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आवाज़ का नक़्क़ाश


किशोर कुमार

 

90 के दशक की बात रही होगी. स्कूल के कड़े अनुशासन से कॉलेज के खुले माहौल मे पहुचा ही था कि फ्रेशर पार्टी की तैयारी शुरू हो गयी. सौभाग्य से फ्रेशर पार्टी  के संचालन के महती ज़िम्मेदारी मुझे दी गयी. प्रोग्राम शुरू होने से लेकर अंत तक जो गाने गाए गये उसमे 90 प्रतिशत किशोर दा के थे. 

(Source: https://www.indiatoday.in/)

किसी फ्रेशर विद्यार्थी ने अपनी सहपाठी को देख प्रेम निवेदन किया हो " दिल क्या करे जब किसी से,किसी को प्यार हो जाय, के रूप मे, या यू ही तुम मुझसे बात करती हो,या कोई प्यार का इरादा है, सब किशोर के गीत से अपनी भावनाए जोड़ रहे थे. उस दिन पहली बार अहसास हुआ कि इस कमाल शख्स के पास हर मर्ज का इलाज है.

बारिशो के महीने ,जब पानी बादलो में भरकर, सूरज के ताप को हल्का कर देता है, यही पानी जब बरसता है तो कई लोग ,अपने ग़म को ,आंसुओ को इन्ही पानी के ओट में छुपा लेते है, इन्ही भीगे भीगे मौसम में भारत के दिल मध्य प्रदेश में आवाज़ पर नक्काशी करने वाला एक कलाकार पैदा होता है.खंडवा के बड़े वकील के घर पैदा आभास कुमार गांगुली ने किशोर कुमार बनने तक का सफ़र खेलते कूदते तय कर लिया. बड़े भाई अशोक कुमार की तरह फ़िल्मो मे अभिनय से शुरुआत तो की लेकिन अपने नाम के आगे हिन्दुस्तान के सबसे पॉपुलर गायक का खिताब जोड़कर अपनी शख्सियत को इतने रंग दे दिए कि आने वाली पीढ़िया किसी एक इंसान मे इतनी खूबी को लेकर सिर्फ़ अचरज कर सकेंगी.

 फिल्म शिकारी से अभिनय की शुरुआत करके जल्दी ही उन्होने विमल रॉय जैसे बड़े डाइरेक्टर की फिल्म हासिल कर ली. विमल दा की फिल्म "नौकरी" मे बेरोज़गार युवक की भूमिका मे अभिनय को उजला पक्ष दिखाने वाले किशोर कुमार सिर्फ़ इतने से ही संतुष्ट होने वाले नही थे. खेमचंद  प्रकाश के निर्देशन मे गायकी की शुरुआत के कुछ सालो तक अपनी इस प्रतिभा को गंभीरता से ना लेने के कारण कभी कभार ही गाने वाले किशोर को असली प्रतिभा को एस डी बर्मन ने परखा. 

तब तक अपने आदर्श के एल सहगल को कॉपी करते किशोर अपने अलग अंदाज़ से नावाकिफ़ थे. बर्मन दा ने उन्हे असली किशोर से मिलवाया जिसकी आवाज़ मे मिठास के साथ, युवा उर्जा तथा पुरुषात्व से भरपूर भारीपन था.हालाँकि बचपन में किशोर की आवाज़ खासी पतली थी और वो जब सुर लगाते , घर वाले उनकी फटी आवाज़ का मज़ाक उड़ाते.  इंदौर के क्रिस्चियन कॉलेज में पढाई का सुर साधते किशोर अक्सर कैंटीन में पाए जाते. क्लास और कैंटीन ,दोनों की टेबल का इस्तेमाल, किशोर अपनी हथेली की धमक,यानी तबला  के रूप में इस्तेमाल करते. इसी कैंटीन का ५ रुपया १२ आना , का उधार , किशोर ने अपने गीत में उतार दिया था. अपनी ज़िन्दगी में बीते ढेर सारे सच और घटनाओ का किशोर अपने गीत में पिरो देते और वो गीत सच और फ़साने के बीच झूलता बेहद कामयाब हो जाता.   

