Sanjeev Kumar - A Highly Talented Actor
पानी की तरह किरदार में ढलता अभिनेता -संजीव कुमार
रोज़ाना की तरह सुबह टीवी पर गीत चल रहे थे, एक गाने ने पहले कदम रोके ,फिर आँखो का रुख़ मोड़ कर टीवी की ओर कर दिया. गीत फिल्म अनामिका का ' मेरी भीगी भीगी पलकों पे रह गये' था. पर्दे पर बेहद सुदर्शन युवक गीत के बहाने अपने दिल के दाग दिखा रहा था और दर्द छिपा रहा था. पता नही उसकी दर्द से गीली आवाज़ टूट कर बादलो मे जा चुभी या खुद बादल, आसमान से लिपट कर रोने लगा क्योकि ठीक उसी वक़्त बारिश ने उसके दर्द को अपना मान, हमदर्दी पेश की. गाना ने और सफ़र तय किया तो एक पंक्ति आई ' आग से नाता ,नारी से रिश्ता काहे मन समझ ना पाया, गौर से देखा तो सुदर्शन युवक के पर्दे पर ही नही ज़िंदगी का भी यही भोगा हुआ सच था.
(Source: Sanjeev Kumar in film "Anamika")
ये बेहद हुनरमंद और सुदर्शन युवक संजीव कुमार थे जो अपनी ज़िंदगी मे भी एक अदद प्यार की गुहार लगाते चले गये. आज ही के दिन गुजरात के सूरत मे सलोनी सूरत वाले हरिहर जरीवाला ने जन्म लिया. हीरे का शहर जब अपने सबसे कीमती हीरे को तराश नही पाया तब खुद हीरा मुंबई पहुचा. इप्टा और इंडियन नॅशनल थियेटर मे अपनी उम्र से बड़े किरदार निभा कर हरी भाई ने अपने हुनर का खामोशी से ऐलान किया. फ़िल्मो मे बेहद छोटे रोल से आगाज़ कर हर भाई धीरे धीरे संजीव कुमार बन रहे थे. 1970 मे आई खिलोना ने इस हीरे के चमक से पूरी दुनिया को चकाचौंध कर दिया. प्रेमिका के दूसरे से शादी और उसी रात आत्महत्या ने मासूम विजय ( संजीव कुमार ) पर ऐसा घात किया की वो सुध बुध खो बैठा.
पागलपन और उससे उबरने की यात्रा मे संजीव कुमार ने अभिनय का जो सफ़र तय किया वो उस दौर के सभी अभिनेता को हतप्रभ कर गया. बेहद संवेदनशील अभिनय को थोड़ी दूरी पर बैठे एक ज़हीन और उतने ही संवेदनशील निर्देशक बारीकी से देख रहे थे. ये खामोशियो की ज़ुबान समझने वाले गुलज़ार थे. कुछ वक़्त बाद ही गुलज़ार ने अभिनेता की सबसे मजबूत कड़ी उसकी आवाज़ और अंदाज़ के बिना अपने हर गम और खुशी को बिना बोले कह देने के शर्त के साथ एक कोशिश की और ये 'कोशिश' इतनी बेहतरीन बन पड़ी की संजीव कुमार को बेहतरीन अभिनेता का राष्ट्रीय पुरूस्कार दिला गयी.
एक मूक बाघिर की भूमिका मे संजीव कुमार इस कदर बोल उठे की अभिनय की समझ रखने वाला हर शख्स उनकी हर खामोश आवाज़ पर वाह वाह कर उठा. अब गुलज़ार जैसा बेहद काबिल निर्देशक इस अतुलनीय प्रतिभा का कायल हो चुका था. फिल्म के एक दृश्य में जब मूक बघिर दंपत्ति , काबच्चा , जब खिलोने की आवाज़ पर प्रतिउत्तर नहीं देता तो अंदर से तड़प गए संजीव कुमार , उसके पास घड़ा फोड़ते है. अपने बच्चे को भी अपने जैसे न होने की कामना लिए संजीव कुमार के इस दृश्य में लाचारी, बेबसी, भगवान् से नाराज़गी , अकुलाहट , दर्द सारे भाव, बेहद मुखरता से दर्शको के दिल को छू जाते हैं और आँखों में बारिश का पौधा रोप देते हैं.
अब गुलज़ार जैसा बेहद काबिल निर्देशक इस अतुलनीय प्रतिभा का कायल हो चुका था. एक के बाद एक लगभग 9 फिल्म मे संजीव कुमार ने गुलज़ार के किरदार को अपना चेहरा जिस्म और रूह दी.
(Source: Sanjeev Kumar in Gulzaar's film "Angoor")
लगभग उसी दौर में जब ७० का दशक , अमिताभ के उदय से धधक रहा था , एक और फिल्म आयी जिसने संजीव कुमार के अभिनय आयाम को इतना बड़ा फलक दे दिया कि संजीव कुमार की प्रतिभा ने आकाश छू लिया. 'नया दिन नई रात ' में संजीव कुमार , अभिनय शास्त्र के नव रस को अंगीकार कर बैठे. अपने अभिनय में बारीकी परोसते संजीव कुमार , एक ही फिल्म ९ अलग अलग किरदार को अपनी आवाज़ , अपना जिस्म , अपनी रूह देते संजीव कुमार , आधुनिक नाट्य ऋषि , भारत मुनि जैसे लगे.
