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3 Best Holi scenes in Bollywood

 

हिंदी सिनेमा की नज़र से-होली

 भारतीय सिनेमा में होली  कई बार कहानी का मुख्य बिंदु या टर्निंग पॉइंट हुआ है. कुछ ऐसी फिल्म जिसमे होली ने कहानी के बदन में दिन होना स्वीकार किया, पेश हैं

  सिलसिला

 रिश्तो के महीन ताने बाने और विवाहेतर सम्बन्धो की परिधि में उकेरे गए इस महत्वपूर्ण विज़ुअल दस्तावेज़ में महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार 'होली ' को कहानी के केंद्र में रखा है। फिल्म में होली के बेहद लोकप्रिय और चर्चित गाने 'रंग बरसे ' के ठीक पहले अमित और चांदनी ,एक दूसरे के जीवन साथी से अपने अधूरे प्यार की कसक की चर्चा करते है। 

 फिल्म के इस दृश्य तक दोनों के जीवनसाथी को उनके पूर्व सम्बन्ध की भनक नहीं होती और रिश्ते के पूरे ताने बाने को बयान करने का होली जैसे खिलंदड़ त्यौहार से उत्तम नहीं हो सकता था।  निर्देशक यश चोपड़ा ने इसी सुलगते अहसास को रंगो की ठंडी फुहारों से धीरे धीरे बुझाते कहानी को कुछ अनफोल्ड किया और कुछ अगले कदम को झीना सा इशारा किया।   अल्हड , मस्ती में डूबे हुए अमित होली के बहाने अपनी दिल की बात जो संवाद में कहना मुश्किल और अटपटा था, उसे ख़ूबसूरती से गाने के बहाने कह दिया। 

 

[source:https://www.rediff.com]

  "सोने की थारी में जोना परोसा , खाये गोरी का यार , बलम तरसे ,रंग बरसे। गाने के स्थायी और अंतरे दोनों में गोरी से उसके यार की करीबी और बलम का नावाकिफ होना या तरसना , रिश्ते के पूरे फ़साने को बेहद ख़ूबसूरती और बिटवीन द लाइन्स की तरह प्रस्तुत करता है। 

 इस तरह से फिल्म रचाव बसाव में होली के त्यौहार, उसकी ऊर्जा, चंचलता और मज़ाक करने की छूट के बहाने निर्देशक ने बेहद सफलता से फिल्म के महत्वपूर्ण मोड़ को आसान कर दिया

 डर 

भारतीय फिल्म में बीच बीच में एंटी हीरो के कांसेप्ट पर काम तो हुआ है पर जिस फिल्म ने इस अवधारणा को घनीभूत किया वो यश चोपड़ा निर्देशित डर थी। इस फिल्म की बुनावट में भी महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार 'होली ' को जिस तरह बना गया है वो कहानी की जड़े गहरा भी करता है और सिर्फ उत्सवधर्मिता के प्रदर्शन के लिए होली का इस्तेमाल नहीं किया है। कहानी के बेहद अहम् मोड पर त्यौहार आता है और कहानी की दिशा बदल देता है।  फिल्म में किरन ( जूही चावला ) अपने भैया और भाभी के साथ होली मनाने घर आती है।   

 

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उसके साथ पढ़ रहा राहुल जो मन ही मन  में किरन को प्यार करता है, किरन पर पल पल की नज़र रखता है।  होली के उत्साह भरे माहौल में जहाँ हर रिश्ता अपनी परत खोलता नज़र आता है, राहुल भी होली के उत्सव में शामिल होकर किरण को अपनी मोहब्बत की गुलाल लगाना चाहता है। 

राहुल ,किरन के  प्यार सुनील से भी वाकिफ है फिर भी एक तरफा प्यार की आग उसे जला रही है और होली उसके लिए एक खूबसूरत मौका है जहाँ दुश्मन भी गले लग जाते है।  अपने ख्वाबो खयालो में किरन की नज़दीकी सोचता राहुल होली में करीब आने की और अपने जज़्बात बिना कहे ज़ाहिर करने की कोशिश करता है। 

   इस पूरे दृश्य संयोजन और उसके पीछे तार्किक कारण होली का न सिर्फ कोमल रंगो का गुलदस्ता होना है बल्कि भारतीय समाज में होली की मान्यता ,दिलो को करीब लाने , यहाँ तक की गैरो को अपना बनाने की भी रही है।  निर्देशक संतोषी ने त्यौहार के इसी स्वरुप की बुनियाद में अपनी कहानी बो दी और जो ऊगा वो दो अलग अलग लहजे का प्यार था. एक विशुद्ध प्यार और दूसरा एकतरफा पागलपन। 

शोले 

भारतीय फिल्मो में भव्यता , तकनीकी विशेषता , किरदारों के गठन और उनके क्रमवार उभार , संवाद और त्यौहार को बेहतरीन तरीके से फिल्म में पेश करने का श्रेय फिल्म शोले और निर्देशक 'रमेश सिप्पी को को जाता है।  रिश्ते को प्रग़ाढता देने के लिए होली के गाने को लिखा गया '  होली के दिन दिल खिल जाते है , रंगो में रंग मिल जाते है ' ठीक इसी तरह होली भारतीय समाज में भी अक्सर रिश्तो की गर्मजोशी को वापस लाकर रिश्ते मजबूत करता है। 

 

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 शोले में निर्देशक 'रमेश सिप्पी ' ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए होली को एक तरफ फिल्म के मुख्य किरदार के प्रणय निवेदन का आधार बनाया और दूसरी तरह होली के रंगो में डूबे गाँव को त्यौहार की बुनियाद के ठीक उलट , डाकू आक्रमण का मौका भी बताया। 

  फिल्म  के दृश्य  गठन में ठाकुर  बलदेव सिंह ने गाँव को डाकू गब्बर सिंह के आतंक से बचाने के लिए दो चोर , जो बेहद साहसी, बुद्धिमान और बहादुर है , को. फिल्म में बेहद ख़ूबसूरती से पैरेलल शॉट के  एक तरफ होली की मस्ती , रंग, प्रेम निवेदन और गाँव वालो की खुशियों का चित्रण किया जाता है वही दूसरी तरह डाकू गब्बर सिंह का गाँव पर क्रोधित होकर आक्रमण करना होता है. होली दोनों ही दशाओ के ठीक बीच में ऐसा आधार देता है जहाँ प्रेम की अभिव्यक्ति की जगह भी है, और ७० एम एम के बड़े परदे पर रंग के ठीक बाद , गब्बर का आक्रमण , वो कंट्रास्ट भी सहजता से दिखाने में सफल रहा है जहाँ दृश्य की ज़रुरत गाँव के बिखरे और बड़े विन्यास की थी.

 होली में पूरे गाँव का शामिल होना और फिर गब्बर के गिरोह के गाँव के हर हिस्से पर आक्रमण , जय और वीरू की खोज , के लिए इससे बेहतर कोई और घटना पृष्ठभूमि नहीं हो सकती थी  रमेश सिप्पी ने बेहद होशियारी और सिनेमैटिक ब्रिलिअन्स के साथ इस चर्चित भारतीय त्यौहार को कहानी का अभिन्न अंग बनाया और कहानी के मूड और मोटो ,दोनों के ठीक इस त्यौहार के चित्रण के बाद बदल दिया

©Avinash Tripathi

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