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The emerging scope of Short Films

 

Short Films-An entry to Cinema World

The History of films & benefits of being a Short Film maker

Evolution of Short Films

१९वी शताब्दी के आखिरी दिन थे और वृद्ध हो चुकी शताब्दी के सफ़ेद पैरहन पर एक दिन सफ़ेद पारदर्शी रौशनी कुछ चित्र खींच देती है. देखते ही देखते इन चित्रों में आत्मा आ जाती है और एक दूसरी दुनिया बसने लगती है. दुनिया का सबसे नया और सबसे पूर्ण कला दुनिया के सामने आती है जिसे विश्व सिनेमा के नाम से जाने लगता है. ये वो जादू था जिसमे चमत्कृत करने के भाव तब भी थे , आज भी है. सिनेमा के अपने बेहद शुरुआती दिनों में कुछ मिनट की छोटी कॉमिक फिल्मो से बड़ी फीचर फिल्म का सफर भी अत्यंत रोचक रहा। 

 ग्रिफिथ की 'बर्थ ऑफ़ नेशन' के पहले के ज़्यादातर फ़िल्म समय सीमा में छोटी तथा किसी एक विषय पर केंद्रित थी . छोटी छोटी फिल्म में दृश्य संयोजन के अपने अपने नियम थे लेकिन कोई सर्वमान्य नियम या उसका ग्रामर अभी विकसित नहीं हो पाया था. 

धीरे धीरे सिनेमा की विकासात्मक यात्रा में नियम, रचना , एस्थेटिक्स सब बनने लगे. सिनेमा अब समय और विस्तार में जाकर एक सम्पूर्ण कला का आकार ले चूका था  जिसमे विश्व  के सारे कला विधा सम्मिलित हो चुकी थी. कविता, कहानी , पेंटिंग ( किसी एक  फ्रेम को फ्रीज़  पेंटिंग सरीखा होता है )  संगीत सहित सभी विधाओं के सूत्र जब इकट्ठे होकर एक माला बुनते है तो जो करिश्मा होता है , वो सिनेमा था. इस नए कला माध्यम की न सिर्फ विश्वसनीयता बढ़ रही थी वरन खुद बयानी और कहानी कहने के बेहतरीन नैरेटिव की वजह से कई साहित्यकार भी इस माध्यम को अपना रहे थे. 

 

Short Films for Budding Filmmaker - A better Tool

ख्वाजा अहमद अब्बास, गुलज़ार सहित कई साहित्यकार इस माध्यम में अपनी कहानी कहने लगे. बेहद खर्चीले माध्यम की जहाँ अपनी ख़ूबसूरती और परिपूर्णता थी वही माध्यम के अत्यंत महंगे होने के कारण बहुत सी कहानी अपनी गर्भ काल में दम तोड़ने लगी. कम पैसे में विज़ुअल नैरेटिव की मांग दुबारा से उस विधा की तरफ मुड़ने लगी जहाँ कुछ मिनट में अपनी कहानी कही जानी होती है, यही से शार्ट फिल्म्स ने दोबारा खुद को आधुनिकता में रंग कर ऐसे पेश किया कि हर कोई अपनी कहानी अपने लहजे, अपनी अदाएगी में बताने लगा. कई ऐसे उदाहरण है जिसमे फीचर फिल्म की कोशिश करते फिल्मकार ने असफलता मिलने पर शार्ट फिल्म का रास्ता अपनाया।  उनकी रचनात्मक क्षमता, स्टोरी टेलिंग , नैरेटिव स्टाइल को सिनेमा जगत ने समझा। 

 इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण मनीष झा रहे है. अपनी शार्ट फिल्म 'ऐ वैरी वैरी साइलेंट फिल्म ' से चर्चा में आये मनीष को बाद में कई फीचर फिल्म ऑफर की गयी. जिसमे मातृभूमि , अनवर, मुंबई कटिंग ' प्रमुख है. आजकल देश विदेश में कई बड़े शार्ट फिल्म फेस्टिवल हो रहे है जिनमे हिंदी फिल्म के शीर्ष निर्देशक और निर्माता जूरी के रूप में उपस्थित रहते है. यहाँ से भी किसी शार्ट फिल्म मेकर को बड़ा ब्रेक मिल सकता है

