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हिंदी सिनेमा की लेडी अमिताभ

 श्रीदेवी

सदमा के एक दृश्य में लीला मिश्रा के चेहरे पर उभरे मस्से को एक लड़की नादानी और चहकते बचपन से ओत प्रोत होकर कौतुहल से छूती है , अगले ही गुनगुने पलछिन में दोनों के हंसी के गुब्बारे फुट पड़ते है।

२० साल के जिस्म में ८ साल की बच्ची का भोलापन , कौतुहल, छेड़छाड़ का इससे बेहतर नमूना भारतीय फिल्म में नहीं दिखा। 

 

[Source:https://www.freepressjournal.in]
 

जवान जिस्म को थके हुए बूढ़े में तब्दील करना, अभिनय का विस्तार है लेकिन बच्चा बनना और स्वाभाविक मासूमियत को लाना , अभिनय में मोक्ष पाना है।  ये करिश्मा बिरले कर पाते है और दृश्य की मांग के अनुसार तोला तोला, भाव, भंगिमा , देह भाषा , संवाद को परोसने वाली सिर्फ श्रीदेवी हो सकती थी। 

तमिलनाडु के शिवकाशी के आकाश में जब बादलो ने अपना बदन खोल दिया और उनके आँचल से तेज़ धार , धरती के दक्षिणी हिस्से को तार तार भिगोने लगी, उन्ही बरसते मौसम में १३ अगस्त को श्री अम्मा अयंगर अयप्पन पैदा हुई।  बारिश में पैदा होने की वजह से शायद उसके पैरो में बिजली बंधी रहती थी. ४ साल की लुढ़कती उम्र में एक दिन उसने एक समारोह में अचानक नाचना शुरू कर दिया। 

 बिना किसी नृत्य शिक्षा के भी उसके पैर थाप और ताल पर थिरक रहे थे. भोलेपन से भरे इस बेसाख्ता नृत्य ने श्री के लिए उसके माथे पर बड़ा स्टार लिख दिया. अब श्री तमिल फिल्मो में अपने अभिनय, बाल सुंदरता और नृत्य का संगम पेंट करने लगी।  १३-१४ साल तक  दक्षिण की बड़ी चाइल्ड स्टार रहने  के बाद , जब सावन , तपिश पैदा करने लगे, ऐसे मौसम और उम्र में श्री ने सोलहवा सावन से हिंदी फिल्म में अपने सफर का पहला बड़ा कदम रखा।  हिंदी ज़बान से नावाकफियत ,  तंदुरुस्त बदन और कुछ वजहें श्री के कदमो को उखाड़ने लगे लेकिन १९८३ में 'हिम्मतवाला' से ये हिम्मतवाली वापस लौटी और ये साल और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अपने नाम लिख दिया।  

 

[Source:https://www.indiatoday.in]

 पैरो  में भंवर बाँध जब श्री नाचती तो डांस के किंग ,जम्पिंग जैक भी से इस बिजली की चकाचौंध से हतप्रभ थे. इसी साल श्री ने वो करिश्मा कर दिया जिसका ज़िक्र मैंने ऊपर किया है। 

 'चोट के कारण वापस छोटे उम्र में लौटी श्री देवी ने सदमा ' में अभिनय के कई पायदानों को पोल वाल्ट की तरह जम्प कर पार कर दिया. जवान जिस्म में बचपन को बांधना,तलवार पर चलने जैसा था. एक भी हरकत या भाव ज़्यादा होता  तो दृश्य में अतिरेकता और बनावटीपन आ जाता , अंडरप्ले करने पर किरदार उभर नहीं पाता।  अब श्रीदेवी उस मक़ाम पर चल पड़ी जो उनका मुन्तज़िर था।  मवाली , तोहफा जैसे कई फिल्मो को बड़ी व्यावसायिक सफलता दिलाने के बाद श्री मिस्टर इंडिया तक पहुंची श्री इस फिल्म में मुक़म्मल हो गयी. कुछ दृश्यों में अबोध भोलापन चेहरे पर बांधे  श्री  ने , काटे नहीं कटते , दिन ये रात " में  सौंदर्य और सेक्स अपील का ऐसे निष्पाप प्रदर्शन किया कि कई दृश्यों में वो 'डेविड फ्रेडरिक ' की प्यार में नाचती पेंटिंग नज़र आती है।  

 

[Source:https://www.saatchiart.com]

 अपने किरदार में सारे रंग भरने के बावजूद खालिस  इश्क़ का सुफियाना रंग अभी भी भरना बाकि रह गया था और ये रंग भरा 'चांदनी ; में।  पहले प्यार की ललक ,उसकी तड़प और चौराहे पर पहुंच भी उस सिम्त लौटना , चांदनी की रूह में था. अभी मोहब्बत में उम्र की कठोर पारदर्शी दीवार लांघना था और ये करिश्मा श्री ने 'लम्हे' में किया। जुदाई में पैसो के लिए अपने पति को बेचा और तन्हाई का ठंडापन जब पैसो की गर्मी तपिश न दे पायी तब श्री फिर मोहब्बत तक वापस लौटी।  एक वक़्फ़े के अंतराल के बाद जब श्रीदेवी ' इंग्लिश विंग्लिश' तक पहुंची तब वो बेहद  अनुभवी अदाकारा की तरह सिर्फ आँखों की जुम्बिश से पूरी वर्णमाला कह देती थी . भारतीय सिनेमा के परदे पर बहुत सी अभिनेत्री ने अपने आँखों से अपने  किस्से कहे , लेकिन बड़ी आँखों से बहती ये किस्सागोई बहुत गहरी और मुख्तलिफ थी       

 Avinash Tripathi

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