अपने मजाकिया और खिलंदर स्वाभाव की वजह से किशोर आवाज़ मे जो अभिनय भरते थे उसका कोई सानी नही था. हाफ टिकट का वो यादगार गाना : आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटारिया का पुरुष और महिला दोनो आवाज़ मे बखूबी गाना सिर्फ़ किशोर जैसा जीनियस ही कर सकता है. इसके पीछे भी कहानी है की संगीत निर्देशक सलिल चौधरी इस गीत को मेल और फीमेल किशोर और लता की आवाज़ मे रेकॉर्ड करना चाहते थे. लता मंगेशकर के शहर से बाहर होने की वजह से किशोर का ये आइडिया सलिल चौधरी को पसंद आया और फिर इतिहास हो गया. उम्र बढ़ने के साथ किशोर कुमार के हुनर मे भी ग़ज़ब की कशिश बढ़ती चली गयी. आर डी बर्मन के संगीत और गुलज़ार की कलम ने किशोर को उनके उरूज़ पर बैठा दिया. हज़ार राहे जो मुड़ के देखी" या फिर "तुम आ गये हो नूर आ गया है" जैसे गानो ने किशोर कुमार को गायकी का सबसे चमकता नक्षत्र बना दिया. ज़िन्दगी का कोई गहरा फलसफा हो तो किशोर 'ज़िन्दगी का सफर,ये कैसा सफर, कोई समझा नहीं ,कोई जाना नहीं ,जैसे गीतों से जीवन दर्शन को बेहद सादगी से रख देते। 


(Source:https://www.dnaindia.com/)


प्यार के पारदर्शी सफ़ेद शामियाने में ,मोहब्बत सी भरी कोई शाम सजानी हो तो किशोर 'ये शाम मस्तानी मदहोश किये जाय गुनगुनाते. किसी को दिल का हाल बताना हो तो 'पल पल दिल के पास तुम रहती हो ;की राग छेड़ देते. बनते बिगड़ते रिश्तो को 'तुम आ गए हो ,नूर आ गया है, नहीं तो चरागों से लौ जा रही थी, से संवारना हो या दिल टूटने के बाद होंठो पर खुद ही बद्दुआ आ जाय ' मेरी भीगी भीगी पलकों ,रह गए जैसे मेरे सपने बिखर के , किशोर ने हर भाव को अपने दिल सबसे महीन राग पर रख दिया. भाव, गले के नक्काशी दार रास्तो गुज़र ,होंठो तक आता तो हर हिंदुस्तानी , उनके  मुरीद बन जाता. गाने के साथ अभिनय में भी बेहद पारंगत किशोर , किरदार अपने चेहरे और जिस्म के साथ ,अपना ख़ास लहज़ा और एक  पागलपन दे देते. एक शूट में वो कार में बैठे और डायरेक्टर के कट न कहने पर, कार चलकर पनवेल तक जा पहुंचे. 

अपने अभिनय और गायन दोनों में अपने मेहनताना को लेकर बेहद सजग किशोर कुमार ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्द निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म चारुलता के लिए किसी भी पारिश्रमिक से इंकार कर दिया था. यही नहीं अपनी विश्वप्रशिद्ध फिल्म ' पाथेर पांचाली ; के वक़्त आयी आर्थिक समस्या से उबारने में भी किशोर कुमार ने अहम् योगदान दिया. रे का बेहद  वाले किशोर ने अपनी तरफ से ५००० रुपये देकर ,बंद पद रहे प्रोडक्शन में दोबारा जान फूंक दिया था. 

 भारतीय संस्कृति में रचे बसे किशोर कुमार को विदेशी मुख्यतः हॉलीवुड फिल्म से भी बेहद लगाव था. मशहूर सिंगर एक्टर डैन्नी  के को बेहद पसंद करने वाले किशोर ने अपनी ख़ास यूडलिंग को भी हॉलीवुड सिंगर टैक्स मोर्तों  और जिम्मी रोजर से प्रभावित होकर सीखा. बिना किसी शास्त्रीय या पाश्चात्य संगीत की विधिवत शिक्षा लिए किशोर ,अपने गले में जो हरकत लाते , सुनने वाला हतप्रभ खड़ा उनकी ईश्वरीय देन  पर चकित होता रहता.  गाने में सुर और ताल का ही नहीं ,किशोर गाने को फिल्माए  जाने वाले अभिनेता के मैनरिज़्म का भी ख़ास ख़याल  रखते   . राजेश खन्ना का रोमानी मखमली अंदाज़ हो, तो किशोर अपनी  आवाज़ की टिम्बर पर ,इश्क़ की कढ़ाई कर देते , देवानंद का चिर युवा और खिलंदड़ अंदाज़ हो तो किशोर के सुर में बेफिक्री चहलकदमी करने लगती. 

