है. सालो से घुटती  हुई चेतना , देश की आत्मा , रूह और जिस्म , सब अक्सर अगस्त में आज़ाद होते हैं।  इन्ही आज़ाद और खुलते हुए मौसम में मुंबई की नम  हवाओ में एक आज़ाद सी लड़की , बेहद आज़ाद औरत के घर जन्म लेती है.

    सावन का बदन टूट कर बिखर रहा था।  जब जिस्म दुःख से लबरेज़ हो जाता  , सावन ज़ार ज़ार बरसने लगता।  इन्ही पानी पानी मौसम ,स्याह बादल के खूबसूरत रंग को चुराते हुए एक सांवला सा ख़याल की  ५ अगस्त १९७४  को तनूजा के घर आमद होती है   

[Kajol in Film Dilwale]


माँ बेहद सफल अभिनेत्री होती है और अपने फेमिनिस्ट विचार के कारण एक मुख्तलिफ सी जगह रखती है. मराठी माँ और बंगाली पिता के रचनात्मक गुणों को  अपने जींस  के  छिपाये ये लड़की , डूबती शाम का सांवला सलोना रंग, अपने चेहरे पर उतार लेती है. शायद गहरी काली आँखे और सलोना रंग ही उसके नाम की वजह बनता है और जल्दी ही लोग उस लड़की को काजल और उसके बंगाली तलफ़्फ़ुज़ की वजह से काजोल के नाम से जानने  लगते है.

[Kajol with family]

  काजोल के  खून में माँ तनूजा , नानी शोभना समर्थ , परनानी रतन बाई , जैसी मजबूत महिला का लहू था वही दूसरी तरफ पिता शोमू मुख़र्जी , और शशधर मुख़र्जी की शानदार विरासत , काजोल  को घनीभूत कर रही थी.  ऐसी विरासत और घर का माहौल , किसी भी कला वृक्ष को पल्लवित करने का सबसे बेहतर आधार तैयार करता है. इसी परंपरा में १७- १८ साल की उगती हुई काजोल ,  अपनी पहचान को और रोशन करने निकल पड़ती है.  किशोर से युवा होती काजोल के बदन से अब ज़ाफ़रानी  खुशबू , मिजाज़ में लताफत आ गयी  थी. १९९२ में राहुल रवैल की आँखों ने इस उगती हुई स्टार की चमक को महसूस कर लिया. 

[Kajol in her first film Bekhudi]


स्कूल में पढ़ती  काजोल अब 'बेखुदी' में खुद के होने के ऐलान  करती हैं लेकिन प्यार और माँ बाप के विरोध की इस बासी कढ़ी में कोई उबाल नहीं आ पाता।  अभिनय के प्याले से भरी हुई छलकती काजोल अब मैदान में ज़ोरदार बारिश की तरह निर्बाध बहना चाहती थी. अगले साल यानी १९९३ में काजोल की रवानगी को सही दिशा देती फिल्म ' बाज़ीगर ' आती है. ये फिल्म जहाँ एंटी हीरो के किरदार को मुख्य धारा  की फिल्म में वापस लाती है वही  काजोल ,  शाहरुख़ के बदले में प्यार के रंग देख लेती हैं. 


    अपनी शुरुआती दिनों की इस फिल्म में भी काजोल, अभिनय की शिद्दत से साधते हुए , सच के पाले में खड़ा करने के बेहद करीब आ जाती है. अपने पिता के साथ हुए छल का बदला लेने शाहरुख़, काजोल और उनकी बहिन शिल्पा से प्रेम का स्वांग रचते है क्योकि ये दोनों, उनके पिता के द्रोही, दिलीप ताहिल की बेटिया  हैं. शाहरुख़ के स्वांग से शुरुआत में अपरिचित, काजोल, प्रेम की जवाला में धीरे धीरे तपने लगती है. अपनी बहन की मौत से सदमे में आयी काजोल , प्रेम के छिलके जब परत दर परत उतारती है तो उन्हें शाहरुख़ और अपने पिता की गुजिस्ता ज़िन्दगी के असली रंग पता चलता  हैं. 

    फिल्म के कई दृश्य में काजोल का पानी की तरह बहता अभिनय, बेहद स्वाभाविक लगता है. फिल्म बड़ी हिट होती है और आसमान में काजोल नामक तारा , पुरज़ोर तौर पर रौशन हो जाता है। 

    हालाँकि सिनेमा लवर्स की एक ज़मात , काजोल को उनके साधारण नैन नक़्श की वजह से खारिज करने का भी प्रयास करती है. इस सफर में दो कदम आगे बढ़ते हुए काजोल ' उधार  की ज़िन्दगी ' में अपनी ज़िन्दगी, एक ग्रैंड डॉटर के किरदार को उधार दे देती हैं. 

