जिस्म फौलाद -दिल रुई
दिसंबर बेहद ठंडी रात में जब कोहरे की रज़ाई में लिपटे सितारों से ठंडी आंच रह रह झर रही थी , पंजाब के एक गाँव के घने तिमिर में अचानक एक बाल रुदन से घर के प्रतीक्षारत चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. गाँव के तालाब, खेत की मिटटी में धूल के फूल की तरह पलता बढ़ता ये बच्चा बड़ा होकर लुधियाना के स्कूल से ज़िन्दगी का ककहरा सीखने लगता है. ग्रामबालक के कच्चे भीगे मन में न जाने कहा से श्वेत धवल परदे पर अपनी आकृति उकेरने का शौक़ चढ़ गया. जहाँ चाह रगो से होते हुए रूह में मिल जाती है ,उसका रास्ता निकालने को परमेश्वर भी मजबूर हो जाते है।
एक दिन मैगज़ीन में नए अभिनेता के तलाश का इश्तेहार देखा और पंजाब के शादाब गाँव से निकले इस उठते से नौजवान ने पाँव में बम्बई का सफर बाँध लिया। लगभग ६ दशक तक किरदारों को अपना जिस्म चेहरा और रूह देते इस सबसे खूबसूरत मरदाना अभिनेता का नाम धर्मेंद्र , धर्मेंद्र सिंह देओल था.
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( source - pinterest ) |
फिल्मफेयर की प्रतियोगिता जीत धर्मेंद्र बम्बई में 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे ' से परदे के अपने ख्वाब को पूरा करने निकल पड़ते है। सुनहरा सफर जब 'बंदिनी ' के पड़ाव तक पहुँचता है, धरम , लड़कियों की चाहत की फेहरिश्त में शिखर पर पहुंच जाते है.
परदे पर धर्मेंद्र जब रोशन होते , लड़कियों के दिल , दिल के दरिया में डूबने लगते , धरम अपनी नायिका को प्रेम करते तो दर्शको में लाखो लड़कियों के ह्रदय के रेतीले कछार टूट जाते. मर्दाना खूबसूरती, पुरुषत्व से भरे , बलिष्ठ शरीर वाले धरम बेहद सहज अभिनय वाले अभिनेता रहे.
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(Source -Telegana Today) |
नूतन के साथ 'बंदिनी में धरम , जिस्म के उधड़े हुए ज़ख्म को सी, न जाने कब रूह की परते सवारने लगते है. जेल में क़ैदी की भूमिका में नूतन , जीवन के उहापोह में होती है. जेल के डाक्टर बने धरम , क़ैदी नूतन' के रिश्ते ज़ख्म पर सहानभूति की ठंडा फाया रख देते है.
बिमल रॉय की इस फिल्म ने धरम के मजबूत क़द काठी में बेहद नाज़ुक तरह से धड़कते दिल को दुनिया के सामने रख दिया. धरम के ख्वाब अब रंग ले रहे थे इसी बीच उन्हें ;काजल मिलती है जो
श्याम होने के बावजूद उनकी रंगीन ख्वाबो को और रंग भरा बना देती है। काजल में मीना कुमारी से अभिनय की नयी बारीकी सीखते धरम को मीना का साथ अच्छा लगने लगा और दिल का एक अनछुआ हिस्सा नम होने लगा. नूतन के साथ 'बंदिनी' में प्यार के शीर्ष बिंदु तक पहुंचते धरम एक बार 'दिल ने फिर याद किया ' में नूतन के समक्ष खड़े होते है. इस बार नूतन के दोहरे किरदार की उलझन में सुलझन तलाशते धरम, मोहब्बत में पगे हुए किरदार में मोहब्बत नयी ऊंचाई पाते है। अपनी कद काठी, ग्रामबालक की सहजता,बेहद गढ़े हुए सुदर्शन चेहरे के अनुरूप ख्याति तो मिल गयी थी लेकिन घने तिमिर वाली रात में ध्रुवतारा बनना अभी भी बाकी थी। ये जादू हुआ 'फूल और पथ्थर ' में जब धरम एक अभिनेता से एक बड़े स्टार में तब्दील हो गए.
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(source- filmfare) |
दुनिया की नाइंसाफी का शिकार धरम, एक दिन एक घर लूटने चलता है और बीमार मीना कुमारी की हालत उसे इंसान बना देती है. पहली बार बिना कमीज के दिखे धरम और कलाकृति सी मांसपेशियों में न जाने कितनो का दिल लपेट लेते है.
मीना कुमारी का धरम के प्रति अनुराग, हर फ्रेम में सुलगता हुआ दिखाई देता है. बेहद शालीन , सुदर्शन धरम का अभी कई चेहरे इंतज़ार कर रहे थे. ७० के दशक में धरम ने अपना चेहरा बदला और अमिताभ के साथ 'शोले ' में बीरु हो गए.