Short Films for Budding Filmmaker- a pathway to international film Festivals

 इन सारी नयी कोशिशों के बाद भी एक बड़ा सवाल सबके सामने खड़ा था की आखिर इस फिल्म को प्रदर्शित कहा किया जाय. सालो तक अपनी रचनात्मक प्रतिभा का जयघोष करने का माध्यम बनी शार्ट फिल्म्स देशी, विदेशी फिल्म फेस्टिवल का मुँह देखती रहती थी.  सिर्फ यही एक माध्यम उनकी प्रतिभा को एक छोटा बाजार और देखने को कुछ बुद्धिजीवी और फिल्म मेकर प्रदान करता था. फिल्म अभी भी आम इंसान की दस्तरस से बहुत दूर शीत में दूर जलते चिराग की तरह थी ,फेस्टिवल से दूर रौशनी तो हो रही थी लेकिन आग की  गर्माहट नदारद थी.

पिछले कुछ सालो से स्थिति बदली है और अब  सनडांस , वेनिस , बर्लिन , टोरंटो, पाम स्प्रिंग इफ्फी जैसे कई बड़े अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल , यंग शार्ट फिल्मकार की प्रतिभा को बढ़ावा देते है. इन सभी फिल्म फेस्टिवल्स में फिल्म मार्किट जैसा माहौल भी होता है और कई बड़े फिल्म बायर , आपकी प्रतिभा के अनुसार , आपको बड़ा मौका दे सकते है

 इस बड़ी परेशानी को दूर डिजिटल क्रांति ने किया जब डिजिटल कैमरे और यूट्यूब, विमेओ जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने क्रिएटिव एक्सप्रेशन को आम आदमी की ज़द में ला दिया. यही नहीं लगभग मुफ्त में उपलब्ध विभिन्न एडिटिंग सॉफ्टवेयर ने अपने द्वारा शूट किये गए रॉ फुटेज को एडिट करना बेहद आसान हो गया. सस्ते डिजिटल कैमरे जिन्हे संचालित करने के लिए बड़े कोर्स की नहीं थोड़े एस्थेटिक्स की जानकारी चाहिए थी, ऑटो  मोड पर भी फिल्म को शूट किया जा सकता था. 

 

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                                 (Source:https://www.theverge.com/2019/2/13/18224035/canon-eos-rp-camera-announced-spec-pricing-release-date)

अब सिनेमेटोग्राफी के लिए गहन तकनीकी ज्ञान, लाइटिंग सेंस  अनिवार्य नहीं रह गए बल्कि आधुनिक कैमरे खुद सब संचालित कर लेते है. बिना मैन्युअल  मोड के कहानी के कथ्य और क्राफ्ट को सुरुचिपूर्ण तरीके से भी कहा जा सकता था. फिल्म को दिखाने के लिए पूरा विश्व बाजार यूट्यूब जैसे डिजिटल वीडियो प्लेटफार्म के रूप में उपलब्ध था. सिर्फ अभिव्यक्ति और रचनात्मक प्रक्रिया ही नहीं अब कम लागत के रिटर्न की भी बड़ी आस हो गयी.

 


Short Films for Budding Filmmaker - An opportunity to generate revenue

एक निश्चित संख्या से ज़्यादा दर्शक मिलने पर ये यूट्यूब फिल्मकार को पैसा भी देना लगा. इस प्रक्रिया ने विश्व सहित भारत के शार्ट फिल्म मेकर के लिए क्रांति का काम किया. 

 

अब दिल में फांस की तरह गड़ी हुई बहुत सी कहानिया , दर्द में रूह खुरचती कविता, ख़ुशी में अट्टहास की तरह कलेजे से निकलती बात अब रुपहले परदे की मुन्तज़िर नहीं रह गयी. कोई भी साधारण डिजिटल कैमरे से फिल्म बना यूट्यूब जैसे माध्यम पर अपलोड कर देता और लोग उनकी कहानी कहने की कला पर वारे वारे हो जाते. समाज की बहुत सी बुराइया, कहानी कहने के नए क्राफ्ट, कविताये, कभी शार्ट फिल्म, कभी विसुअल डाक्यूमेंट्स की तरह उभरने लगी. यूट्यूब, विसुअल माध्यम का ऐसा दरिया  बन गया जिसमे जिसको जो गुहर चाहिए, निकाल लेता. यंग फिल्म मेकर ,सालो तक किसी बड़े फिल्म मेकर के असिस्टेंट होने के बजाय अपनी कहानी अपने लहजे में कहकर बड़े प्रोडक्शन हाउस के दरवाजे पर अपनी क्राफ्ट की वजह से दस्तक देने लगे. 

