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Mahesh Bhatt - A genius but controversial filmmaker

 

 

 महेश भट्ट

कुछ ज़ख्म जो आपके जिस्म की भीतरी परत पर लगे हो  वो, आसानी से भरते नहीं, भर भी जाय तो ठन्डे दिखते अंगारे के बहुत नीचे, हौले हौले सुलगते रहते है. हवा चली तो सफ़ेद राख झड़ जाती है और सुर्ख आंच धोखे से हर शय जला देना चाहती है. आज़ादी के एक साल बाद जब स्याह राते एक दूसरे के कौम  निगल रही थी, एक बच्चा दोनों कौम की मोहब्बत का दस्तावेज बनकर दुनिया में आता है. २० सितम्बर १९४८ को हिन्दू ब्राह्मण पिता  और गुजराती मुस्लिम माँ का ये चिराग, नफरतो की आँधियो में इस कदर रोशन होता है कि हवा घुटनो के बल चिराग को सजदा करती है. नानाभाई भट्ट और शिरीन अली के इस चिराग का नाम महेश भट्ट था. 

  



पिता का फिल्मो से जुड़ाव और खुद की आँखों में पलते ख्वाब महेश को फिल्मो से जोड़ देते है. निर्देशन  की कुछ गुर राज खोसला से सीखकर युवा महेश उस सफर पर निकल पड़ते है जिसकी 'मंज़िले और भी है; थी. अपनी पहली फिल्म के सेंसर बोर्ड से प्रतिबंधित होने  के बाद आखिर जब रिलीज़ हुई तो महेश भट्ट  के कई ख्वाब  आँखों में ही दम तोड़ने लगे।

 ज़िन्दगी परदे पर कहानी रचने के लिए बेचैन थी साथ साथ ज़िन्दगी की कहानी में पहले लॉरेन ब्राइट फिर उस दौर की मशहूर अभिनेत्री आ जाती है. प्यार का हाथ पकडे तो काम का जूनून उपेक्षित होता, जूनून के साथ चले तो प्यार कोई राह पकड़ लेता।  इसी उहापोह में कुछ साल निकले और आखिर में दोनों हाथ खाली खाली से हो गए. टूटे रिश्तो और नाकामयाब करियर शायद दिल में आग जला देता है या उसके पास कहने को बहुत कुछ हो जाता है. 

 महेश भट्ट ने आखिर अपनी ज़िन्दगी की कुछ बिखरी लकीरो को करीने से इकट्ठा किया और उन्हें एक 'अर्थ', एक मानी दे दिया. १९८२ में 'अर्थ' ने प्यार , ज़फ़ा , टूटन, धोखा, के आस पास ऐसा ताना बाना बुना की लगा महेश सिनेमाई परदे को अपनी जातीय ज़िन्दगी के तज़ुर्बे और हासिल से जलाना चाहते है.

 इस फिल्म ने महेश भट्ट को इंसानी मरासिम और उसके जटिल विन्यास की हर परत का जानकार बना दिया. 'अर्थ न सिर्फ फ़िल्मी जानकार बल्कि आम जनता को भी खासी पसंद आयी।  रिश्तो  के पेंच से आगे बढ़कर महेश भट्ट ने 'सारांश' बनायीं जो     २८ साल के अनुपम खेर की प्रतिभा और महेश भट्ट की सिनेमाई समझ का उद्घोष बन गयी. एक ईमानदार ज़िद्दी बुज़ुर्ग की भूमिका में अनुपम इस कदर रमे की अपने बेटे की अस्थिया लेने के दृश्य को बिना रिहर्सल ,बिना टेक के उस ऊंचाई पर पंहुचा दिया जिसे साधने में अभिनेताओं को बरसो बरस लगते है. 

 


 महेश भट्ट अब समानांतर सिनेमा का  वो नाम बन रहा था जो ८० के दशक की हिंसा और बेतुकी फिल्मो के बीच राहत की सांस लग रहा था. कला फिल्मो में बड़ा नाम कमाने के बाद महेश भट्ट उस सफर पर निकले जहाँ सिक्के की खनक अक्सर मधुर संगीत सी लगती है. 'नाम ; फिल्म ने  महेश को इस जहाँ में भी बड़ा नाम दे दिया. 

संजय दत्त और परेश रावल के साथ महेश भट्ट ने 'नाम' से अपने आने का जोरदार ऐलान किया. महेश भट्ट की ज़िन्दगी विफलता, इंकार, मोहब्बत, अदावत, पर स्त्री सम्बन्ध के साथ ऐसे रंगो से भरी थी की महेश जब भी फिल्म बनाने की सोचते ,कोई गुज़री घटना या शख्स परदे के कोने से अपनी कहानी सुनाने की इल्तिज़ा करते दिखता. ९० में आयी ' आशिकी' ने फिर एक बार महेश के जातीय लम्हो को टटोला और फिल्म की मौसिकी ने घर घर में अपना घर बना लिया. महेश अब सिर्फ अपने हिस्से की मोहब्बत और जूनून को ही नहीं, दर्द के लम्हे बाँट अपने लिए हमदर्द चाहते थे. इस कोशिश में महेश ने अपने रूह पर लगे 'ज़ख्म' सांझा किये और ये फिल्म महेश के पिता, माँ और उनके रिश्ते, कौमो की नफरत के हर चोट से उभर कर नायाब बन गयी. 

