Rajnikanth -The Biggest Superstar of South Asia
Meaning of being RAJNIKANTH
रजनीकांत होने का मायने समझना हो तो अविश्वसनीय लगने वाले उनके ज़्यादातर चुटकुलो की भावना समझो. रजनी होने का मतलब समझ आएगा . ऐसे ही एक चुटकुले मे कहा गया है कि भगवान ने 6 दिन मे पृथ्वी और स्वर्ग को बनाया, सातवे दिन रजनीकांत बनाया .
कलाकारो का महिमामंडन भारत मे आम है लेकिन शिवा जी राव गायकवाड़ को रजनीकांत बनने मे एक लंबा सफ़र तय करना पड़ा. कर्नाटक मे बस कंडक्टर शिवा जी ने टिकट पॅंच करते करते एक दिन सिल्वर स्क्रीन पर अपने पॅंच से हमेशा के लिए अपना निशान बनाना चाहा.
[Source - Britannica ] |
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70 के दशक की शुरुआत थी. बस मे अपनी अजूबे
एक्शन से लोगो की नज़र मे आए शिवा जी गाएकवाड़ ने जब अपनी पहली तमिल फिल्म "अपूर्व
रागानल' से अपने करियर की शुरुआत की भारतीय
सिनेमा को भी अंदाज़ा नही थी कि ये कलाकार एक दिन इतने बड़े मिथ मे बदल जाएगा. एक शराबी
, पत्नी को प्रताड़ित करने वाले पति के खल चरित्र में रजनी ने अपने अभिनय की ख़ास अदाएगी
की बानगी पेश कर दी.
बचपन से ही
चेहरे पर अलग अलग चेहरे ओढ़ने की कोशिश करते शिवाजी
ने युवा अवस्था में मद्रास फिल्म इंस्टिट्यूट से किरदारों की स्किन में प्रवेश करने का हुनर सीखा। इसी इंस्टिट्यूट की एक उदास शाम को शिवाजी ,अपने भविष्य को लेकर एक कोने में सिमट रहे
थे ।
तमिल निर्देशक बालचन्दर
ने शिवाजी के कंधो पर हाथ, और जिगर
में हौसला भरते हुए बोला कि तुम तमिल सीख लो
, तुम में कुछ बहुत ख़ास है. कन्नड़ और मराठी
भाषा में सिध्ह्हस्त , शिवाजी ने जल्दी ही
तमिल भाषा सीख ली। यहाँ से शुरू हुई तमिल फिल्म की यात्रा ने शिवाजी को अपने अलहदा और मुख्तलिफ अंदाज़ बनाने का मौका
दे दिया। पहली ही फिल्म को कई नेशनल अवार्ड,
शिवाजी की रगो में लोहा भरते चले गए।
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शिवाजी , अब अपने हाथ उठाकर, अपने क्षेत्रीय आसमान
को और ऊँचा करना चाहा और हिंदी सिनेमा के बड़े कैनवास को अपनी अभिनय और जुदा जुदा सी स्टाइल में अलग रंग से रंगना चाहा.
तमिल फ़िल्मो की कामयाबी के बाद शिवा जी गाएकवाड़
ने जब हिन्दी फ़िल्मो का रुख़ किया पहले से शिखर छू रहे अमिताभ बच्चन और दूसरे कलाकार
ने उनका दिल खोल के स्वागत किया. हिन्दी दर्शको के बीच अपने अनूठे अंदाज़ और अलग संवाद
से नयी जगह बनाते बनाते शिवा जी ने रजनीकांत बनने का सफ़र तय कर लिया.
अँधा कानून में रजनीकांत ने अमिताभ के एंग्री यंग
मैन के तंग कपडे में खुद को ख़ूबसूरती से समा लिया। अलग अलग रंग की बेवफाई , उत्तर दक्षिण , भगवान् दादा
के बाद ,रजनीकांत उस फिल्म तक पहुंचे जिसने उनकी छल को बेहद साधा हुआ साबित
कर दिया. १९८९ में आयी 'चालबाज़ ' ने रजनीकांत
को कामर्शियल स्पेस में बड़ा अभिनेता साबित
कर दिया.
