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Flying Sikh Milkha Singh- The Best Indian Athlete Ever


पैरों में  रफ़्तार , उड़ता सरदार 

१९४७ का साल, ज़मीन के दो अलग हुए टुकड़े जल रहे थे।  पाकिस्तान वाले हिस्से से बहुत से हिन्दू और सिख , अपनी जान बचाने , रेल  को अपना जिस्म सौंप रहे थे. 

रेल अगर पाकिस्तान की सीमा पार करके , भारत में प्रवेश कर गयी, तो जान और जिस्म, एक ही रहते वरना दोनों के अलग होने के इमकानात बहुत ज़्यादा थे  और रेल रोक ली  जाती तो  रेल में भी. इन्ही ख़ौफ़नाक दिनों में एक किशोर के  भाई, बहिन, मा, बाप , बलवाइयों के हाथो बेहद क्रूरता से मारे गए.  अपनों के शरीर पर हर वार को ये किशोर अपनी आँखों से देखता है. ये घटना उस किशोर की आँखों से लेकर ज़ेहन तक गहरा घाव कर जाते है.


[Source:https://sportstar.thehindu.com/]

१९४७ में भारत आये इस किशोर ने कुछ दिनों तक अपनी बहन कुछ दिन रिफ्यूजी कैंप में काटे. धीरे धीरे इस किशोर ने रेलवे प्लेटफार्म को अपना घर बना लिया और रेल में इधर उधर भटकने लगा. एक बार बिना टिकट यात्रा में पुलिस ने पकड़ लिया और किशोर , तिहार जेल कोठरी में अपने हालात को लेकर रोने लगा. . कच्चा मन , बेहद तकलीफ हालात, खाली हाथ , इस किशोर को गलत रास्ते पर ले जाने को प्रेरित कर रहे थे.

 यहाँ तक इस किशोर ने एक रात डाकू बन ज़िन्दगी होम करने तक का फैसला ले लिया. इसी बीच इसकी बड़ी बहिन ने अपने हाथ के कड़े कुरबान करके बहार निकाला  और बड़े भाई ने आर्मी में भर्ती होने के लिए उत्साहित करना शुरू कर दिया. 

१९५१ में आखिर इस युवा हो गए किशोर ने  अपने चौथे प्रयास में आर्मी ज्वाइन कर ली 

आर्मी में हर जवान को १० कम की दौड़ लगानी होती  थी , पहले १० आने वाले को स्पोर्ट्स केटेगरी में रखा जाता था और बेहतर खाने का इंतज़ाम किया जाता था. सालो से एक अदद बेहतर ज़िन्दगी, सम्मान, अच्छा खाना को तरस रहे इस  नौजवान ने अब अपने पैरो में फौलाद और जिगर में हौसला भरना शुरू कर दिया, जल्दी ही ये नौजवान भारतीय खेल में अपना नाम बना चूका था और भारत  का मीडिया इसे मिल्खा सिंह के नाम से जानने  लगा था.

[Source:https://twitter.com/indiahistorypic/status]

जल्दी ही अपनी चपल गति और ज़िन्दगी के लिए दौड़ते मिल्खा भारतीय ओलिम्पिक  टीम का हिस्सा हो जाते है जब भारतीय टीम ,  ऑस्ट्रेलिया , मेलबोर्न में अपने हुनर का मुज़ाहरा करने जाती है. काम अनुभव, सही तकनीकी का अभाव , इस ओलिम्पिक में मिल्खा और देश को निराश करता है। 

 मिल्खा हीट में हार कर बाहर उस साल के ओलम्पिक चैंपियन  हो जाते हैं लेकिन इस बार मिल्खा के हौसले में दरार नहीं आती बल्कि वो सीखने और बेहतर करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हो जाते हैं. उस साल के ओलम्पिक चैंपियन चार्ल्स जेंकिन्स के पास मिल्खा अपनी तकनीकी और प्रैक्टिस को बेहतर करने पहुंचते है और उदार चार्ल्स , मिल्खा को चैंपियन बनने के गुर देते हैं.

