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Happy Birthday to most mysterious stunning actress-Rekha


 खूबसूरती ,अदा  और ख्वाइशों का अद्भुत चेहरा -रेखा

16 वे सावन के  "सावन भादो" से 65 सावन का सफर : रेखा जेमिनी गणेशन


आज हम बॉलीवुड इंडस्ट्री की most mysterious stunning actress-Rekha जी की जिन्दगी के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में आपको बतायेंगे  

Rekha's Childhood-

अब शामे  दिन की धूप से तपी हवा को , चांदनी में सेंक कर ठंडी करने लगी थी. राते जैसे जैसे गहरी उतरती , बदन को खुमारी सा सहलाती नसीम , माहौल को रोमानी बना रही थी. इन्ही सुरूर से चढ़ते मौसम में १० अक्टूबर को खूबसूरती, नज़ाक़त ,अदा , लहज़ा , रहस्य , रोमानियत की ऐसी दोशीज़ा पैदा हुई जिसने आने वाले वक़्त को अपनी मुट्ठी में बाँधने का ऐलान कर दिया.

४ साल की अधपकी उम्र में रौशनी और कैमरों के आगे इस लड़की ने किरदार और अपने बीच में एक रेखा खींचना शुरू कर दिया।  दक्षिण भारत सिनेमा की बड़ी शख़्सियत जैमिनी गणेशन की इस होनहार बेटी का नाम रेखा था 

साल दर साल अपने बदन को हुनर के गहने पहनाते रेखा जब १५ साल की हुई तो युवावस्था ने उनके बदंन में ज़ाफ़रान की खुशबु भर दी थी.  दक्षिण की फिल्म से हिंदी के बड़े आसमान में उड़ने का ख्वाब लिए बड़ी आँखों वाली रेखा जब मुंबई आयी तब तक उनकी ज़िन्दगी ने १६ सावन देख लिए थे. गुलाबी ख्वाबो वाली इस उम्र में रेखा को ' सावन भादो' फिल्म मिलती है

(Rekha in her first Film- Saavan Bhado)

ये फिल्म बेहद कामयाब होती है और पहली हिंदी फिल्म में रेखा अपने आने की बड़ी लकीर ,बड़ी रेखा खींच देती है।  लेकिन इस हकीकत के पीछे एक दर्द भरा किस्सा और भी है. 

Rekha's First Film Controversy-

सावन भादो के पहले 'अनजाना सफर ' रेखा की पहली साइन फिल्म थी. ये सफर रेखा का बेहद तकलीफदेह और कुछ हद तक शोषण भरा रहा. १५ साल की कच्ची उम्र में मेहबूब स्टूडियो की शूट में रेखा तब अपमान और बेबसी से रो पड़ी जब डायरेक्टर राजा के साथ मिलकर प्रसिद्द अभिनेता विश्वजीत ने शूट का फायदा उठाने की कोशिश की. स्क्रिप्ट में बिना लिखे और रेखा को बिना  पूर्व में बताये , विश्वजीत ने रेखा का ज़बरदस्ती चुम्बन लिया. लगभग ५ मिनट लम्बे समय तक चलते इस दृश्य को एक सामान्य रोमांटिक दृश्य की तरह प्लान किया गया था लेकिन आखिरी समय पर डायरेक्टर और अभिनेता ने इस किस्म का अनैतिक चेष्टा की. हतप्रभ रह गयी रेखा अपनी आँखों में सिर्फ  आंसू  लाकर इस घटना का विरोध कर पायी. बाद में सेंसर में फंसी  इस फिल्म को ८-९ साल के बाद विनोद खन्ना की मदद से पूरा किया जा सका.

पहली रिलीज़्ड फिल्म 'सावन भादो' लोगो की आँखों से दिल में उतर चुकी थी लेकिन अभी भी रेखा को उनकी सांवले रंग, और स्वस्थ्य शरीर के लिए तिरछी नज़रो से भी देखा जा रहा था. रेखा मन ही मन  मजरूह हो रही थी. आरोप अक्सर या तो आपको  तोड़ देते हैं या इरादों में लोहा भर देते हैं.  रेखा ने अपने शरीर और लुक को आकर्षण और कमनीयता में ढालना शुरू कर दिया. 

