Mithun Chakraborty (मिथुन चक्रवर्ती)- A Versatile Actor
How a Naxal turned into great Actor
जून की गर्मी और बारिश के इमकनात के बीच , भारतीय सिनेमा की संभावना को घनीभूत करने वाला , एक बच्चा १६ जून को बरिशाल (बांग्लादेश) में पैदा होता है. बादलो से स्याह रंग उधार लिए इस बच्चे में सब कुछ जान लेने और सब कुछ न्याय से होने की चाहत पैदा हो जाती है. केमिस्ट्री से बी यस सी करके ये युवा, नक्सल आंदोलन में अपना खून जलाने लगता है. इसी साल अपने एकलौते भाई की दुखद मौत के बाद , इस नौजवान को लगता है कि वो किसी गहरी नींद से जागा है।
आँखों में बारिश , दिल में पड़ी
गहरी दरार के साथ ये सनौजवां अंदर से दरकने लगा। फिर एक दिन अपनी नक्सल सोच और साथी को छोड़ ये नौजवान गौरांग चक्रबर्ती
, मिथुन चक्रबर्ती बनने के सफर पर निकल पड़ता है
स्याह और गौर वर्ण के बीच , सांवले बदन और गठीले शरीर वाला मिथुन को अपनी पहली ही फिल्म 'मृगया ' में एक ऐसा संगतराश मिल जाता है जो अभिनय के उभरे हर पत्थर को अपने हुनर की हथोड़ी से नक्काशी में बदल देता है. मृणाल सेन ने मृगया में मिथुन को ऐसे पेश किया कि सामानांतर सिनेमा का हर दर्शक, इस उगते सूरज की चमक से चकाचौंध हो गया.
ब्रिटिश राज में आदिवासी मिथुन जो अर्जुन सरीखा तीरंदाज़ था , हिचकते हुए अपना दोस्ती का हाथ , ब्रिटिश अधिकारी की तरफ बढ़ा देता है। आदिवासियों पर , जमींदारों का अत्याचार और पत्नी का अपहरण , मिथुन को हत्या पर मजबूर कर देता है. इस किरदार में मिथुन ने अपनी रूह से पसीना निचोड़ दिया था.
कुछ दिनों बाद मिथुन के कदमो में बिजली बाँध दी जाती है और ये सांवला सजीला नौजवान , जिम्मी जिम्मी जिम्मी ,आजा आजा आजा , बोलते बोलते , डिस्को डांसर हो जाता है। रूस में हर चौराहे और गलियों में खूबसूरत दोशीज़ा , जिम्मी के पैरो से अपनी ज़िन्दगी का सफर बाँधने के ख्वाब देखने लगी थी. राज कपूर के बाद, कोई भारतीय अभिनेता जिसने सभी रूसी का दिल जीता हो , वो सिर्फ मिथुन चक्रबर्ती है. ८० का दशक धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था और ये सांवला और पहला सिक्स पैक एब्स वाला मेहनती अभिनेता , दशक को अपने नाम करता जा रहा था." प्यार झुकता नहीं " में गरीब अमीर की सदियों पुरानी कहानी में अपना खुदरंग असर डालने वाले मिथुन ने इसे मोहब्बत का पाकीज़ा बना दिया.
इसी दशक में १९८९ मिथुन को अलग कीर्तिमान के पायदान पर खड़ा कर देता है। ८० के दशक के सबसे व्यस्त अभिनेता , मिथुन की एक साल में १९ फिल्मे परदे को रोशन कर देती है. भारत ही नहीं विश्व , इस कीर्तिमान के सामने घुटनो पर आ जाता है. ९० के दशक में एक और फिल्म आती है जिसका मुख्य किरदार अमिताभ निभाते है लेकिन अपने कृषणन अय्यर नारियल पानी वाला किरदार , सबसे ज़्यादा सहानिभूति और प्यार ले जाता है. कमर्सिअल सिनेमा के उरूज़ पर बैठे मिथुन का दिल से घबराता , वो अपने आप को विशुद्ध कला की जलती आंच में डाल देते. स्वाभाविक है फिर कुंदन ही बनने वाला था. १९९२ में आयी 'तहादेर कथा ' और १९९८ में ' स्वामी विवेकानंद ' में मिथुन , अभिनय को अपनी रूह देकर , दो -दो राष्ट्रीय पुरूस्कार ,अपनी अलमारी में सजा देते हैं
२१वी शताब्दी में भी ये ऊर्जावान अभिनेता, अपने धनक से हर रंग निकाल लाता है और कभी हास्य , कभी खल , कभी चरित्र अभिनय में आस्मां की छत को और ऊँचा कर देता हैं. खुद का विस्तार करता ये अभिनेता , टीवी पर जज बनता है तो अपने ख़ास अंदाज़ की वजह से ग्रैंड मास्टर और व्यापार करता है तो मोनार्क ग्रुप का मालिक बन जाता है।
पहले से रुई की मानिंद उदार दिल वाला , किसी शाम साथी कलाकारों के लिए तो 'सिने एंड टेलीविज़न आर्टिस्ट एसोसिएशन' ( सिंटा ) बनाकर, उनके अधिकारों के लिए लड़ने लगता है. राजनीति में जाता है तो बंगाल में प्रणव दा और ममता बनेर्जी के बीच ऐसा पुल बन जाता है जो प्रणव दा को राष्ट्रपति बनाने में ख़ास किरदार अदा कर जाता है।
१६ जून को ७१ साल के हो रहे इस अभिनेता को जिसने अभिनय और स्टारडम , दोनों का ऐसा सुमिश्रण तैयार किया , जिसे हाल की पहली पंक्ति में बैठकर सीटी मारने वाला और इलीट दर्शक दोनों भरपूर प्यार देते हैं. चक्रवर्ती सम्राट की तरह, सभी दिशाओं में अपनी पताका फहराते मिथुन दा को जन्मदिन की शुभकामना.
Avinash Tripathi
Achcha artical .ji .mitun ke bare me me bi pablish kiya ..hamara sinema paper ko .purani varsh me mithun ..ji ek sanyasi se kaam kartha he .hena?
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