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अभिनेत्री जिसने एक किरदार के लिए 11 साल लिये


The Tragedy Queen of India- Meena  Kumari

 

कुछ लोगो को अपनी उदास आँखे पसंद नहीं आती, वो अपनी आँखों में तैर रही उदासी को, अपने ही आँखों के गहरे समंदर में डुबो देना चाहते है.लेकिन कुछ ग़म इतने अपने होते है कि वो सिर्फ आप से जुड़ने की वजह से सतह पर तैरना सीख लेते है. ५० और ६० के दशक में भारतीय सिनेमा के रोशन परदे पर जैसे ही प्रोजेक्टर रौशनी फेंकता , होंठो की गहरी प्यास को, अपने दर्द के समंदर से बुझाता  एक ऐसा , टूटन , तड़प ,आंसू , का चेहरा उभरता है कि लोग उसके हर आह पर वाह वाह कर उठते।  भारतीय सिनेमा  को दर्द के इतने पहलु से रूबरू करवाने वाली  और हर हिंदी सिनेमा  को जिसपर नाज़ है ,ऐसी महज़बीं बानो उर्फ़ नाज़ उर्फ़ मीना कुमारी इंसानी जज़्बात का खुद मुजस्मा थी

 

[Source: https://en.wikipedia.org/wiki/Meena_Kumari_filmography]

अगस्त की एक गीली सुबह पिता की ख्वाहिश के उलट, घर में बेटी पैदा हुई, हालात से लाचार पिता ने बेटी पास के अनाथालय में दे दी लेकिन जल्दी ही अपनी खातून और बेटी की माँ का दर्द  देखा न गया. बेटी फिर अपनी माँ की गोद में ज़िन्दगी का ककहरा सीखने लगी. तुतलाते हुए अपनी ख्वाहिश ,ज़िद ज़ाहिर करने के उम्र में नाज़ ने माँ बाप से अपने नाज़ उठाने की जगह उनके दामन में सिक्के देना शुरू कर दिया. महज़ ४ साल की उम्र में महज़बीं ,तेज़ रौशनी और कैमरे के बीच एक सच की ज़िन्दगी जीना सीख रही थी और एक उधार का किरदार निभा भी रही थी. बचपन से ज़हीन महज़बीं  अब बेबी मीना बन गयी थी.  जिन बच्चो को खेलने के लिए दूसरो  के किरदार मिले वो उम्र से बड़े हो जाते है. बेबी मीना भी अब   बड़ी हो रही थी, बदन से  ज़ाफ़रानी खुशबु  और आवाज़ में ऐसी कशिश मानो दर्द को किसी ने धीमे आंच पर मिश्री के साथ उबाल कर गाढ़ा कर दिया हो. बेबी मीना अब मीना कुमारी बनने का सफर तय कर रही थी. इसी बीच मीना कुमारी को बचपन से संवार रहे विजय भट्ट ,दुबारा मीना कुमारी की ज़िन्दगी में तोहफा लेकर आते है। 

 

[Source: https://in.pinterest.com/pin/719450109213176729/]


इस बार इस तोहफे का नाम 'बैजू बावरा ' होता है। बेबी मीना से पुरकशिश  नवयुवती में तब्दील हुई मीना , अब नायिका के किरदार को अपना चेहरा देना चाहती हैं.   बैजू के दिल में तानसेन के लिए नफरत को अपने प्यार से मिटाती गौरी उर्फ़ मीना कुमारी  अब निजी ज़िन्दगी में भी प्यार में पगना चाहती थी. ईमानदार चाहतो के रंग धनक जैसे होते है, बहुरंगी और खूबसूरत।  मीना कुमारी की मुलाक़ात कमाल अमरोही से हुई जो अपनी फिल्म 'अनारकली ' के लिए एक मुख्तलिफ चेहरा , एक रूहदार आवाज़ खोज रहे थे. मीना से मिलते ही कमाल को यकीन हो गया कि 'अनारकली सिर्फ मीना कुमारी ही हो सकती है. इससे पहले फिल्म शुरू होती मीना कुमारी एक दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गयी. पुणे के अस्पताल में इलाज़ के दौरान एक शख्स रोज़ तीमारदारी के लिए हाज़िर हो जाता. ये कमाल थे और एक दिन एक टूटते लम्हे में मीना कुमारी ने पूछ लिया 'ऐसे हालत में अब आपकी अनारकली कौन होगा' , कमाल अमरोही ने हौले से उनके हाथो पर मेरी अनारकली लिख दिया. कमाल की ऊँगली की छुअन और मेरी अनारकली लिखना , मीना कुमारी के रूह तक बींधता चला गया. अब मीना ख्वाबो ख्याल में सिर्फ कमाल अमरोही को देखती थी. खतो किताबत से लेकर देर रात तक फ़ोन पर, दोनों अपने दिल के वरक वरक एक दूसरे से सांझा करने लगे। 

 

[Source:https://www.amarujala.com]


 १८ साल की मीना कमाल की हयात में शरीक हो गयी. इधर फिल्मो में मीना ने अपनी अदाकारी, कशिश भरी आवाज़ और किरदार की अनूठी समझ से अपना बहुत ऊंचा मक़ाम बना लिया. कते है दिलीप साब जैसा अभिनेता  भी मीना कुमारी के सामने घबराने लगे थे। 

     परिणीता में अनाथ लड़की के किरदार में मीना कुमारी ने इस कदर वास्तविक अभिनय किया कि अभिनय और सच एक ही पाले में खड़े नज़र आये. इस फिल्म के मीना को फिल्म फेयर अवार्ड से भी नवाज़ा गया. 'आज़ाद में दिलीप साब के सामने मीना कुमारी इतनी मजबूती से किरदार निभाती है कि अभिनय का बादशाह हक्का बक्का रह जाता है. 

    अलग अलग किरदार को अपनी रूह देते मीना कुमारी अदाकारी की जंग अपने नाम करती आगे बढ़ रही थी कि 'दिल अपना प्रीत परायी' कोहिनूर , काजल , कोहिनूर से होता हुआ उनका सफर 'साहब बीवी और गुलाम पर ठहरता है. अपने अय्याश पति को अपने पास रोकने के लिए उसकी शराबनोशी में उसका साथ देने तक के बावजूद मीना पति को रोक नहीं पाती. मोहब्बत, दर्द, मजबूरी, किसी औरत को किस हद्द तक जाने के लिए मजबूर करती है, मीना  ने ये किरदार कर मोक्ष पा लिया. इधर मीना परदे  पर मोहब्बत में मजबूर पत्नी का किरदार निभा रही थी उधर जातीय ज़िन्दगी में मोहब्बत का दरिया सूख रहा था. 

    कमाल से मरासिम अब दर्द दे रहे थे , रूह पर कुछ खरांशे आ गयी थी जिसे मीना रोज़ शराब से भरने की कोशिश करती. इन्ही ना-इत्तेफाकियो के बीच पाकीज़ा हुई जिसे बनने में एक दशक से ज़्यादा लगा. तवायफ में हुनर, शाइस्तगी , अदा , नज़ाकत , का इतना संतुलित ताना बाना न कभी आया था, न शायद आ पाए. अपने इस शाहकार की बुलंदी को देखने के लिए मीना कुमारी खुद आसमान की बुलंदी को चली गयीं।  दर्द को जीती और परदे पर उतारती आज भी कोई अभिनेत्री मीना कुमारी जैसी नहीं हो सकती। .....

अविनाश त्रिपाठी 

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