The Reel Mother of India-Nargis
अभिनय का सबसे मुक़्क़मल फूल-नरगिस
मजाज़ अपनी शायरी के उरूज़ और सबसे ऊँचे मयार पर काबिज़ थे कि एक मुशायरे के बाद एक १० साल की बेहद खूबसूरत, अल्हड दोशीज़ा अपनी पतली उंगलियों में ऑटोग्राफ बुक फंसाये पहुँचती है. कुछ अदब की तरबियत और कुछ उर्दू ज़बान के सबसे बड़े शायर का अहतराम कर वो लड़की सर आँचल से ढक लेती है , मजाज़ इस बेहद खूबसूरत और सलीके वाली लड़की को देख कहते है 'तेरे माथे पर ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन ,तू गर इसका परचम बना लेती तो अच्छा था ' सफ्फाक़ चेहरे और ख्वाब के दरिया में तैरती आँखों वाली इस लड़की का नाम फातिमा रशीद उर्फ़ नरगिस था.
(Source: https://starsbiopoint.com) |
देश को आज़ाद करने का शोर बढ़ रहा था और आज़ादी के तरानो के बीच अपनी आज़ादी का परचम थामे एक औरत ग़ज़ल और गीत से समाज के सुर बदल रही थी. मौसिकी में उस दौर का बड़ा नाम जद्दन बाई के घर १९२९ में एक ऐसा राग जन्म लेता है जो आने वाले वक़्त अदाकारी, समाज सेवा और राजनीति,तीनो के शिखर चूम लेता है. हिंदी फिल्म की पहली महिला संगीत निर्देशक जद्दन बाई की कोख से पैदा होने वाली इस राग का नाम फातिमा रशीद उर्फ़ नरगिस होता है.
माँ की उंगलिया पकड़ चलना सीखती नरगिस ने एक दिन माँ की उंगलियों के इशारे पर अपनी सूरत किसी और किरदार के नाम कर दिया। ६ साल की बेबी नरगिस अब उस दुनिया में आ गयी थी जहाँ गुड्डो गुडियो के खेल नहीं बल्कि एक्शन कहने पर पल में रोना , पल में हंसना होता था. नरगिस के १६वे बसंत तक बदन,पलाश का खूबसूरत पेड़, दिल लताफत से गीला , आँखे ख्वाबो से लबरेज़ हो गयी.
अब हर कोई नरगिस के साथ अदाकारी करना चाहता था , १९४९ में आयी बरसात' ने राज कपूर और नरगिस को ऐसे बारिश में भिगो दिया जिसको सूखने में बरसो बरस लग गए फिर भी नरगिस का एक हिस्सा तमाम उम्र भीगा ही रहा.
(Source: Nargis with Raj Kapoor in film Barsaat) |
इसी फिल्म में तेज़ बारिश के बीच गिटार बजाते राज कपूर का ऐसा राग छेड़ बैठते है कि नरगिस राग मल्हार की तरह टूट कर बरस जाती हैं. बरसात में राजकपूर के हाथो तराशी हुई नरगिस ,हर फ्रेम में एक सीढ़ी और उरूज़ की तरफ चढ़ती हुई दिखाई देती है. प्रेम में पगी हुई ये पहाड़ी लड़की रेशमा , अपने प्रेम की हर धुन पर थिरकती और लचकती हुई नज़र आती है. बरसात में राजकपूर और नरगिस में एक अलग किसी की कशिश नज़र आती है. दोनों ही अपने किरदार में रौशनी भर देते है।
इसी तरह 'अंदाज़' में खुद के प्यार और खुद को किये गए प्यार के बीच नरगिस अपनी वफादारी साबित करती ऐसी औरत दिखती है जो सच्चा प्यार करने के बावजूद सीता की तरह परीक्षा देती है और अव्वल नंबर से पास होती है. दिलीप कुमार की दिल में मोहब्बत का एक दिया जल उठता है. ये दिया , नरगिस की दिखाई कुछ नरमदिली का असर होता है. दिलीप कुमार के अंदर लरज़ते भावनाओ की शिद्दत से नाआशना ,नरगिस अपने मंगेतर राजकपूर से शादी कर लेती है.
ऐन शादी के दिन , दिलीप ,नरगिस को दिल का हाल बयान करते है. नरगिस उनको सिर्फ दोस्त मानते हुए समझाती है. दिन बीतते चले जाते है और एक दिन अँधेरे में नरगिस ,दिलीप कुमार को ये बताने की कोशिश करती है की उन्हें दिलीप से कभी प्यार न रा, सिर्फ हमदर्दी रही. गलती से राजकपूर ये सुन लेते है और अविश्वास का शीशे की मजबूत दीवार, दोनों के दरमियान आ जाती है.
