A R Rahman - A Musical Maestro
सुरो पर नक्काशी करता कंपोजर - रहमान
हर रोज़ जब सारा आलम सो जाता है , आसमान के संगीत से बारीक रेशम सी धुनें हलकी हलकी बरसती है लेकिन इसमें तर होने का हुनर और बारिश को छूने की सलाहियत ,सिर्फ बिरलो के पास होती है। देर रात' तक अपने स्टूडियो में इसी बारिश में भीगते हुए रचने का करतब रहमान की खासियत है
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चेन्नई के एक ठन्डे स्टूडियो में एक २४ -२५ साल का नौजवान ,अपनी लम्बी घुंघराली जटाओ में बहती हुई संगीत लहरियो को ऐसे रोप रहा था जैसे शिव ,गंगा को केश में बाँध रहे हो।
शताब्दी बूढी होकर अपना चोला बदलने की तैयारी में थी और ९वे दशक की शुरुआत में ये नौजवान अपने स्टूडियो में कंप्यूटर के झीने पारदर्शी से परदे पर स्वर लहरियो को टांक रहा था. पियानो की महीन रेशमी आवाज़ , ड्रम की भारी दमदार आवाज़ के साथ बांसुरी के हृदयस्थल से निकली छनी हुई मीठी पुकार ,जब कंप्यूटर पर उभरते थे , ये लड़का इन सबको को समवेत कर नक्काशी कर देता है।
१९९२ में उंगलियों के पोरो से जादू रचता ये नौजवान अपनी पहली ही फिल्म में उस्ताद के रुतबे तक पहुंच गया। ९२ में रिलीज़ हुई मणिरत्नम की फिल्म 'रोज़ा' में अनोखे संगीत संरचना से बेहद कम उम्र का ये उगता हुआ नौजवान , लोगो की ज़बान पर पसंदीदा ज़ायके की तरह चढ़ चुका था। हिन्दू पैदायश और इस्लामी तरबियत से आगे बढ़ा ये संगीत का देवता दिलीप शेखर उर्फ़ अल्लाह रख्खा रहमान था जिसे दुनिया ए आर रहमान , मोजार्ट ऑफ़ मद्रास के नाम से भी जानती है।
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तमिल फिल्म में म्यूजिक कंपोजर पिता के घर जनवरी १९६७ पैदा हुए दिलीप शेखर के अधपके मन में कच्चा कच्चा सा संगीत उग रहा था। पिता आर के शेखर की परवरिश और तरबियत का असर इस छोटे से बच्चे पर इस क़दर पड़ा की लग़्ज़िश भरी चाल के दौर में इसने मौसिकी के साथ तालमेल बिठाकर चलना सीख लिया।
अभी उम्र पकी भी नहीं थी की ज़िन्दगी और संगीता का रहबर, हाथ छुड़ा बहुत दूर चला गया। ९ साल की उम्र में पिता की मौत से टूटे दिलीप शेखर के अदृश्य आंसू , बेटी की नाज़ुक हालत , माँ के दिल को खरोंच रही थी।
मुस्लिम गुरु की सलाह मान , पूरा परिवार इस्लाम कबूल कर चूका था और दिलीप अब रहमान हो गया था। मुफलिसी की चादर ओढ़े रहमान को अपनी पहली कमाई मात्र ५० रुपये मिले थे जो उन्हें एक रिकॉर्ड प्लेयर बजाने के एवज़ में मिले थे. लगभग सारे वाद्य यंत्रो पर रहमान की उंगलिया ऐसे थिरकती थी जैसे इज़ाडोरा डंकन के पाँव बेसुध होकर नृत्य कर रहे हो .
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इन्ही खूबियों को ध्यान रखते हुए मशहूर निर्देशक मणि रत्नम ने अपनी फिल्म 'रोज़ा' का संगीत गढ़ने के लिए इस बाकमाल कंपोजर को बुलाया। रोजा' में रहमान ने जो किया वो भारतीय म्यूजिक स्कोर के लिए बिलकुल नवीन प्रयोग था। अपनी पहली फिल्म में ही बहुत से अवार्ड जीतकर रहमान ने अपने आने और छाने ,दोनों का जयघोष कर दिया।
मणि रत्नम की एक और फिल्म 'बॉम्बे ' में रहमान ने फिर अपने नए प्रयोग और दिलकश संगीत से लोगो का दिल जीत लिया। साउथ फिल्म इंडस्ट्री में ध्रुव तारे की तरह चमक रहे रहमान ने 'रंगीला' से हिंदी फिल्मो के मजबूत दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक दी।
बॉलीवुड इस नयी प्रतिभा को हतप्रभ सा खड़ा देख रहा था तभी दिल से में रहमान ने एक बार और करिश्मा कर दिया. जहाँ छैया छैया में अद्भुत संगीत रचना से लोगो की दिल की बारीक रगो पर नक्काशी कर दिया ,वही ' दिल से रे ' में रहमान ने अपनी आवाज़ को सातवे फलक तक पंहुचा दिया। अब रहमान 'ताल सहित कई बॉलीवुड में वेस्टर्न म्यूजिक की तेज़ लहरियो को हिन्दुस्तानी और कर्णाटक संगीत के गहरे सुरो से मध्धम मध्धम बाँध रहे थे.
रहमान की कामयाबी का शायद सबसे बड़ा कारण उनका वेस्टर्न म्यूजिक में ट्रैंड और हिंदुस्तानी संगीत की जड़ो का गहरा जानकार होना है. यही वजह रही कि रहमान भारत के अलावा बहुत सी विदेश फिल्म और ऐड में भी बेहद कामयाब रहे. रहमान का रचा हुआ 'एयरटेल ' की धुन दुनिया की सबसे ज़्यादा डाउनलोड की जाने वाली धुन है। लार्ड ऑफ़ द वॉर सहित कई विदेशी फिल्म में म्यूजिक देने वाले रहमान ने 'स्लम डॉग मिलेनिअर ' में वो करिश्मा भी कर दिया जिसके लिए हर भारतीय लालायित रहता है।
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दो आस्कर जीत रहमान ने भारतीय संगीत की सघन संरचना और उसकी माधुर्य से विदेशी क्रिटिक को भी आश्चर्य चकित कर दिया. रहमान के घर की ज़्यादातर अल्मारिया उनके द्वारा जीते हज़ारो तमगे से भरी है इसमें एक तमगा दुनिया के बेस्ट सेल्लिंग म्यूजिक आर्टिस्ट का भारत के एकलौते कंपोजर जिन्होंने इस मक़ाम पर पहुंचकर, दुनिया में भारत की मौसिकी को मुख्तलिफ उरूज़ दिया.
यही नहीं रहमान एशिया के पहले कंपोजर है जिसने एक साल में २ ऑस्कर जीतने का रुतबा हासिल हुआ है. १०० से ज़्यादा देशी विदेशी अवार्ड , मोस्ट इन्फ्लुएंशियल कंपोजर के तमगे के साथ रहमान आज सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के फलक पर सबसे रचनात्मक कंपोजर है।
©अविनाश त्रिपाठी
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