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Charlie Chaplin - The King of Laughter



  दर्द के बादल से हंसी की बारिश करता चार्ली

जब दर्द गहरा जाता है, और नसो मे बहने लगता है तब हम दर्द से उबरने के लिए कुछ ऐसा करते है कि होंठ मुस्कान से खिल जाते है, इसलिए किसी को मुस्कुराता देखो तो ये भी अंदाज़ा लगाना कि कोई दर्द बहुत अंदर धीरे धीरे तड़प तो नही रहा. अपने दर्द के बादल से लोगो पर हँसी की बारिश करने वाले एक पीर, फकीर या यू कहूँ मसीहा का नाम चार्ली चॅप्लिन था. 


[source- https://wallpapercave.com/charlie-chaplin-wallpaper] 

 

19वी सदी जब नब्बे की अवस्था मे थक हार का हाफने लगी थी, अप्रैल के तीसरे सप्ताह मे लंदन के ठंडे मौसम मे एक बच्चा कौतूहल से अपनी आँखे खोलता है. इससे पहले दुनिया की समझ हो, तीन साल की उमर मे पिता ने माँ और चार्ली को अपनी ज़िंदगी खुद सवारने को कह दूसरा साथी चुन लिया. मा लंदन के बड़े थियेटर मे अलग अलग किरदार निभाती थी लेकिन खुद पत्नी के किरदार मे उसके नंबर कम हो गये. तकलीफ़ , अधूरा बचपन एक हद तक ग़रीबी, चार्ली के गीले मन पर रेत की तरह चिपकती जा रही थी. 

उम्र दराज़ होती मा स्टेज पर दर्द के सुर लगती तो कुछ राग गले से फूटने से इनकार कर देते. अब सुनने वालो की तादात बहुत कम हो गयी थी, ऐसी ही एक शाम जब चार्ली की मा ने गाना गाया तो गले ने अचानक हड़ताल कर दी, दिल की खराश गले मे उतरी तो दर्शक मखौल मे हसने लगे, बगल मे खड़ा चार्ली स्टेज पर उतर आया और मा की आवाज़ मे हूबहू सुनाया तो दर्शक उसकी इस बानगी मे वारे वारे हो गये. थोड़ी ही देर मे स्टेज सिक्को से भर गया. 


[Source:https://www.imdb.com/name/nm0000122/]


अबोध चार्ली का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था. मा के दर्द की नकल उतार चार्ली ने पहले सबक मे दर्द को हँसी बनाकर बेचना सीख लिया. चार्ली ने संघर्ष के दिनो मे छोटे नाटको मे काम से लेकर फूलो बेचने और खुशबू का भी व्यापार किया. 

दर्द के इस सफ़र मे एक आँख मे आँसू और एक आँख मे मुस्कान लिए चार्ली दर दर भटक रहा था की उसकी मुलाक़ात मशहूर नाटककार हेमिल्टन से हो गयी. उनके साथ नाटक करते चार्ली को शरलक होम्स नाटक मिल गया जिसने चार्ली की ज़िंदगी का रुख़ कुछ हद तक मोड़ दिया. 

अब चार्ली जाना पहचाना नाम हो रहा था, पेट के साथ बचपन के ज़ख़्म भी भर रहे थे लेकिन इस कामयाबी के बाद फिर एक लंबा ख़ालीपन झेलना पड़ा. कुछ सालो तक ख़ास काम नही होने पर चार्ली अलग अलग विधा मे अपने हुनर तराशने लगा था जिसमे पटकथा लेखन, निर्देशन भी था. धीरे धीरे फ़िल्मो मे ज़ोर  आज़माइश की और "किड ऑटो रेसज एट वेनिस फिल्म मिली. 

चार्ली चॅप्लिन के जिस अवतार को हम फ़िल्मो मे देखते आए है उसकी बुनियाद इसी फिल्म से पड़ी. अपनी ज़्यादातर फिल्म मे ट्रैम्प के किरदार से दर्द के बादलो मे हँसी का सूरज खिलाते चार्ली का ट्रैम्प किरदार पहली बार इसी फिल्म मे आया. पतले , छोटे, फटे जूतो वाले इस किरदार मे चार्ली के बचपन का अक्स साफ देखा जा सकता है. किरदार के बेवकूफी मे होशियारी ,उसपर चार्ली का मुख्तलिफ अंदाज़ पूरी दुनिया मे धूम मचाने लगा था.

 

[source - https://thewire.in/external-affairs/charlie-chaplin-communism]

                                            

चार्ली की फिल्म द सर्कस को ऑस्कर से नवाज़ा गया तो चार्ली अभिनय, निर्देश और कामयाबी के शिखर पर सबसे चमकता सितारा था. लेकिन अपार कामयाबी का सूरज एक दिन डूबता भी है, वामपंथ के समर्थन का आरोप लगाकर अमेरिका मे चार्ली का विरोध शुरू हुआ तो अमेरिका से बेपनाह मोहब्बत करने वाले चार्ली को अपने देश इंग्लेंड मे जाने पर मजबूर होना पड़ा. नयी व्यवस्था से दुखी चार्ली ने इस गम को सीने मे रख लिया. हास्य के महानतम कलाकार ने अपने जाने का भी दिन उसको चुना जब क्रिसमस की खुशी हर चेहरे पर थी. 25 दिसंबर 1977 को चार्ली ने अपनी ज़िंदगी के रील ख़त्म कर दी......

Avinash Tripathi


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