 

(Rekha in a still of her film)

The Megastar was her acting Guru- 

७० के दशक की ढलान , रेखा के उरूज़ पर चढ़ने का मौका बन गया।  इसी दशक में उभरा एक महानायक , रेखा के लिए अभिनय का गुरु भी बन गया. अमिताभ की प्रतिभा और सिनेमाई शख्सियत से रेखा ने एकलव्य की तरह सीखना शुरू किया.

 अपने बहुत से इंटरव्यू में रेखा ने अमिताभ को अपना अभिनय का गुरु बताया है. १९७८ में आयी मुकद्दर का सिकंदर , रेखा के लिए सिकंदर बनने का अवसर ले आयी. इस फिल्म ने रेखा की कमर्शियल सिनेमा में ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज़ कराई. यही नहीं अभिनय के शीर्ष पर खड़े अमिताभ के प्रति अनुराग भी रेखा का लगभग इसी वक़्त से बढ़ता चला गया।  

When Rekha got married to Vinod Mehra secretly-

इसी साल एक और फिल्म "घर " ने रेखा के घर बसाने के अंदुरूनी सपनो में रंग भरना शुरू कर दिया. फिल्म के किरदार में विनोद महरा की पत्नी बनी  , रेखा , एक हादसे में बलात्कार का शिकार होती है. पति विनोद मेहरा , इस घटना से आहत  होते है और उनका दाम्पत्य जीवन बिखर जाता है. ये तो घर फिल्म की कहानी होती है लेकिन हकीकत में रेखा के दिल का एक कोना , एक घर के कोने की तलाश कर रहा था. इस फिल्म के दौरान , विनोद मेहरा  के करीब आयी रेखा , विनोद मेहरा  से विवाह कर लेती है. कहा जाता है की विनोद की माता जी इस रिश्ते से बिलकुल खुश नहीं थी और उन्होंने रेखा को घर में घुसने से भी रोक दिया. यहाँ तक वो शादी और रेखा से इतना नाखुश थी की उन्होंने रेखा को मारने के लिए चप्पल तक उठा ली थी. आवाज़े और शोर इतना बढ़ा कि आस पास के फ्लैट इकट्ठे हो गए. कहते है उस दिन रेखा रट और लगभग दौड़ते हुए लिफ्ट की तरफ गयी और अपने घर वापस चली गयी. 

 

 (Rekha with Vinod Mehra)


Amitabh was always her Platonic love-

एक अदद प्यार और खुद को अपनाने को तड़पती रेखा की रूह का एक हिस्सा हमेशा के लिए अमिताभ के नाम था. इस रिश्ते में घर बसने की कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन दिल तो ख्वाबो से बसाया जा सकता था. दिल की सबसे गहरी रग  तो किसी एक शख्स के लिए लगातार धड़क सकती थी. ये रग  अमिताभ के लिए बड़ी शिद्दत से धड़कती रही. अब धीरे धीरे रेखा अपनी जाते ज़िन्दगी और परदे की ज़िन्दगी के फ़र्क़ को एक रूप करने के कगार पर पहुंच गयी. सिलसिला , अमिताभ, जाया , और रेखा के रिश्तो की वो दास्ताँ है जिसमे सच और कल्पना को इतनी ख़ूबसूरती से एक दूसरे में टांका गया है की किसका हिस्सा कब ख़त्म होता है और कब दूसरा हिस्सा शुरू होता , पता ही नहीं चलता. हर दृश्य में रेखा की बड़ी आँखों में अमिताभ की उम्मीद की इबारत को साफ़ पढ़ा जा सकता है.  ज़िन्दगी में किनारे पर खिसकती जा रही जया का सुलगता चेहरा , दर्द और अपमान से स्याह होता भी दिख रहा था. 

 

 (In a still of movie Silsila-Rekha with Amitabh)

इधर परदे पर हर फिल्म के साथ अपना क़द बड़ा करती रेखा ;खूबसूरत' तक पहुंच जाती है.  इस फिल्म में रेखा ने चंचलता , अल्हड़पन, ख़ूबसूरती को ऐसा परोसा की वो साल रेखा और खूबसूरत के नाम हो गया. इस फिल्म ने रेखा को अपना पहला फिल्म फेयर  अवार्ड भी दिला दिया.  व्यावसायिक सफलता और अभिनय के शिखर बिंदु को छूती रेखा अब अपने अभिनय के आकाश का विस्तार करना चाहती थी. 


