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Asha Parekh - dance और beauty का खूबसूरत blend


आशा पारेख


कुछ तारीखों में शायद बड़ा बनने का इशारा छुपा होता है ,सदी कोई भी , वो दिन आपमें कुछ अनोखे हुनर छोड़ देता है। .देश ने अपनी गिरवी ज़िन्दगी , अंग्रेज़ो से मांगनी शुरू कर दी थी वो भी बेहद पुरज़ोर तरीके से। भारत छोडो आंदोलन के साल, २ ऑक्टूबर १९४२ को समंदर और सपनो के शहर मुंबई के एक मोहब्बत भरे घर ,एक बेटी ने जन्म लिया। गुजराती पिता और मुस्लिम माँ की बेलौस मोहब्बत का दस्तखत बन कर आयी ये लड़की बचपन से ही कुछ अलग थी.

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 बाजवक्त लड़को सी बेख़ौफ़ ,टॉमबॉय की तरह डबल डेकर की ऊपरी मंज़िल पर शहर के सीने में अपनी नज़र गड़ा दे तो कभी इठला कर थिरकन का कोई टुकड़ा , पैरो में बांध ले. माँ ने बेटी की प्रतिभा की नब्ज़ पर हाथ रखकर उसको शास्त्रीय नृत्य सीखने के लिए गुरु के हवाले भी कर दिया. १० साल की उम्र में ही अपनी शोखी, बचपने , नृत्य से विमल रॉय जैसे फिल्मकार के ज़ेहन में धंस जाने वाली इस बेहद क्षमतावान लड़की का नाम आशा था। .आशा पारेख। 

 १९५२ में माँ ' फिल्म से आशा ने तीखी आर्क लाइट में अपने बचपन को तपाना शुरू किया. कुछ साल बचपन को रौशनी में धुंआ धुंआ करने के बाद अचानक एक दिन आशा को लगा उनकी आँखों में नायिका बनने के गुलाबी सपने उग रहे है। अपने ख्वाबो को सँभालते आशा अपने दौर के मशहूर निर्देशक विजय भट्ट के दरवाज़े को खटखटा उठी. बड़ी बड़ी आँखों में उनसे भी बड़े कांच से पारदर्शी सपनो में विजय को कुछ ख़ास नहीं दिखा। नायिका बनने के शीशे के ख्वाब में पहले ही दिन दरार पड़ गयी। 

 टूटे ख्वाब की बारीक किरचे आँखों के कोनो को मज़रूह कर रही थी , लेकिन १७ साल की आँखे ,हार का ग़म आँखों में नहीं पालना चाहती थी। सीने में आग और आँखों में दृढ़ता लिए आशा नासिर हुसैन से मिली और पहली ठोकर के ८ दिन के भीतर उनकी झोली में मुख्य नायिका का किरदार पड़ा हुआ था. 'दिल दे के देखो ; में आशा ने अपने हिस्से की शोखी ,किरदार की रूह को पकड़ा दी. शम्मी कपूर के साथ मोहब्बत के तिरछी चाल चलती आशा ने अपनी पहली ही फिल्म में अभिनय के हर नक्शो नुकूश को तराशती आशा , इस फिल्म से एक बड़ी स्टार हो गयी। 

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 जल्दी ही आशा की बेलौस अदा का तिरछा धनुष ,लोगो पर चलने लगा. मोहब्बत के खुदा हो चुके देवानंद ने भी आशा के साथ मोहब्बत की संकरी गली में फिसलने का फैसला किया और 'जब प्यार किसी से होता है ; में अपने दिल की धड़कनो को आशा के घर का पता दे दिया। अपनी पहली फिल्म के बाद इस फिल्म में भी आशा ने मक़बूलियत की हर पैमाने पर खुद को खरा साबित किया।

 बेहद कम समय में ये दोशीज़ा , अपनी लहलहाती हंसी , दुःख में शर बिद्ध हरिण की तड़पती आशा की हर अदा , लोगो के दिल में बहने लगी। नासिर हुसैन की निर्देशन में एक बार फिर आशा ' फिर वही दिल लाया हू ' लेकर हाज़िर हुई। फिल्म के गानो में आशा ऐसे इठलाती कि नदिया भी उसकी अदा देख अपना रुख बदल कर मुड़ जाय. इसके बाद अपने कदम में लोहा भरती आशा उस मज़िल की तरफ चल पड़ी जिसने पहली ,दूसरी नहीं बल्कि उन्हें तीसरी मंज़िल के शिखर बिंदु पर पंहुचा दिया।

 'तीसरी मंज़िल में प्रेम और नफ़रत के तैरते पल पर कांपती आशा पारेख ने फिल्म में गज़ब का अभिनय किया। इस फिल्म में अपनी पुरानी जोड़ी और पहले हीरो 'शम्मी कपूर ' के साथ उनका अभिनय इस तरह जमा पुख्ता दिखा जैसे दिन की धूप में खड़ी  गेहू की फसल ,पक कर सुनहरी हो जाती है। 