अंदाज़ में नरगिस ने एक नया रंग दिखाया , रिश्ते में ईमानदार होने के बावजूद अपने सच को साबित करने के लिए आग से गुज़रते नरगिस , सोने की तरह तपती और निखरती चली जाती है अभिनय की हर परत पर अपनी छाप छोड़ती नरगिस अब उस मुकाम तक पहुँचती हैं जिसने नरगिस को हिंदुस्तान ही नहीं, एशिया और दुनिया के तमाम मुल्क में शोहरत के उरूज़ पर स्थापित कर दिया।
ये शाहकार 'आवारा' थी जिसमे नरगिस किसी की पैदाइश को उसकी शख्सियत का ज़िम्मेदार न मानते हुए परिस्थितियों और संगत को ज़िम्मेदार मानती है. जज के घर पैदा लेकिन हालात का शिकार राज कपूर जरायमपेशा हो जाते है, ऐसे में अपने मोहब्बत के साथ चट्टान की तरह खड़ी नरगिस गरीबी और अमीरी की हर दीवार पर ऐसा प्रहार करती है कि उसकी ईंट ईंट दरक जाती है.
श्री ४२० से लेकर चोरी चोरी के सफर में नरगिस का हर कदम उनके बेहतर होती अदाकारी और चरित्र के सफर का हमसफ़र बनने में बेहद पुख्ता हो गया. अब नरगिस अभिनय का वो ध्रुव तारा बन चुकी थी जिसकी जगह फिल्म इंडस्ट्री में कोई नहीं ले सकता था. १९५७ में आयी 'मदर इंडिया' ने नरगिस को अभिनय का वो आफ़ताब बना दिया जो न सिर्फ खुद रोशन है बल्कि तमाम चाँद तारो को अपनी रौशनी से चमक देता है.
(Source: Film "Mother India") |
मदर इंडिया' खालिस नरगिस की फिल्म थी जिसने हिंदुस्तानी माँ के संघर्ष , ताक़त , मातृत्व , सामाजिक न्याय का ऐसा ताना बाना बुना कि रेशा रेशा चमक उठा. भूख से बिलखते बच्चे के लिए कीचड में सनी नरगिस, लाला के पास अनाज के लिए जाती है तो माँ अपने बच्चे की जान के लिए ईमान तक मुट्ठी भर चावल के लिए दांव पर लगाने को तैयार है.
वही देवी की मूरत के सामने देवी बनना आसान और माँ बने रहने की दुश्वारी ज़ाहिर करती नरगिस बेचारगी और दृढ प्रतिज्ञ के ऐसे अनोखे तालमेल में दिखती है की अभिनय अपने सारे नंबर इस मजबूर अबला पर न्योछावर कर देता है. ऑस्कर्स में पहली बार कोई भारतीय फिल्म ' टॉप ५ विदेशी फिल्म 'में पहुँचती है और नरगिस २९ साल की उम्र में बिनब्याही पूरे देश की मदर इंडिया बन जाती हैं.
करियर को उच्चतम शिखर तक ले जानी वाली फिल्म 'मदर इंडिया' हर मायने में नरगिस के लिए ख़ास है। इस फिल्म की एक घटना ने नरगिस को उनके जीवन का सबसे खूबसूरत साथी दे दिया. आग से निकलने के दृश्य में फंसी , नरगिस को एक खूबसूरत नौजवान , अपनी जान की परवाह किये बिना निकाल लाता है. आग से नरगिस बच जाती है लेकिन उनके दिल की सबसे महीन रग में मोहब्बत का लहू तेज़ बहने लगता है. इस खूबसूरत नौजवान का नाम सुनील दत्त होता है. बेहद शरीफ और फिल्मो से सामाजिक कामो में जुटे सुनील दत्त का साथ , नरगिस के इंसानियत के पहलु को हर रोज़ बेहतर करता जाता है. ये भी कमाल है की उनकी बेटी प्रिया भी अपने पिता की सामाजिक भावना और नरगिस के खुलूस भरे दिल जैसी ही है।
अपने करियर को छोड़ , अपने बेटे संजय दत्त की ज़िन्दगी और नशे से उबर कर फिल्म अभिनेता बनने का इंतज़ार करती नरगिस , ठीक प्रीमियर के पहले , उस दुनिया में चली जाती है जहाँ से सिर्फ दुआ दी जा सकती है.
नरगिस के फूल मुरझाया नहीं करते, शरीर छोड़ने के ३६ साल बाद भी छतीसो नायिकाएं आयी और गयी लेकिन नरगिस का वो अनोखा फूल आज भी वैसे महक रहा है।
©अविनाश त्रिपाठी
Beautifully expressed, best wishes
ReplyDeleteThanks a lot for liking the blog
DeleteAap se guftgu karni hai janab
ReplyDeleteShahab AKHTAR
M-08252855106
EDITOR- shairi (urdu quarterly)