फिल्म के हर फ्रेम में महेश, अजय देवगन के जिस्म और आवाज़ से अपनी पुकार लगाते गए. कभी कौमो की नफरत से खीजकर ,गुस्से में चीख पड़ते, कभी माँ के दर्द में छिप के आंसू की खामोश फसल बो देते।  महेश की रोह में गुज़री ज़िन्दगी की सलवटे , ख़त्म ही नहीं हो रही थी.  महेश गुज़री ज़िन्दगी से इस कदर मोहब्बत करने लगे थे कि  हर फिल्म में उनका बीता अक्स दिखाई देता।  'वो लम्हे' एक बार फिर उनके और समकालीन प्रसिद्द अभिनेत्री के प्यार और सनक का दस्तावेज बन गयी.  

 


 

 अपनी और परवीन बॉबी की ज़िन्दगी के सुर्ख लम्हो के इर्द गिर्द बनी इस फिल्म में भी ,महेश...बीती हुई ज़िन्दगी के दाग धोने की कोशिश करते दिखाई दिए. कहा जाता है की परवीन बॉबी के कमज़ोर लम्हो में महेश भट्ट उनके करीब आये लेकिन ये दास्तान, परवीन के सिज़ोफ्रिनिआ की वजह से अधूरी रह गयी. हर टूट रिश्ता , दिल की किसी रग  में कुछ ज़ख्म छोड़ जाता है. 

 सिनेमा के अलग अलग  फ्रेम को संवेदनशीलता, दर्द, टकराव , मोहब्बत और जलन से भरते महेश , कलात्मक और समानांतर ,दोनों सिनेमा में सतुलन साधने में तो कामयाब हो गए थे लेकिन ज़िन्दगी का संतुलन कई बार डगमगा जाता रहा. 

जहाँ फिल्मकार की रूप में उन्होंने हिन्दुस्तान और देश विदेश में अपनी ख़ास शैली की वजह से बहुत शोहरत पायी ,वही व्यक्तिगत जीवन की घटनाएं अक्सर उनको विवाद और सवालों के बीच खींचती रही. 

 लॉरेन वाइट से मोहब्बत और विवाह के बाद , उनको अफेयर परवीन बॉबी सहित कई तत्कालीन अभिनेत्री के साथ रहा. बाद में सोनी राजदान के साथ उन्होंने दूसरी शादी की।  कहते है कलाकार के प्यास की शिद्धत , आम आदमी से शायद ज़्यादा रहती है. महेश पर अक्सर एक ख़ास धर्म के सपोर्ट में , कई बार देश के विरुद्ध बोलने के भी इलज़ाम लगाए गए. यहाँ तक की अपनी बेटी पूजा भट्ट के साथ फिल्म फेयर  मैगज़ीन के कवर पर किस  करती उनकी फोटो, बेहद विवादित रही. विवाद को अपनी सफाई से शांत करने की बजाय , महेश ने ये कहकर आग और भड़का दी कि  पूजा अगर मेरी बेटी न होती तो मैं  उससे शादी कर लेता. 

 हाल ही रिया चक्रवर्ती और महेश भट्ट की व्हाट्सप्प बातचीत ने  भी विवादों का नया सिरा पकड़ लिया है.  एक बेहद संवेदनशील लेखक, विजुअल  स्टोरी टेलर का इस तरह के विवाद में आना और अपनी आदतों पर काबू न करना दुखी करता है. 

यही ये बात भी मक्खन में बाल की तरह खटक जाती है कि  इतना शानदार फिल्मकार , अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में एक भटका हुआ पथिक लगता है. रिश्तो में स्वाभाविक मानवीय  मूल्यों को दरकिनार करता, ये कमाल  का फिल्मकार कई बार ऐसे दलदल में घिरा दिखता  है जो इसकी फिल्मकार के रूप में कमाई इज़्ज़त को उसी दलदल के कीचड में खींच लेती है.आलिया  भट्ट और पूजा भट्ट जैसी कामयाब फिल्म एक्ट्रेस के पिता महेश  भट्ट से अभी भी सिनेमा के मुरीदो की अपेक्षा है

लगभग ४ दशक से अधिक , कभी बेहद अर्थ पूर्ण ,कभी विशुद्ध व्यावसायिक सिनेमा का निर्माण करने वाला महेश भट्ट का आज जन्मदिन.... .... .बर्थडे है. उम्मीद है,  Mahesh Bhatt most controversial Hindi film maker के ख़िताब से most influential filmmaker के नाम से नवाज़े जाएंगे।

© अविनाश त्रिपाठी





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