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 अब आशा पारेख बेहद परिपक्व नायिका हो चुकी थी। उनकी आँखों में बहारो की शादाबी भर रही थी। थिरकन में मुसलसल बारिश का रिदम आ गया था। १९६६ के ये साल धीरे धीरे आशा के नाम हो रहा था. अब वो खुद चमकते सोने के साथ पारस में भी तब्दील हो रही थी. इस साल आयी सारी फिल्मो ने आशा को छठे दशक की सबसे बड़ी नायिका और सुपरस्टार बना दिया। 'लव इन टोक्यो ' में सायोनारा सायोनारा ' गाते वो विदा का ऐसा गीत प्रस्तुते करती है जिसकी निचली सतह पर फ़िराक की लकीर थी और ऊपरी सतह ,बादलो से झांकी मुस्कराहट की हरी धूप थी। जॉय मुख़र्जी के साथ वो पतले कांच की मानिंद नाज़ुक़ लड़की की भूमिका में दिखती है।


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 इसी साल यानी १९६६ में आयी ;दो बदन ' ने लोकप्रियता के बहुत से रिकॉर्ड तोड़ दिए. मोहब्बत ,रक़ाबत , बलिदान , अमीरी गरीबी के महीन ताने बाने के इर्द गिर्द बुनी गयी इस कहानी में गानो ने अलग रंगत पैदा कर दी। मनोज कुमार ने इस फिल्म में प्यार के रूहानी हिस्से को अपना जिस्म दे दिया. आ गयी उनकी याद , वो नहीं आये ' में आशा ने दर्द और शिद्दत के इंतज़ार को अपनी पथराई आँखे दे दी। अपने प्रेम 'मनोज कुमार को खोने के ग़म में विरहणी बनी आशा , ग़म का हिमपर्वत बन जाती है। 

 ऐसा पर्वत जो अंदर से दरार दर दरार टूट रहा हो और कोई भी लम्हा उसको टुकड़े टुकड़े में तब्दील कर देगा। बेहद अमीर आशा का दिल ,लाख सुविधाओं और मौसम की मेहरबानी के बाद भी अपने चाहत के इंतज़ार में अटका हुआ है। 'जब चली ठंडी हवा, जब उठी काली घटा, मुझको ै जाने वफ़ा, तुम याद आये , में कटे सज़र के गिरने के हाशिये पर खड़ी नज़र आती आशा ,अभिनय में बेहद अच्छे अंक बटोरती नज़र आती है। 



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 अपने दौर के मोहब्बत के कई बड़े सितारों के साथ काम कर चुकी आशा अब डेमी गॉड सरीखे सुदर्शन सजीले और शर्मीले ,धर्मेंद्र के साथ बहार के मुहाने पर खड़ी उसका इंतज़ार करती है। आये दिन बहार के ' में बिन ब्याहे माँ और समाज के दृष्टिकोण की पतली चादर में परोसी गयी मोहब्बत की दास्तान को अपने आँचल में छिपाये,आशा बहुत सशक्त नज़र आती है। धीरे धीरे परिपक्व होती आशा अब उस मां के पास पहुँचती है जो किरदार और अभिनय के स्तर पर मोक्ष की प्राप्ति सरीखा होता है। 
 १९७१ में आयी 'कटी पतंग' ने आशा पारीख के स्टारडम को और पुख्ता ही नहीं किया बल्कि बेहद मजबूत किरदार निभाने वाली अभिनेत्री भी साबित किया। मोहब्बत पर बेपनाह भरोसा, धोखा , बिना शादी के बच्चे की माँ और विधवा का चरित्र ओढ़े आशा इस फिल्म में यथार्थ के बेहद करीब बैठी हुई नज़र आती है। 


 अपनी दोस्त के आखिरी वक़्त में दिए वादे को निभाती आशा , उसके किरदार को अपनी ख्वाहिशो के ऊपर लाद लेती है। राजेश खन्ना ने भी इस फिल्म में इतनी सच्चाई से अभिनय किया की ये फिल्म आशा, राजेश के साथ गानो के लिए भी अमर हो गयी। इसके बाद कारवां सहित और कुछ और फिल्म में आशा ने अलग अलग किरदार को अपना नाम , जिस्म और रूह दी लेकिन अब आशा बाजार की बदलती भाषा के साथ अपने संवाद में मुश्किलात पा रही थी।


 १९७८ में आयी ' मैं तुलसी तेरे आँगन की ' में एक बार फिर आशा ने जादू जगाने की कोशिश की लेकिन अब दुनिया की परिभाषा बदल चुकी थी। इसके बाद एक्का दुक्का फिल्म्स में नज़र आती आशा ने अपने पहले प्रेम 'नृत्य ' को तरजीह देना शुरू कर दिया। देश विदेश में अपने नृत्य और पैरो में बिजली बाँध वो घूमती रही. वक़्त मिलता तो अस्पताल में दर्द झेलते मरीज़ो के सर पर हाथ फेरकर उनके दर्द को बाटने की कोशिश करती आशा का मन अब लोगो की खिदमत में लगता था।


 लगभग डेढ़ दशक तक भारत के हर दर्शक की आँखों में ख्वाब की तरह पलने वाली अभिनेत्री आशा पारेख को सरकार ने उनकी कला के लिए १९९२ में पद्मश्री से नवाज़ा। सिर्फ कला ही नहीं आशा पारेख ने सांताक्रूज़ के हॉस्पिटल में अपनी क्षमताओं से भी ज़्यादा वक़्त और दूसरी ज़रूरी चीज़ मुहैया कराकर न जाने कितने मरीज़ो के डूबते दिल को धड़कनो का नया तोहफा दिया.


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 देश के कला और सामाजिक कार्य को इतनी गंभीरता से करने वाली इस बड़े क़द की अभिनेत्री को जो पदवी और सामान सरकार से बरसो पहले मिल जाना चाहिए ।


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©अविनाश त्रिपाठी 

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