    माँ  बाप और दादा के बीच बढ़ गए फासले को पाटने का प्रयास करती काजोल , किरदार में इतना दर्द और अपनत्व उड़ेल देती है की  ज़िन्दगी से थोड़ा उधार लेने को जी चाहने लगता है. कामयाबी के मानक पर फिल्म नहीं चलती लेकिन फिल्म क्रिटिक, काजोल के अभिनय के मुरीद हो जाते है  

    फिल्म का दर्द, किरदार का चेहरा ओढ़े हुए काजोल के चेहरे से रिसते  हुए , काजोल के दिल तक पहुंच जाता है. इस ग़म से बाहर  निकलने की कोशिश करती काजोल अब सिर्फ हलके फुल्के किरदार  करने का फैसला लेती हैं. 

    आखिर काजोल बादल  पर तैरते हुए करन  अर्जुन तक पहुँचती है. पुनर्जन्म पर आधारित इस कहानी में महिला किरदार को करने को कुछ ख़ास नहीं  फिर भी  काजोल जब भी परदे पर आती, ऊर्जा अधिक गति से बहने लगती. इस फिल्म में भी शाहरुख़ उनके लव इंटरेस्ट है. शाहरुख़ और काजोल की जोड़ी की आपसी  सहजता , लगाव, प्रतिबद्धता परदे पर  अब जादू जगाने लगती है  और दोनों के साथ में देखने का सुकून बढ़ता चला जाता है. 

    इन्ही सफर में एक पड़ाव ' ये दिल्लगी ' होती  काजोल के एक ड्राइवर की सिमटी सी बेटी  मालिक के दोनों बेटे यानी दो सगे  भाई प्यार करने लगते है।  

[Kajol in film Ye Dillagi]

 प्यार के इस दो तरफ़ा निवेदन के बीच , काजोल आखिर वो राह पकड़ लेती है जो उनके दिल के ठीक बीचो-बीच से होकर गुज़र रही है. ये फिल्म भी कामयाबी की बड़ी इबारत  लिख देती है और काजोल का सांवला सलोना रंग, लोगो के ऊपर, स्याह बादल बनकर बरसने लगता है.   अब काजोल   धीरे धीरे सफर के उस सबसे बड़े पड़ाव पर पहुँचती है जो उन्हें अभिनेत्री की क़तार में एक अलहदा और मुख्तलिफ स्थान दे देता है. १९९५ में आयी ' दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे '  में पिता के साये में अपना मुस्तकबिल स्वीकार करने वाली   प्रेम शाहरुख़ के लिए , अपना सबसे नाज़ुक, और मजबूत रिश्ता तोड़ने को तैयार ह जाती है. लंदन में रहने के बावजूद , भारतीय संस्कारो के पैरहन में खूबसूरत दोशीज़ा लगती काजोल , के मन में कभी कभी आज़ादी से ' ज़रा से झूम लू मैं' का भी ख्याल बदस्तूर आता रहता है.

[Kajol in  film DDLJ]

     शादी और इंडिया जाने से पहले अपने दोस्तों के साथ यूरोप यात्रा पर निकली , काजोल का दिल  एक खिलंदड़ , अपनी  बेपरवाह जीवन शैली से तर कर देता है. अब तक सूखा सूखा सा दिल,  इस खिलंदड़ की रस  भरी बाते और गाफिल सी ज़िन्दगी से बेहद मुत्मइन होकर , भीग जाता है।  काजोल हर फ्रेम  ज़्यादा यकीन के काबिल लगती है. 

    फिल्म जैसे जैसे  बढ़ती है. वो उतनी ही गहराई में हमारे दिल में धंसती चली जाती है.  पहले हाफ  में काजोल और शाहरुख़ , जहाँ अजनबी से मेहबूब बन जाते हैं वही दूसरे हाफ में दोनों के बीच, इस कदर मोहब्बत की आग जलती दिखाई देती है की हाल में बैठ हुआ हर शख्स , उस आंच को , अपने शर्ट के तीसरे बटन के ठीक बांये महसूस करता है . फिल्म में आखिर में काजोल , अपने पिता का घर   छोड़, शाहरुख़ के साथ, ट्रेन  के सफर में निकल पड़ती है ,ठीक वैसे ही जैसे उनकी पहली मुलाक़ात , ट्रेन  में हुई होती है।

    दुनिया की हर शोहरत, प्यार और न जाने कितने अवार्ड, सिमरन नाम के इस किरदार के हिस्से में आ गए जिस किरदार को काजोल ने इतना दिल लगाकर जिया।  हालत ये रही  कि  किसी भी लड़की का नाम सिमरन सुनते ही , हमारे ज़ेहन  में काजोल का चेहरा तैरने लगता। 

[Kajol in  film DDLJ]

    इस किरदार की खासियत इसका धीरे धीरे अपने पर फैलाकर खुलते जाना है. अपने प्यार को लगभग कुर्बान कर देती काजोल यानी सिमरन, धीरे धीरे , अपनी ख्वाहिशो के दाम भी समझ जाती है. 