उत्साहित मिल्खा , अब भारत लौटते हैं और अपने बदन पर पसीने  का समंदर उड़ेल देते हैं।  बेहद कठिन और मुश्किल ट्रेनिंग सेशन और बदन तोड़ मेहनत  के बाद , मिल्खा राष्ट्रीय खेल कटक में २०० और ४०० मीटर के सब रिकॉर्ड तोड़ देते हैं. अब मिल्खा के बदन में खून , ज़्यादा गर्म और इरादे ज़्यादा इस्पाती हो गए थे. 

इसी बीच मिल्खा को पाकिस्तान से निमंत्रण मिलता है. पाकिस्तान के सबसे बड़े धावक अब्दुल ख़ालिक़ और मिल्खा सिंह के बीच की प्रतियोगिता सब आँखों में सामना चाहते थे. ख़ालिक़ बेहतरीन धावक थे और जब दौड़ते थे तो धुल का सैलाब उठने लगता था. 

पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान अपने इस धावक को मिल्खा से जिताकर , अपने लोगो के बीच पाकिस्तान का परचम फहराना चाहते थे.  इधर निमंत्रण मिलते ही मिल्खा के ज़ख्म की पपडिया उतरने लगी. हर ज़ख्म ,सब्ज़ और ज़्यादा गहरा हो गया. अपने माँ बाप भाई बहन के चेहरे ,जिन्हे पाकिस्तान में बेरहमी से क़त्ल किया गया था, हर चेहरा आँखों में उतर कर , आँखों को सुर्ख करने लगा. दर्द वेदना में मिल्खा ने पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया. भारत के प्रधानमंत्री नेहरू को पता चला कि  मिल्खा के घाव अभी भी हरे हैं तो उन्होंने मिल्खा से मिलकर, गुज़िश्ता बातो को भूलने का अनुरोध किया और पाकिस्तान जाकर, ख़ालिक़ को हराने  का सुझाव दिया.

 मिल्खा अब धीरे धीरे अपने घाव पर मरहम रखते गए और आखिर एक सर्दियों की एक सुबह  पकिस्तान में मिल्खा , अब्दुल ख़ालिक़ के सामने खड़े थे. पाकिस्तान में उस दिन सिर्फ मिल्खा और ख़ालिक़ की बाते थे. स्टेडियम में ६० हज़ार से ज़्यादा लोग , अपने सामने कुछ आसमानी सा होते हुए देखने जा रहे थे. सारे अखबारों में मिल्खा बनाम ख़ालिक़ की खबरे , पहले पन्ने  पर थी. खुद राष्ट्रपति अयूब खान स्टेडियम में दोनों का हवा में तैरते देखने के लिए उपस्थित थे. दौड़ शुरू होने के पहले कुछ मौलवी स्टेडियम में आये और ख़ालिक़ के लिए विधिवत दुआ मांगी गयी. 

स्टेडियम के हर हिस्से से ख़ालिक़ के लिए दुआ और शाबाशी की आवाज़े आ रही थी. मौलवी जब दुआ मांग कर जाने लगे, अकेले खड़े मिल्खा ने बुदबुदाते हुए कहा ,मैं भी  खुदा , ईश्वर का बंदा  हूँ, थोड़ी दुआ तो मेरे हिस्से में भी आनी  चाहिए.  आखिर तय समय पर दौड़ शुरू हुई. दोनों उस दौर के एशिया के बेहतरीन धावक  थे. . पहले १०० मीटर तक ख़ालिक़ , मिल्खा से ४ कदम आगे चल रहे थे. 

 स्टेडियम में अब ख़ालिक़ के नाम का शोर नहीं , बल्कि चीत्कार हो रहा था. मर्द तो मर्द, औरते भी ख़ालिक़ के लिए शोर में अपनी आवाज़ और दुआ मिला रही थी।  १५० मिटेर की  थी और मिल्खा अभी भी पीछे थे. दौड़ में सिर्फ ५० मीटर बचे थे।  

मिल्खा को अपने बीती ज़िन्दगी के दर्दीले लम्हे याद आ गए और मिल्खा ने  पैरो में बिजली बाँध ली. अब मिल्खा के एक एक कदम अपने , अपने साथ हुए हर अन्याय को उसी ज़मीन में कुचलने के लिए उठ रहे थे.  २ू मीटर की दूरी की फिनिश लाइन तक पहुंचते, मिल्खा का गर्व से भरा सीना आगे आता है और पूरा स्टेडियम  , सर पर पगड़ी बाँध , दौड़ रहे इस सरदार के अहतराम में झुक जाता है. राष्ट्रपति अयूब खुद मिल्खा के पास आते है और कंधे पर हाथ रख कहते है ' मिल्खा  आज आप दौड़े नहीं ,उड़ रहे थे. आप फ्लाइंग सिख हैं. अगले दिन मिल्खा और फ्लाइंग सिख का नाम सारे अखबारों अलग रौशनी में चमक रहा था. 