ये फिल्म धरम के परदे की ज़िन्दगी में बेहद महत्वपूर्ण होने के साथ उनके निजी जीवन की ज़रूरी फिल्म बन गयी. किरदार की लोकप्रियता के साथ धरम ने उस गाँव की दोशीज़ा का भी दिल जीत लिया जिसके घर के बाहर बहुत से अभिनेताओं की क़तार लगी थी. स्वप्नसुंदरी हेमा मालिनी 'बीरु' के प्यार में हार अपनी ज़िन्दगी उनके नाम लिख देती है.हालाँकि शोले ' से पहले 'सीता और गीता ' ,राजा जानी ; जैसी कई फिल्म में धरम और हेमा अपने किरदारों के बहाने मोहब्बत की आग को हवा दे रहे थे. इसी शोले ने धरम के नाज़ुक दिल में लम्हा लम्हा सुलगते जज़्बात को भड़का कर , शोला कर दिया था. बेहद दिलचस्प है की धरम इसफिल्म में ठाकुर बलदेव सिंह का किरदार ओढ़ना चाहते थे.
फिल्म के ठीक पहले संजीव कुमार ने अपने दिल की वसीयत पर , हेमा का नाम लिखने की कोशिश की और उनकी ये कोशिश ,हेमा द्वारा खारिज कर दी गयी. बीरु का रोल , संजीव कुमार के पास जाने और दोनों के बीच मोहब्बत के पगने की संभावना को देखते , धरम ने फ़ौरन बीरु के किरदार में खुद करने का और हेमा के करीब जाने का मौका देना का फैसला किया. इसी फिल्म के दृश्य ,जिसमे धरम ,हेमा को निशानेबाज़ी सिखाते है , धरम की चंचलता और मोहब्बत का बेहतरीन उदहारण है.
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(Source - pinkvilla ). |
इस दृश्य में धरम लाइटमैन को हर रोज़ रिश्वत देते थे ताकि वो ,हेमा को देर तक दिल के करीब रख सके. सत्यकाम में धरम ने अपने सुदर्शन चेहरे से कही आगे बढ़कर ऐसे किरदार में अपना क़तरा क़तरा लहू डाल दिया।
सत्य निष्ठां से काम करने की कोशिश में लगे एक नौजवान को बार बार , कामयाबी के लिए दूसरे रास्ते पर जाने है. अपने सामने एक महिला के सतीत्व की रक्षा न कर पाने और जीवन में कुछ हासिल न कर पाने का बिछोह , सत्यप्रिय ( धर्मेंद्र) को अंदर से तोड़ने लगता है।
कुछ ज़ख्म , रगो बहते हुए रूह तक पहुंच जाते है। धरम के यही ज़ख्म
, जाते है. , पश्चाताप ली आग में जलते हुए धर्मेंद्र , इस फिल्म में अभिनय की उस यात्रा पर पहुंच जाते है जो उनके सबसे बड़े तीर्थ का उत्तराधिकारी बना देती है।
धरम अब शर्मीले और शालीन किरदारों के इतर बेहद खुले हुए चरित्रों की आवाज़ में बोलने लगे. चुपके चुपके में जहाँ उनकी हास्य क्षमता और खिलंदड़ रूप का दर्शन हुआ वही मजबूत बहादुर युवक की भूमिका में धरम , धर्मवीर' में नज़र आये. जुगनू, चरस सहित बहुत सी फिल्म में प्रयोग करते धरम के दिल में एक बाप भी बोलने लगता है और आखिर अपने बेटे 'सनी ; को बेताब ' में प्रोडूसर कर धरम, एक नयी कुर्सी पर बैठ जाते है.
धर्मेंद्र के कैरियर की दूसरी पारी में अनिल शर्मा जैसे फिल्मकार ने उनकी शख्सियत को अलग अलग रंग देने की कोशिश की और वो एक हद तक कामयाब भी हुए.
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(Source- pinterest ) |
९० के दशक में जब सैकड़ो फिल्मो और दर्जनों हिट के बाद भी धरम को कोई अवार्ड नहीं मिलता तो उन्हें फिल्मफेयर लाइफ टाइम अवार्ड से नवाज़ा जाता है. अवार्ड शो में 'दिलीप कुमार ' का ये कहना कि मुझे काश धरम जैसा सुदर्शन बनाया गया होता, भोले धरम की आँखों में अचानक बरसात भर देता है. मर्दाना मजबूत जिस्म , बेहद सुदर्शन चेहरे और रूई के फाये की तरह नरम दिल जैसा धरम होना इन्तेहाई मुश्किल बात है।
© अविनाश त्रिपाठी
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