(Source: Shemaroo)
संजीव कुमार के अभिनय यात्रा इतनी विशाल हो गयी कि उनमे हीरो बनने की चाहत बहुत गौड़ हो गयी. जिस अभिनेत्री के हाथ पकडे ,संजीव, इश्क़ की गुलाबी दास्ताँ लिख रहे होते थे ठीक अगली फिल्म में उसी अभिनेत्री के पिता का रोल करने से भी नहीं घबराते थे. मुख्य धारा की विशुद्ध व्यावसायिक फिल्म हो या गुलज़ार साब की महीन लहज़े वाले रिश्तो की नक्काशी दार फिल्म हो, संजीव कुमार को अपने हुनर का सही मात्रा में प्रदर्शन करना आता था. मौसम में अभिनय को एक अलग विस्तार देते संजीव कुमार , एक ऐसे मेडिकल स्टूडेंट की भूमिका में दिखते है जिसकी मुलाक़ात एक पहाड़ी लड़की, शर्मीला टैगोर से होती है. प्रेम में पगकर , दोनों क़रीब से और करीब आ जाते है और बीच की रेशम की दीवार टूट जाती है.
उड़ा हुआ परिंदा , फिर अपने उसी ठिकाने पर लौट आये , ऐसा अक्सर नहीं होता. संजीव कुमार अपनी ज़िन्दगी में मसरूफ हो जाते है। २५ साल तक पहाड़ो की हर हवा से संजीव कुमार का पता पूछते , शर्मीला टैगोर , अपना पता भूल जाती है. ढाई दशक के बाद लौटे संजीव की कजरी दिखती है जो शर्मीला की बेटी होती है. यहाँ से रिश्ते की नयी डोर बनना शुरू होती है.
(Source:https://www.amazon.com)
इसी तरह आंधी में पत्नी की महत्वाकांक्षा के सामने हारे हुए संजीव , रिश्तो को बार बार पुकारते है लेकिन राजनीति में आगे बढ़ने के बाद , परिवार में लौटना , सुचित्रा सेन के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। आपसी रिश्ते के बीच में अहम् ,किस तरह तरीके से मरासिम की खूबसूरत लताफत को तोड़ देता है. इस फिल्म के गानो में संजीव कुमार ने अभिनय करते हुए गुलज़ार साब की एक एक लाइन के भाव को , अपने चेहरे की मसल्स में घोल दिया. ,तुम आ गए हो ,नूर आ गया है , या 'तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं , गीत गाते हुए संजीव कुमार , अपने पुराने दिनों की गुनगुनी धुप में बदन तापते दिखे.
त्रिशूल में भी बाप की भूमिका में अमिताभ के सामने खड़े संजीव, कही से कमतर नहीं नज़र आते जबकि इन सब फिल्म में अमिताभ के किरदार, सभी किरदार के ऊपर छा जाते थे
इसी बीच एक और शाहकार संजीव कुमार शख्सीयत का आग अंदाज़ देने आई. कहते है शोले मे धर्मेन्द्र ठाकुर का किरदार निभाना चाहते थे लेकिन निर्देशक सिप्पी के आगाह करने पर कि वीरू का किरदार फिर संजीव निभाएँगे, अपने प्रेम हेमा मालिनी को मजबूत रकीब संजीव कुमार के पास चले जाने के डर ने धर्मेन्द्र को अपना फ़ैसला बदलने पर मजबूर कर दिया. ठाकुर के किरदार ने संजीव कुमार को शोहरत की हर बुलंदी पर पहुचा दिया लेकिन जातीय ज़िंदगी मे मोहब्बत की बड़ी बाज़ी वो हार गये.
(Source: Sanjeev Kumar in film Sholey)
हेमा मालिनी के प्रति लगाव और उसके असफल होने पर एक संवेदनशील कलाकार ने अपने दिल पर एक घाव कर लिया. ये घाव कभी सुलक्षणा पंडित ने भरने की कोशिश करती कभी कोई और समकालीन अभिनेत्री, लेकिन घाव अब नासूर बनने लगा था. अब संजीव कुमार जैसे जैसे अभिनय की बुलंदिया छू रहे थे, मोहब्बत की हर जंग मे उनको रुसवाई मिल रही थी. पर्दे पर अपनी स्निग्ध मुस्कान से एक लम्हे मे दिल चुरा लेने वाला संजीव कुमार निजी जीवन मे लम्हा लम्हा हार रहा था.
(Source: Sanjeev Kumar with Hema Malini)
उसका सबसे अचूक हथियार उसकी बेहद दिलकश मुस्कान दरकने लगी थी. शीशे सा दिल कई चोट के बाद धड़क तो रहा था लेकिन अब दिल की हर दीवार मे दरार सॉफ दिखने लगी थी. पूरी ज़िंदगी अकेले बीताते संजीव कुमार ने 6 नवंबर 1985 को उस सफ़र पर जाना तय कर लिया जो अकेले ही तय होता है.
©अविनाश त्रिपाठी
Good post. Thanks. Jay Hind
ReplyDeleteWell written and expressed
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