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किस अभिनेत्री के लिए सत्यजीत रे ने की थी भविष्यवाणी

 

शबाना आज़मी


घर मे टूटे लफ़ज़ो को सहेज कर मुकम्मल ग़ज़ल बनाई जाती थी, जहाँ अब्बा हरफ़ हरफ़ को उनके बेहतर होने के मानी बताते थे वही माँ मंच पर ना जाने कितनी मज़लूम लोगो की ज़िंदगी को अपने आईने मे ढाल कर पेश करती थी. ऐसी तर्बीयत के बीच पौधे को विशाल बरगद होना लिखा था लेकिन उसने अपनी बेमिसाल प्रतिभा से अपने मुक़द्दर मे घना जंगल होना लिख दिया . कैफ़ी और शौकत आज़मी की इस पौध का नाम शबाना है. 




घर पर तरक्की पसंद शायरो की आमद और साम्यवादी सोच के गोद मे पली शबाना ने एक दिन जया बच्चन की डिप्लोमा फिल्म देखी तो पूना फिल्म इन्स्टिट्यूट मे पढ़कर वैसी ही अभिनेत्री बनने के ठान ली. बचपन से ज़हीन सोच की शबाना जब मुन्नी थी तभी से सोच के समंदर से समाज की बेहतरी का मोती ढूँढने लगी थी. अब्बा कैफ़ी आज़मी के जिगरी सरदार ज़ाफ़री ने मुन्नी के अंदर पल रहे बदलाव की आँच को समझ उसका नाम शबाना रख दिया. पुणे मे डिप्लोमा के दौरान हर काम मे अव्वल शबाना ने कोर्स पूरा करने के पहले ही  अपने परो मे उड़ान रख दी. उस दौर के मशहूर राइटर और चिंतक ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म "फासला" से अपने मंज़िल के फ़ासले को कम करने को सोचा लेकिन उनके अंदर पल रहे विशाल बरगद के अंकुर को पहचानने का काम श्याम बेनेगल ने किया. 'अंकुर" नाम सी आई इस पहली फिल्म ने ही शबाना को अलग कतार मे खड़ा कर दिया.




 श्याम बाबू के साथ शबाना ने अपनी पहली फिल्म मे गाँव की दलित महिला के  सरोकारो और सन्दर्भो को इस तरह पेश किया कैसा हिन्दी फ़िल्मो की किसी अभिनेत्री ने नही किया था. अंकुर देखकर सत्यजीत राय ने शबाना के बेहतरीन भारतीय अभिनेत्री होने की भविष्यवाणी कर दी थी. शहर मे पली बढ़ी शबाना ने गाँव की मजदूर दलित औरत और  उसकी परिस्थिति का जो चित्रण किया वो उसे राष्ट्रीय पुरूस्कार दिला गया. अपनी पहली ही फिल्म से अभिनय का इतना बड़ा जयघोष करती शबाना देश के सबसे प्रतिष्ठित फिल्मकार सत्यजीत राय की पसंद बनी जब उन्होने अपनी एकमात्र हिन्दी फिल्म "शतरंज के खिलाड़ी" मे शबाना को उपेक्षित बेगम का किरदार देकर उनकी प्रतिभा का सम्मान किया. शबाना अपने आसमान मे नये नये सूरज उगा रही थी तभी उन्हे किसी की आँखो मे सूरज बोने का काम दिया जाता है. सई परांजपे की फिल्म "स्पर्श ' मे अंधे नसीर के साथ संबंध के ऐसे धरातल पर पहुच गयी जिसमे एक स्पर्श मे संपूर्ण प्यार और रिश्ते का ताना बाना होता है. स्कूल प्रिंसेपल नसीर नबीना के किरदार मे रच बस रहे थे उसी वक़्त उनकी ज़िंदगी मे सुलगती आँच की तरह शबाना आती है, जिसमे रोशनी भी है, रिश्ते की गर्माहट भी.

 सामानान्तर सिनेमा के साथ व्यावसायिक फ़िल्मो मे भी अपने कदमो के निशान बनती शबाना अमर अकबर एंथॉनी, परवरिश जैसी फिल्म मे अमिताभ के साथ कद्दावर नज़र आती है. सबसे कमाल की फिल्म " मैं आज़ाद हू" होती है जिसमे शबाना पत्रकार की भूमिका मे ऐसा किरदार गढ़ती है जो झूठा है लेकिन सच से बड़ा हो जाता है.




 संबंधो की उलझन पर बनी फिल्म "अर्थ " मे शबाना ऐसी पत्नी की भूमिका मे है जो पति के धोखे से घायल है लेकिन आम पत्नी की तरह इस हार, उपेक्षा को स्वीकार नही करती है. गॉडमदर" मे बेहद सशक्त माफ़िया की भूमिका मे इस कदर अवतरित होती है कि देखने वालो को झुरजुरी हो जाती है. भारतीय अभिनय का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय महिला चेहरा शबाना सिनेमा इतिहास की सबसे बहादुर अभिनेत्री है.

©अविनाश त्रिपाठी 

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