When Rekha slipped into parallel movies-

उनकी रूचि ऐसी सिनेमा की तरफ बढ़ रही थी जिनमे अभिनय, सच्चाई  के  बिलकुल बगल में बैठ जाता है. इसी प्रक्रिया में रेखा ने 'उत्सव' में अपने होने का उत्सव मनाया।  प्रख्यात संस्कृत नाटक मृच्छकटिका पर आधारित इस फिल्म का निर्देशन गिरीश कर्नाड ने किया था.  कमाल की बात है की इस कुछ हद तक इरोटिक फिल्म में रेखा के साथ अमिताभ मुख्य किरदार निभा रहे थे. १९८२ में हुई बड़ी  दुर्घटना ने अमिताभ को घायल कर दिया और ये किरदार शशि कपूर के पास चला गया.

 इस फिल्म का एक गाना ' मन क्यों बहका रे बहका ' की एक खासियत ये भी है की इसमें लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोंसले ने साथ में डुएट गाना गाया है. 


The best screen courtesan-

इसी दौरान रेखा को अपने अदा के हर नक्शो नुकूश को तराशने का बेहतरीन मौका मिला जब मुजफ्फर अली ने रेखा को ' उमराव जान " बना दिया.  अवध की इस रक्काशा की किरदार के जिस्म में जब रेखा ढली तो उनकी उमराव ने ऐडा और अंदाज़ का ऐसा मुजस्मा बनाया की हॉल में बैठे हर शख्स  को अवध और उसके अंदाज़े बयान में इश्क़ और रश्क़ दोनों हो गया. रेखा अब व्यावसायिक और समानांतर ,दोनों तरह के सिनेमा में मक़बूल हो चुकी थी। 

  

(Rekha in 'Umrao Jaan')

 

Silver screen diva got married to Delhi businessman-

लेकिन दिल का जो हिस्सा अँधेरे से भरा था, वो रोशन होने के लिए लगातार मचलता रहा. इसी बीच दिल्ली के व्यापारी मुकेश अग्रवाल ने अपने दिल को रेखा के सामने पेश कर दिया. सालो से अपने घर बसने के सपने देखती रेखा ने इसे स्वीकार कर, मुकेश की ब्याहता होना मंज़ूर कर लिया. व्यापार में घाटे , और डिप्रेशन की बीमारी से जूझते मुकेश अग्रवाल ने ६ महीने बाद , अपनी मौत का एक सिरा रेखा के नाम बाँध दिया. मुकेश ने अपने दिल्ली आवास में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली और उन्होंने इसके लिए रेखा की चुन्नी का इस्तेमाल किया. इस घटना ने रेखा को मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री में वैम्प की तरह प्रस्तुत कर दिया.  लोग मुकेश के प्रति सुहानुभूति दिखाते , रेखा को कोसते दिखाई देते।  आलोचना के दौर में कई बड़े फिल्म सितारे जैसे सुभाष है , अनुपम खेर भी रेखा के खिलाफ खड़े दिखाई दिए. अपनी अजीब ज़िन्दगी और उसके रहस्यों से आहत  रेखा , अब परदे पर तो किरदारों की आवाज़ में मुखर होती रही लेकिन हक़ीक़त की ज़िन्दगी में वो अब बिलकुल तनहा होती चली गयी.  रेखा अपनी सेक्रेटरी फरज़ाना जो उनकी हमराज़ भी है, उनके साथ अकेले के अंधेरो में खोती  चली गयी. 


The strong and sound comeback of Rekha-

हालाँकि अपने दूसरे दौर में खून भरी मांग , खिलाड़ियों का खिलाड़ियों, आस्था , कामसूत्र जैसी कई फिल्म में अलग अलग चरित्र ओढ़ती रेखा, अपने में विस्तार करती गयी और खुद में सिमटती भी गयी।  फिल्म सेट से लौटकर रेखा अपने बंगले की दीवारों में सिमट जाती.

 

(Rekha in a stunning pose in her film)

अपनी ज़िन्दगी में इतने रहस्य को लपेटे ,रेखा आज भी इस उम्र में लोगो की चाहत और ख्वाहिश का सबसे आकर्षक ख्वाब है।  भारतीय सिनेमा में बहुत सी अभिनेत्री आयी लेकिन रेखा जैसी अदा , रहस्य, अंदाज़ और मुक़म्मल औरत का तसव्वुर शायद ही किसी और में मिले।  

 ©अविनाश त्रिपाठी 

 

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