 

[Source:https://www.masala.com/]

कमाल ये भी है कि मिल्खा और ख़ालिक़ की पैदाइश की जगह में सिर्फ ५०० मीटर का फासला था.  एक ही ज़मीन और आबो हवा में  दोनों की परवरिश हुई लेकिन कुछ सालो के बाद, दोनों , एक रेखा  से अलग अलग  हो गए.  ख़ालिक़ ने इस दौड़ से पहले ३५ अंतर्राष्ट्रीय गोल्ड मैडल हासिल किये थे और एशिया के सर्वश्रेष्ठ धावक माने जाते थे लेकिन मिल्खा की आग ने ख़ालिक़ के हर सोने को पिघला कर पानी कर दिया था. 

अब मिल्खा अपने सम्मान और दर्द को भुलाने के लिए दौड़ रहे थे. तमाम एशियाई गणेश , कामनवेल्थ गेम और दूसरी बहुत सी प्रतियोगिता में अपने लिए सोना इकट्ठा कर रहे थे. हर सोना जीतने के बाद , मिल्खा की आँख नाम हो जाती और किशोर अवस्था का वो दृश्य , आँखों में उतर जाता जब मिल्खा को जेल से निकालने के लिए मिल्खा की बहन ने अपने सोने के कंगन बेच दिए थे.  

[Source: https://www.goodtimes.com.pk/]

अब मिल्खा अपने मांसपेशियों में इरादा जोश और ताक़त भरने लगते हैं आखिर रोम ओलम्पिक करीब है इसी साल मिल्खा ने एशिया गणेश, कामनवेल्थ के गोल्ड हासिल किये थे और वो दुनिया के ४ सर्वश्रेष्ठ ४०० मीटर धावक माने जाते थे.रोम में अपनी हीट जीत कर मिल्खा फाइनल में रेस के स्टार्ट लाइन पर खड़े बंदूक की आवाज़ का बेसब्री से इंतज़ार  करते हैं.  

आज मिल्खा इस दौड़ में अपने बदन की पूरी ताक़त, अपने पैरो में भर देते हैं.  दौड़ शुरू होती है और मिल्खा आधे से ज़्यादा रेस में अव्वल  नज़र आते है।  सबसे आगे दौड़ रहे मिल्खा को सिर्फ फिनिश लाइन दिख रही थी और अगल बगल कोई भी धावक और उसकी पदचाप भी नहीं सुनाई दे रही थी. यहीँ  मिल्खा ने अपने ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल कर दी. वो अपने गति को थोड़ा धीमा कर देते है और पीछे मुड़कर दूसरे धावक को देखने लगते हैं.  सेकंड में दौड़ की कहानी बदलने लगती है और तीन धावक इस बड़ी गलती को कुचलते हुए आगे बढ़ जाते हैं. 

 फिनिश लाइन तक पहुंचते पहुंचते , मिल्खा का सीना तो फिनिश लाइन पर पहुंच गया लेकिन साउथ अफ्रीका के मैल्कम  स्पेंस ,अपने सर को लाइन के उस पार बढ़ा देते है. भारत के एथेलेटिक्स के सबसे बड़ी विजय , सैकंड के सौंवे हिस्से से चूक जाती है.

[Source: https://www.thequint.com/]


उसके पहले और बाद में बहुत से दौड़ हुई लेकिन भारतीय एथेलटिक्स में मिल्खा की दौड़ी ये दो दौड़े , हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गयी। 

खेल को ज़िन्दगी से बड़ा बनाते मिल्खा १९ जून को हमारा हाथ छुड़ा कर चले गए लेकिन भारत का हर खेल प्रेमी, इस हाथ को हमेशा चूमता रहेगा.

©अविनाश त्रिपाठी 

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