अमिताभ की बुलंद शख्सियत के हर हिस्से पर ,किशोर मरदाना आवाज़ की गहराई इस तरह टांक देते कि मोहब्बत की पुकार में रोमानियत के साथ साथ, एक दृढ़ता और मजबूती भी झलकती. अभिनेता के शख्सियत  को अपनी आवाज़ के अभिनय से निखारते किशोर खुद आला दर्ज़े के अभिनेता थे. लेकिन बहुमुखी प्रतिभा का कलाकार अक्सर बेहद मूडी होता था. कहा जाता है हृषिकेश मुख़र्जी की बहु चर्चित फिल्म 'आनंद ' की पहली पसंद किशोर कुमार थे. 

उसी समय एक और बंगाली प्रोडूसर ,किशोर को अपनी फिल्म में लेना चाहता था लेकिन बेहद मनमौजी किशोर ,उसके साथ काम नहीं करना चाहते थे. हृषिकेश जब किशोर कुमार के बंगले पर पहुंचे ,तो किशोर  के  वॉचमैन ने उन्हें वही बंगाली प्रोडूसर समझ लिया और इस ग़लतफ़हमी के तहत, हृषी  दा किशोर से मिल नहीं पाए और अंततः आनंद , राजेश खन्ना के पास चली गयी. इन्ही राजेश खन्ना को पहले स्टार और फिर सुपरस्टार बनाने में ,किशोर की रोमानी आवाज़ ने बेहद अहम् भूमिका निभायी. यही नहीं हृषी दा  ,किशोर की प्रतिभा और उनकी ज़िन्दगी से इतना प्रभावित थे कि  उनकी फिल्म 'अभिमान ' भी किशोर और उनकी पहली पत्नी रुमा गुहा ठाकुरता की ज़िन्दगी के कई हिस्सों पर आधारित थी.  

 अपनी निजी ज़िन्दगी में कभी बेहद रोमानी ,कभी मनमौजी किशोर ने ४ बार दिल लगाया. रुमा , मधुबाला, योगिता बाली  और लीना चद्रावरकर के साथ सात फेरे घूम चुके किशोर ,अपनी पत्नियों को मज़ाक में बंदरिया कहते थे और इसकी वजह वो उन सबका मुंबई के बांद्रा से होना बताते थे.   अपने गाने से हर बड़े स्टार को और बड़ा स्टार  बनाने वाले किशोर ने निर्देशन, संगीत निर्देशन, अभिनय,फिल्म लेखन सहित लगभग सभी विधाओं में न सिर्फ काम किया बल्कि कामयाबी की नयी इबारत लिखते चले गए.

आवाज़  के बहुत  से जादूगर आये लेकिन, टिम्बर, थ्रो , लर्ज़िश, वेरिएशन और रेंज का इतना बड़ा हुनरबाज़ कोई दूसरा आएगा, इस पर हमेशा संदेह रहेगा

©अविनाश त्रिपाठी

13 comments:

  1. शब्दों की सजी हुई सुंदर कतार।

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    1. बहुत धन्यवाद , किशोर पर लिखना अपने आप कंटेंट को बेहतर कर देता है

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  2. पढ़कर स्व. किशोर जी की याद ताज़ा हो गयी 🙏🏼

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    1. धन्यवाद सर किशोर हमेशा यादों में थे और रहेंगे

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  3. Woh what an incredible talent Indian film industry and music industry is highly indebted to this great legend I had an opportunity to listen his songs in year 1992 school days I was only in impression about his funny songs and acting when I heard one by one songs and collected his cassettes than I realised what a superb raw talent he was sung all toughest songs either love emotional funny My favourite song of kishore da is Mere Dil ne tadapkar jab naam tera pyaara
    Pal Pal Dil ke pass
    Wo shaam kuch ajeeb thi

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