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अपनी शख्सीयत के कठोर और नुकीले
हिस्से को तराशकर रजनी ने हास्य का ऐसा लच्छेदार प्रदर्शन किया कि लोग रजनी के इस रूप के कायल हो उठे. फिल्म श्रीदेवी
के डबल रोल और डांस की वजह से भी बेहद चर्चित रही लेकिन रजनी का रंग, अब दर्शको के सैर चढ़कर बोलने लगा था. सिगरेट हवा में उछलकर, होंठो में दबा लेना, ख़ास अंदाज़ में
रिवाल्वर , उंगलियों के बीच चरखी की तरह घूमना अब हिंदी दर्शको का नया शगल बन गया था.
"हम " में रजनी ने अमिताभ के साथ, अपनी किरदार को शख्त लहज़ा देने की कोशिश किया। हिंदी में मिलती सफलता भी रजनी की बेचैनी को काम
नहीं कर पा रही थी, वो आसमान में सिर्फ एक चमकता सितारा नहीं बनना चाहते थे बल्कि दुसरो को रौशनी देने वाले सूरज बनना चाहते
थे. रजनी अब अपने लिए नया आसमान बनाना चाह
रहे थे.
एक सुबह रजनी ने अपनी ज़मीन की और लौटने का फैसला किया हिन्दी के बाद रजनीकांत तमिल फिल्मो को अपनी कद्दावर शख्सियत से ज़्यादा मजबूत करने का फैसला किया. अमिताभ के साथ हम करते हुए फिल्म का मुख्य किरदार, रजनी के ह्रदय की किसी गहरी रग में रह गया था.
[Source- YouTube] |
एक क्रिमिनल का सुधारकर, बेहतर इंसान
बनना और उसे फिर उसके गुज़िश्ता दिनों में भेजने की कवायद, फिल्म 'बाश्शा ' की बुनियाद बनना इस फिल्म ने रजनी
को साउथ में देवता सरीखा स्टेटस दे दिया.
अपने चरित्र और किरदार को लार्जर दैन लाइफ देते हुए रजनीकांत ने खुद को तमिल
फ़िल्मो का सिरमौर बना दिया. फ़िल्मो के चरित्र अक्सर अभिनेता पर भारी पड़ जाते है
और कई अभिनेता अपने निभाए किरदार की वजह से पूरी ज़िंदगी पहचाने जाते है. रजनीकांत
ने इसके ठीक उलट हर किरदार को रजनीकांत की पहचान और ज़बरदस्त ताक़त दी.
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ये उनका ही
कमाल था कि एक क्षेत्रीय भाषा का स्टार इतना बड़ा हो गया कि उसे एशिया का जैकी चैन के
बाद सबसे महँगा स्टार माना गया. हाल ही आई फिल्म क़बाली ने रजनीकांत की अपार लोकप्रियता
की नयी कहानी लिखी है. लोकप्रियता की नयी परिभाषा लिख रहे रजनीकांत के लिए कई कंपनी
ने शुक्रवार छुट्टी घोषित कर रखी है.
हवाई जहाज़ पर रजनीकांत और क़बाली का पिक्चर,
देश भर मे 12000 से ज़्यादा स्क्रीन पर रिलीज़ ,मंदिरो मे प्राथनाओ का दौर शायद किसी
हॉलीवुड स्टार के लिए अजूबा होगा. शुक्रवार के दिन किसी की दिलचस्प टिप्पणी आई की आज
भारत मे दो तरह के लोग है, एक जिनके पास क़बाली की टिकट है ,दूसरे जिनके पास नही है.
देश के अलग अलग हिस्सो से फ़ैन कबाली देखने चेन्नई फ्लाइट बुक करा के जा रहे है. भारत मे किसी फिल्मी सितारे का इस कदर लोकप्रियता खालिस अजूबे से
कम नही है.
आज ७० साल के हो गए रजनी सर से बेहतर बहुत से अभिनेता आएंगे लेकिन दर्शको में भगवान् सा क़द और रुतबा पाने वाला कभी कोई ,इस धरती पर चलेगा , इसका भरोसा बहुत कम है
©अविनाश त्रिपाठी
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