The Golden Leg - Diego Maradona
गुनाहो का देवता - डियागो अरमांडो माराडोना
८वा दशक , अपने मध्य बिंदु को पार करके नौवे की तरफ जा रहा था। मेरे बचपन के उगते हुए दिन थे और मैं हर चीज़ में कविता या खेल ढूंढ लेता था. कईबार स्कूल में से घर लौटते ,किसी पथ्थर के टुकड़े को जूतों से किक करते करते घर तक ले आता।
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फिर किसी भी एक काल्पनिक गोल पोस्ट में पथ्थर को, जूते की नोक से संतुलित प्रहार करके रवाना कर देता. लक्ष्य साधते ही ख़ुशी में हाथ उठ जाते. ये वो नशा था जो १९८६ के फुटबॉल वर्ल्ड कप के बाद पूरे देश में निचली सतह पर तैर रहा था. भारत जैसे क्रिकेट ऑब्सेस्ड देश में फूटबाल के प्रति इस नशे को सड़क , मैदान से लेकर ड्राइंग रूम की स्क्रीन तक बिखेरने का श्रेय पांच फ़ीट पांच इंच के महामानव , महानायक डिएगो अरमांडो माराडोना को जाता है।
ब्लैक एंड वाइट टीवी पर विश्व कप देख रहा था और धारियों वाली पोशाक़ की टीम
अर्जेंटीना अपने विरोधियो के खिलाफ , मैदान में बिजली की खेती कर रही थी.
छोटी सी बॉल , पैरो की ठोकर से दूर कम जाती , पैरो से इश्क़ में गिरफ्तार
होकर , उनके इर्द गिर्द सम्मोहित करने वाला नृत्य करती. इस जादू को अपने
छोटे और मजबूत पैरो से ,एक घुंघराले बाल वाला लड़का कर रहा था. ज़बरदस्त
ऊर्जा, जुझारूपन और योद्धा की तरह लड़ाकापन से भरे इस लड़के ने बॉल पर
अपना सम्मोहन चला रक्खा था. मैच दर मैच ये लड़का अपने क़द में बड़ा हो रहा
था।
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अब क्वाटरफाइनल मैच था और सामने बहुत से खेल में सिक्का जमाये हुए इंग्लैंड खड़ा था. मैच में हवा को परास्त करती बाल , इस घुंघराले बॉल की तरफ लपकी और अपनी कम ऊंचाई की वजह से इस उछलती बॉल को , लड़के ने थोड़े छाती और थोड़े हाथ के सहारे से ,अपने पैरो में बाँध लिए. एक वक़फ़े में बॉल , लड़के के पैर को बॉय बोलकर, गोल की जाली में छिप गयी. पूरे स्टेडियम में आवाज़ों का समंदर, साहिल तोड़कर , शहर में आ गया , ऐसा प्रतीत होने लगा. ये हैंड ऑफ़ गॉड था जो पृथ्वी के देवता , से हाथ मिलाकर उसके हुनर और ज़िद का सज़दा कर रहा था.
वक़्त ने थोड़ा और गुजरने का फैसला किया कि वही लड़का लगभग आधी फील्ड से बॉल लेकर उड़ने लगा. पीछे लगभग ६ ब्रिटिश खिलाडी, उसे चक्रव्यूह में फासने का करतब करने लगे. लड़का अंधड़ की तरह, चक्करघिन्नी खा कर उड़ रहा था, पल में यहाँ, पल में वहाँ और आखिर में इस लड़के ने मैदान के कैनवास पर खूबसूरत पेंटिंग करते हुए आखिरी स्ट्रोक , गोल के ह्रदय में अंकित कर दिया. पूरा स्टेडियम और विश्व ,जो टीवी के ज़रिये , कुछ अद्भुत होते देख रहा था, उनके आँख में इस करिश्मे से अचानक स्याह बादल ठहर गए. कइयों के हाथ , इस लड़के के लिए दुआओ में उठ गए. फुटबॉल को खेल से एक धर्म, एक रिलिजन और खुद को उसको खुदा , देवता घोषित करता ये लड़का पोस्टर की शक्ल में विश्व में फ़ैल गया.