 देश में सैकड़ो शार्ट  फिल्म बनाने वाले फिल्मकार अविनाश त्रिपाठी कहते है की   " आजकल की व्यस्त दुनिया में लोगो का अटेंशन स्पेन बेहद कम हो गया है. ऐसे में उनके मोबाइल पर अच्छे कंटेंट वाली शार्ट फिल्म देखने में सुविधा जनक रहती है।  हालाँकि अविनाश  के अनुसार यूट्यूब पैसा कमाने का बेहतर   माध्यम नहीं है जैसा लोगो को लगता है. नेटफ्लिक्स  , ज़ी 5,  अमेज़ॉन  प्राइम  जैसे कुछ डिजिटल प्लेटफार्म ज़रूर बेहतर रिटर्न दे रहे है. " 

 

 
(Source - Josh Talks )

अपनी कहानी को अलग लहजे में कहने के लिए कई बड़े फिल्म मेकर भी आजकल शार्ट फिल्म का सहारा ले रहे है. अनुराग कश्यप , सुधीर मिश्रा सहित कई प्रतिष्ठित फिल्म मेकर भी आजकल कम बजट की शार्ट फिल्म बना रहे है.  

  Short Films for Budding Filmmaker- Bharteey Chitra sadhna , a short Film Fest

भारतीय चित्रसाधना ट्रस्ट , चित्र भारती  शार्ट फिल्म फेस्टिवल के तहत सम्पूर्ण देश में शार्ट फिल्म के विकास के लिए पुरज़ोर तरीके से काम कर रहा है. ट्रस्ट के चेयरमैन प्रोफेसर बी के कुठियाला , फिल्म विशेषकर , शार्ट फिल्म को जागरूकता और रचनात्मकता दोनों का प्रमुख माध्यम मानते है. वो चित्र भारती शार्ट फिल्म फेस्टिवल के ज़रिये भारत में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले फिल्मकार को बड़ा मंच दे रहे है. 

 

            (Source: https://creativeyatra.com/events/chitra-bharati-film-festival-2020/ )

प्रोफेसर कुठियाला के अनुसार, शार्ट फिल्म काम समय में अपनी रचनात्मकता को आज के युग में ज़ाहिर करने का सबसे अच्छा माध्यम है.  उन्होंने कहा की  फिल्म माध्यम में शार्ट फिल्म, एक निर्देशक के रचनात्मक अभिव्यक्ति का सस्ता, कारगर और बेहतर माध्यम है. यही नहीं बल्कि "नेटफ्लिक्स, अमेज़न ,जैसे माध्यम ने  फिल्म को बेहद मजबूत और डिजिटल प्लेटफार्म उपलब्ध करवा दिया है. नयी पीढ़ी की निर्भरता डिजिटल मीडिया पर बढ़ने की वजह से अब ये फिल्म अच्छा व्यावसायिक प्रोडक्ट भी बन रही है. यही वजह रही की पिछले कुछ वक़्त में टीवी सीरीज की तुलना में वेब सीरीज या वेब एपिसोड का चलन बेहद तेज़ी से बढ़ा है. 

अब युवा फिल्म मेकर टीवी या बड़े परदे पर अपनी फिल्म प्रदर्शित करने के बजाय सीधे डिजिटल प्लेटफार्म  पर रिलीज़ कर रहे है. देखते देखते वेब फिल्मो का भी दौर आ गया है जहाँ पर करोडो रुपये लगाकर सिर्फ इस माध्यम के लिए फिल्म बनायीं जा रही है जो अब डिस्ट्रीब्यूटर, थिएटर की मोहताज़ नहीं।  यही नयी बल्कि बहुत से बुज़ुर्ग हो गए लेखक, कवि तथा अन्य साहित्यकार भी अपनी रचनाओं को विज़ुअल  लहजा देकर उसे डिजिटल प्लेटफार्म पर ला रहे है जिससे नयी पीढ़ी उनका द्वारा रची गयी बेहतरीन रचना को अपने ग्राह्य तरीके से सुन पाए और आनंद ले सके. शार्ट फिल्म इस वक़्त अपने सबसे बेहतर काल में है जहाँ न सिर्फ उसे बड़ा दर्शक वर्ग मिल रहा है बल्कि लागत कम  और अच्छे रिटर्न की भी संभावना बढ़ी है.

 ©Avinash Tripathi


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