    वो सिर्फ, बाप की इज़्ज़त का एक चेहरा नहीं बल्कि अपनी खुशियों का फैसला लेनी वाली इंसान भी है. प्यार  के बेमिसाल चरित्र करने के बाद , काजोल खुद को  ज़बरदस्त ट्विस्ट देती है और ' उनकी झोली में 'गुप्त' आ जाती है.  

मर्डर मिस्ट्री वाली इस फिल्म में बेहद भोली भाली दिखती काजोल, अंत में एक एक अलग  हाज़िर होती हैं. इश्क़ और रक़ाबत के इस खेल में काजोल ने फिर बेहद खूबसूरती से अपने किरदार में अलग रंग भरे.  वो सिर्फ प्यार में बलिदान देने वाली लड़की नहीं, बल्कि  अपने इश्क़ को मुठ्ठी में भर के छीन  लेने की क़ूवत वाली भी दिखती हैं. सदी अब ख़त्म होने के  कगार पर खड़ी थी।  

१९९८  में एक मोजज़ा होता है, और उस  साल सिर्फ ' कुछ कुछ होता है ' . एक बार फिर प्यार के सबसे बड़े प्रतीक बन गए ' काजोल और शाहरुख़ , कॉलेज की दोस्ती में प्यार के प्रस्फुटित होने की कहानी बयान कर गए. उस साल और आने वाले कई सालो तो प्यार , दोस्ती है' का स्लोगन, कॉलेज जाने वाले हर लड़के लड़की की ज़बान पर , ज़ायके की तरह चढ़ा हुआ था।  
    अंजलि बन काजोल इस फिल्म में इतना स्वाभाविक अभिनय   करती है की कुछ दृश्य , अभिनय में मोक्ष की तरफ जाते दिखे. कॉलेज में आखिर शाहरुख़ को अपना  प्रेम ज़ाहिर करते वक़्त जब अंजलि को शाहरुख़ के किसी के प्रति झुकाव का पता लगता है, तब अभिनय की दीवार को तोड़कर, सच में तब्दील करती   काजोल, पानी की चाल चलने लगती है. 
    इस दृश्य में नाटकीयता और सच का इतना खूबसूरत मिश्रण है कि  काजोल पर क़ुर्बान  जाने का दिल करने लगता है. 

[Kajol in  film Kuch Kuch Hota Hai]


ऐसे ही टूटे दिल के साथ घर लौटती काजोल, ट्रैन में, शाहरुख़ के   अनुनय को इंकार करती है तब हर दर्शक, हाथ बढाकर  काजोल को रोकने की कोशिश करता प्रतीत होता है। 

जिंदगी के शुरुआती गुलाबी दिनों की बात है जब काजोल ने अपनी कलाई पर अजय देवगन के नाम का मन्नत का धागा बांध लिया था. कुछ कुछ होता है की शूट के दौरान काजोल साइकिल से गिरकर होश गवा बैठी। रूहानी इश्क की तरह बेहोशी में भी काजोल को इस कायनात की सिर्फ एक चीज याद थी और वह अजय देवगन का नाम था

वक़्त थोड़ा और पकता है और इस बार काजोल, ' कभी ख़ुशी कभी ग़म'  में  अमिताभ जैसे कद्दावर अभिनेता के सामने , आदमक़द खड़ी  नज़र आती है. बिना सोचे बोलने वाली चुलबुली लड़की जो अमिताभ के घर में काम करने वाली के परिवार की है, एक दिन , परिवार के बड़े बेटे की प्रणय निवेदन को स्वीकार कर लेती है. 

    परिवारों के बीच  खाई से बड़े गैप , को पाटने की कोशिश बड़ा बेटा  शाहरुख़ और लड़की काजोल, दोनों करते है लेकिन चांदी की दीवारे, इश्क़ की आग से नहीं पिघलती. इस किरदार में भी खिलंदड़ पन  और बेबाकी का नया कलेवर पेश करती काजोल , इतना रम  जाती है कि  किरदार की पहचान मिटाकर , उसपर काजोल नाम लिख देती हैं.  अब काजोल, दुश्मन में डबल रोल में रेप  का शिकार लड़की और उसका बदला लेने वाली बहिन के किरदार में जुनूनी दिखाई देती है.


घर के ज़िम्मेदारी और अपने प्यार अजय देवगन के घर को संभालती ,काजोल , थोड़ी देर के लिए घर पर ठहरती है और लोगो की गुज़ारिश मान, फिर  'फना '  होने की कोशिश में आमिर का हाथ पकड़ लेती है.


[Kajol in  film Fanaa]


आधुनिक कलाकारों में इतना स्वाभाविकता , लय  , रिदम , और किरदार को आत्मसात करने का हुनर , शायद ही किसी कलाकार में  दिखाई दे. ५ अगस्त को इस कमाल की अदाकारा का जन्मदिन है. काजोल और किरदारों को अपना चेहरा और रूह देकर , अमर कर दें   ,यही उम्मीद है। 

© अविनाश त्रिपाठी



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