(Source:http://www.goaldentimes.org) |
माराडोना एक बेहद साधारण परिवार का बच्चा था जिसने अभावो में खुद को टूटने के बजाय , खुद में लोहा भरने का काम किया. उसने अपने आँखों के ख्वाब को अपने पैर में स्थान्तरित कर दिया।
अब उसके पैर , उसकी सोच के साथ नाचते। बॉल साथ होती, तो उसकी दासी हो जाती. जहाँ माराडोना चाहता , बॉल मंत्रबिद्ध होकर, उसके साथ चलती रहती. जल्दी ही दक्षिण अमेरिका के इस छोटे लेकिन जुनूनी देश में इस माराडोना ने अपने होने का जयघोष करना शुरू कर दिया. देश के लिए चुना गया और १९८६ में जो हुआ , उसने फुटबॉल को जादू दिखाने का अवसर भी दे दिया.
देश के साथ , विभिन्न क्लब में दुनिया के सबसे मूल्यवान प्लेयर का ख़िताब हासिल करते इस अमोल खिलाड़ी ने धीरे धीरे किवदंती की शक्ल लेना शुरू कर दिया. हालांकि अपने गुस्से, लड़ाई , और एक हद तक नशे की वजह से इस फुटबॉल के देवता ने गुनाहो का देवता बनना मंज़ूर कर लिया. अपने तमाम दूसरे अवगुणो के बावजूद इस खिलाड़ी की लोकप्रियता और चर्चा में कभी कमी नहीं आयी. नेपोली और बार्सिलोना में क्लब ट्रांसफर में इस खिलाडी को सोने से तौल दिया गया फिर भी इसकी प्रतिभा का बड़ा हिस्सा अनमोल ही रहा.
अपने पैरो के हुनर और इरादों की ताक़त से ये लड़का, अंधड़ की तरह ,खेल पर छा जाता। विपक्ष के आधे खिलाडी सिर्फ इस बाज़ीगर को रोकने में अपनी ऊर्जा खर्च करते और ये उन खिलाड़ियों के जिस्म के बीच की महीन गलियारों से छन कर निकल जाता।
दोनों ही क्लब को माराडोना ने जश्न मनाने की इतनी वजह दी की हर खिताबी जीत के बाद, दोनों क्लब के लोग, इन छोटे कदमो की ओर , सज़दा के लिए झुक जाते. अर्जेटीना, जहाँ ईश्वर ने इस करिश्मे को सजीव रूप देने का फैसला किया था , वो देश इस खिलाडी के होने को अपने देश का सबसे बड़ा गर्व मैंने लगा था. देश के शहर और गलियों में इस छोटे भगवान् की प्रतिमा , इससे सम्बंधित चीज़े , अपना आकार लेना शुरू कर चुकी थी.
(Source: www.financialtimes.com) |
यहाँ तक खेल छोड़ देने के बाद भी , माराडोना बीसवीं शताब्दी के सबसे लोकप्रिय खेल सितारों में शामिल होता रहा.
फिर बदन सहलाती ठंडक की एक बदशक्ल शाम, रूक गयी जब इस देवता ने पृथ्वी को छोड़ , अपने ईश्वर के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया. माराडोना की मौत ने अर्जेंटीना को ऐसे शोक में डाल दिया कि देश का हर शख्स , किसी ख़ुशी के मौके पर भी होंठो से मुस्कुरा और आँखों से रो रहा है. लगभग यही हाल विश्व का है जिसने अपने बेहद हुनरमंद लड़ाके को खो दिया है.
माराडोना का जिस्म ज़मीन के अंदर , ड्रिब्लिंग की कोई नयी इबारत लिखेगा लेकिन उसकी रूह, हम सब में थोड़ा थोड़ा शामिल हो गयी है.
खेल के इस सबसे बड़े आइकॉन को बारिश भरी आँखों से सलाम। ....
© अविनाश त्रिपाठी
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