The beautiful journey of dream girl "Hema Malini"
खूबसूरती और शोखी का दूसरा नाम -हेमा मालिनी
१९६५ अक्टूबर का गुनगुना दिन था. भारत की पीठ पर पाकिस्तान के धोखे के ज़ख्म भरे नहीं थे और उधर मद्रास में १७ साल की बेहद खूबसूरत दोशीज़ा फिल्म में नायिका बनने का संघष कर रही थी। एक घाव उसको भी मिला, पीठ पर नहीं, ये ज़ख्म सीधे सीने पर था. गुलाबी ख्वाबो की उम्र में ज़िन्दगी के बड़े ख्वाब को नाकारा जाना ,एक पतली तीखी खरोंच की तरह इस लड़की के दिल में ठहर गया. वक़्त ने थोड़ा वक़्त लिया घाव भरने में ,फिर वो वो लड़की करिश्मो के शहर मुंबई आ गयी. यहाँ वो हुआ जो ख्वाबो के लिए भी मुश्किल था. २० साल की वही लड़की अब मोहब्बत और सामाजिक परिवर्तन के सबसे बड़े निर्देशक राजकपूर की नायिका थी.
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तमिल फिल्म की नकारी गयी इस अल्हड बेहद खूबसूरत लड़की का नाम हेमा मालिनी थी. १६ अक्टूबर १९४८ को तमिलनाडु में जन्मी हेमा की माँ जया लक्ष्मी चक्रवर्ती खुद एक फिल्म प्रोडूसर थी। बेटी अभिनेत्री बने, ये ख्वाब जया जी ने देखा और उस ख्वाब को धीरे से हेमा की बड़ी बड़ी आँखों में रोप दिया. १७ साल तक ख्वाबो की फसल लहलहाने लगी कि अचानक निर्देशक वी श्रीधर ने, फसलों की जड़ में ये कहकर मट्ठा डाल दिया कि तुम में हेरोइन वाली बात नहीं. हेमा की बड़ी आँखों में अब तक संभाला सपना छन्न से टूट गया। कुछ सालो बाद हेमा ने अपने टूटे सपनो को पूरे हिंदुस्तान को सौंप दिया और सपनो की सौदागर हो गयी।
' सपनो का सौदागर' राजकपूर के साथ हेमा की पहली फिल्म थी और अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती से उन्हें 'ड्रीम गर्ल का ख़िताब भी मिल गया। हुनर के इस सफर में हेमा चंद कदम चली कि कोई बेहद 'शराफत ' से उनके सफर में हमसफ़र होने की कोशिश करने लगा. १९७० में आयी 'शराफत ' हेमा और धरम की पहली फिल्म थी. गज़ाला सरीखी आँखे , स्वाभिमान की तरह खड़ी नाक वाली बेहद खूबसूरत हेमा शायद पहली ही फिल्म में धरम जी की कुछ धड़कनो को रोक गयी. इसी साल आयी 'जॉनी मेरा नाम' में देव आनंद के साथ सफलता के नए चरम छूती हेमा धीरे धीरे बड़ी कामयाबी की तरफ बढ़ रही थी। अंदाज़ 'और 'लाल पत्थर ' में मुश्किल किरदार निभाकर अपनी अभिनय प्रतिभा की रौशनी में चमकती हेमा अब 'सीता और गीता' में दोहरे चरित्र निभाकर सफल और बेहतरीन अभिनेत्री में शुमार हो गयी. इस फिल्म में डर के साये में जीती सीता और दिलेरी से ज़िन्दगी को मुट्ठी में की हुई 'गीता' दोनों किरदार में हेमा ने जिस तरह नमक डाला, फिल्म लाजवाब बन गयी.
अब तक बेहद मशहूर हो चुकी हेमा उस किरदार की तरफ बढ़ रही थी जिसने हेमा की पहचान ही बदल दी. १९७५ में आयी 'शोले 'में जब जब आंच धधक कर शोले में तब्दील हो जाती, हेमा ठंडी चांदनी की तरह सारी तपन ,शीतल कर देती. बेहद वाचाल हंसमुख अल्हड लड़की किरदार 'बसंती' में हेमा ऐसी रमी कि लगा ये किरदार उन्होंने निभाया नहीं,जीया है. इसी फिल्म के पहले हेमा की आसमानी ख़ूबसूरती से मुतासिर संजीव कुमार और जीतेन्द्र ने उन्हें अपने ज़िन्दगी का हमसफ़र बनाने की कोशिश भी की। शोले जहाँ सब जला देता है, उनकी आंच के निचली परत में मोहब्बत की ठंडी धारा बहना शुरू हो जाती है. धरम अब वाक़ई किसी टंकी पर चढ़ हेमा के लिए जान देने पर उतारू हो जाते है. हेमा की क़ुरबत हासिल करने के लिए धरम ने फिल्म के लाइट मैन को रिश्वत भी दी और आखिर हेमा ने भी इस पंजाबी गबरू की बांह थाम ली.
आने वाली कुछ फिल्म में हेमा बेहद संवेदनशील किरदार में नज़र आयी तो यकीन करना मुश्किल हुआ कि परदे पर खिलखिलाती मसाला फिल्म की नायिका बाल विवाह की शिकार नायिका को भी इतनी सशक्त तरीके से निभा सकती है. गुलज़ार की खुशबु' ' में हेमा बाल विवाह के बाद परित्यक्ता की भूमिका में खामोश लहजे में हर दर्द बयान कर गयी. 'क्रांति, नसीब ,एक चादर मैली सी ' करती हेमा अब परदे के पीछे आ गयी. 'दिल आशना में' शाहरुख़ को मौका देकर हेमा ने भारतीय सिनेमा को बादशाह देने का भी फक्र हासिल कर लिया. बेहतरीन नृत्याँगना, शानदार अभिनेत्री, राजनेता , सामाजिक कार्यकर्ता हुए जिस्म और ज़ेहनियत दोनों से बेहद खूबसूरत हेमा को शुभकामना। ....
©अविनाश त्रिपाठी
Very good write up. Thanks Avinash
ReplyDeleteThanks for liking my writing
ReplyDeleteVery well written
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