Prince of Parallel Cinema - Farooq Sheikh
कला फिल्मो का सुकुमार राजकुमार -फ़ारुख़ शेख
सदी के सातवे दशक की हवा अमिताभ के प्रादुर्भाव से गर्म होकर दहक रही थी , इसी बीच में 'गर्म हवा ' में शीतल चांदनी की मानिंद एक लड़का अपने होने मात्र से ठंडक फैला रहा था. तेज़ तपती हवाओ के बीच ''धीरे धीरे बहते इस सुकुमार मासूम से लड़के का नाम फारुख शेख था.
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१९७३ आयी इस 'गर्म हवा ' जहाँ बलराज साहनी के करियर की आखिरी फिल्म थी वही इस फिल्म ने फारुख शेख को परदे से लोगो के दिल तक पहुंचने का रास्ता दिखा दिया.
ऍम एस सत्थु की इस फिल्म ने भारत में नई वेव सिनेमा का बुनियादी पथ्थर रख दिया और विभाजन के ऊपर सबसे नायाब फिल्म बना दी.
भारत का ऑस्कर में प्रतिनिधित्व करने वाली इस फिल्म ने भारत को एक ऐसा अभिनेता भी दिया जिसने ताउम्र पानी का बदन ओढ़ लिया. जैसे बर्तन में ढालो , फारुख वैसे हो जाते.
ज़मींदार और बड़े वकील पिता की सरपरस्ती में वकालत का झूठ सच का खेल सीखते फारुख , धीरे धीरे इस खेल से बाहर होने का रास्ता निकालने लगे.
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कला फिल्मो के मजबूत चेहरे के रूप में फारुख की 'गमन' एक मजबूत शिला पत्थर की तरह उनके पैर सिनेमा में गहरे गाड़ देती है. 'अपने छोटे से शहर की छोटी सी ज़िन्दगी से निकल 'मुंबई के बड़े कैनवास में ज़िन्दगी के छोटे संघर्ष जीता फारुख एक आम इंसान के दर्द, संघर्ष को अपने पैरो में बाँध लेता है.
पत्नी स्मिता पाटिल को गाँव में छोड़ आया फारुख शहर की हर दिक्कत से रूबरू होकर वापस अपने शहर जाना चाहता है लेकिन ये शहर कई बार पैरो में जकड़न भी डाल देती है। बेहद स्वाभाविक लहजे में किरदार की स्किन में घुसते फारुख इतने सहज होते की अभिनय और सच की बारीक पंक्ति कब टूट जाती, पता ही नहीं चलता। लगभग इसी समय पर देश के सबसे ख्यातिनाम निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म 'शतरंज के खिलाडी ' में अपने हुनर को नेज़े की तीखी नोक से शार्प करते रहे.
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बहुत सी ऑफ बीट फिल्म के बादल तले फारुख अपने हुनर की आग को पक्का कर रहे थे। इसी बीच आयी फिल्म 'नूरी ' ने फारुख शेख को न सिर्फ बड़ी कामयाबी दी बल्कि घर घर में फारुख जाना पहचाना नाम हो गए. "आज रे औ मेरे दिलबर आजा' में फारुख प्यार की शबनम में भीगे प्रेमी की तरह कातर पुकार लगाते सुने जा सकते है.
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यश चोपड़ा द्वारा निर्मित और मनमोहन कृष्ण द्वारा निर्देशित फिल्म ने फारुख शेख को ऐसा चेहरा बना दिया जो जाता भी था, अभिनय भी करता था और खालिस सामानांतर फिल्म के अभिनेता की तरह से कहानी को सच का ही जामा नहीं पहनाता था.
अपनी बहुत सारी फिल्म में अलग अलग किरदार निभाने के साथ फारुख की जवानी का पहला प्यार यानि थिएटर अब भी उनकी रगो में उड़ान भरता था. 'तुम्हारी अमृता में शबाना के साथ फारुख सिर्फ बातचीत और खतो किताबत से अपने किरदार को इतना गहरा ले जाते है की सामने बैठ हर शख्स प्यार की गर्माहट अपने सीने के बटन के ठीक नीचे महसूस कर पाता है।
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अपने साथ पढ़ी शबाना आज़मी के साथ अभिनय की जिस ऊंचाई को अपने सहज अभिनय से फारुख ने छुआ था, वो सहजता आना , बेहद मुश्किल कार्य है. जिम ,फिटनेस, नृत्य घुड़सवारी जैसे तत्वों को अभिनय बनाने वाले हीरो के बीच में खालिस अभिनय की दूकान खोले फारुख कई बार ऐसे बाजार में अपना सामान बेचते भी नज़र आये जहाँ उनका कोई खरीददार नहीं था.
[Source - https://theprint.in] |
देश को खालिस अभिनय से परिचय करने वाले बड़े कलाकार फारुख शेख हमारे बीच तो नहीं है लेकिन जब भी अभिनय की किताबे खंगाली जाएँगी, एक बड़ा और तवील पन्ना फारुख के नाम ज़रूर आएगा
©अविनाश त्रिपाठी
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