The Most Good Looking Actor- Shashi Kapoor
ज़िंदा कामदेव सा - शशि कपूर
कहते है खूबसूरत होने का हक़ सिर्फ लड़कियों को है, मर्द, बलिष्ठ होना चाहिए, पुरुषत्व से भरा हुआ , लेकिन ६० - ७० के दशक में एक लड़का और था जिसके गालो में डिंपल पड़ते था, तीखी स्वाभिमान सरीखी नाक, दही में केसर सरीखा रंग ,इतना गौर, धवल , निष्कलंक। खूबसूरत इतना की ज़िंदा कामदेव सा।
वो गर्दन हिलाता , पैरो में लग़्ज़िश के साथ चलता तो अँधेरे हाल में बैठी लड़कियों के दिल के साहिल पर ज्वार आ जाता , रेतीले किनारे टूट जाते., एक तिरछे दांत वाली मुस्कराहट से हँसता , तो लड़कियों के रुख पर गुलाल मल जाता , श्वेत दंतुरित मुस्कराहट ऐसी की पुरुष भी रश्क़ करने लगते. बरगद के शुष्क घनी छाया के ठीक नीचे बंजर में इतना खूबसूरत और सुगन्धित फूल हो सकता है, यकीन नहीं होता. लड़का होकर भी ख़ूबसूरती और टैलेंट में कपूर खानदान के इस सबसे फ्लेमबॉएंट युवक का नाम शशि कपूर था।
फागुन का गुनगुना, अधसिका मौसम था , १८ मार्च १९३८ को टेसू के फूल से बने गुलाल सा मासूम बच्चा अपने वक़्त के थिएटर के सबसे बड़े नाम पृथ्वी राज कपूर के घर होता है. भारी भरकम नाम की परंपरा में इस बच्चे का नाम , बलबीर रख दिया जाता है लेकिन बेहद शरीर, चंचल इस बच्चे को लोग घर में शशि बुलाने लगते है. पलक खुलकर फड़फड़ाने की उम्र तक पिता देश के नामचीन अदाकार और भाई निर्देशक हो चुका था. खेल खेल में सुन्दर सा ये बच्चा आर्क लाइट के इर्द गिर्द मुखौटो के खेल खेलने लगा।
कई फिल्म में बाल कलाकार के किरदार करते शशि के बदन के रोमकूपों से ज़ाफ़रान की खुशबु उठने लगती है और अब जवान हो चुके शशि के घुंघराले बाल , लड़कियों के दिल को उलझाने के काबिल हो गए थे. अपनी पहली फिल्म 'धर्मपुत्र जो यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित थी, में शशि बंटवारे के रिसते दर्द और उग्र हिन्दू चेहरे की शक्ल में अपने भोले चेहरे से बहुत आगे निकल गए.
इस फिल्म के गाने ' एक था गुल और एक थी बुलबुल ' में कैमेरा जब शशि की मुस्कराहट को क़ैद करता है , श्वेत धवल दंतपंक्ति में एक तिरछा दांत लाखो लड़कियों के गाल में डिंपल डाल देता है. नंदा के साथ आसमानी जोड़ी जैसा शशि, डिंपल वाले ऐसे हीरो के रूप में उभर रहे थे जो परदे पर मोहपाश सा दिल बाँध लेता है. शशि मुस्कुराते हुए गर्दन को ख़ास अंदाज़ में झटक कर कुछ कहते तो दर्शको में बैठी लड़की के हलक में आह निकल जाती। शर्मीले सुकुमार शशि जब 'शर्मीली ' में राखी के साथ " खिलते है गुल यहाँ ; गाते है तब न जाने कितनी नवयौवना को पहली बार प्यार के शबनमी अहसास का अंदाजा हुआ.
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बहुत सी फिल्म में इश्क़ का मुकम्मल चेहरा बने शशि आखिर उस फिल्म तक पहुंचे जिसके एक संवाद ने शशि को सदियों के सिनेमा इतिहास में अमर कर दिया. "दीवार ' में अँधेरे पुल के नीचे पुलिस इंस्पेक्टर शशि, डॉन भाई अमिताभ के सवाल के जवाब में 'मेरे पास माँ है " कहते है तो ये आर्तनाद गर्व के घोषणा के साथ रूह में उतर जाता है शशि के चेहरे की एक एक मांसपेशी इस जयघोष में शामिल होकर शशि को अभिनय का मोक्ष दिला देती है.
अपने बेहतरीन अभिनय और बड़े कमर्शियल स्टार के इतर शशि अच्छी संवेदनशील फिल्म का परचम थामे ऐसे फिल्मकार थे जिसने हिंदी सिनेमा को नई वेव का मतलब बताया। जूनून , नई दिल्ली टाइम्स जैसी फिल्म प्रोडूस कर शशि ने अपना दायरा इतना बड़ा कर लिया की अभिनेता शशि अच्छी फिल्मो के ध्वजवाहक बन गए. यही नहीं शशि कपूर का भारतीय सिनेमा और कला को सबसे बड़ा योगदान पृथ्वी थिएटर है .
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पिता के जीवन के मूल तत्व को ज़िंदा रखने के लिए रंगमंच का मंदिर पृथ्वी आज भी भारत के रंगमंच का सबसे बड़ा मर्क़ज़ है. शशि जा नहीं सकते और जिनके पास "माँ होती है ' वो कभी नहीं मरते। ..
© अविनाश त्रिपाठी
एक जबरदस्त कलाकार शशीजी कलयुग
ReplyDeleteबेहतर फील्म बनाकर काफी खूष थे. विजेता भी अच्छी थी